भोपाल। कमलनाथ सरकार प्रदेश में बसपा और कांग्रेस नेताओं पर पिछले कुछ सालों में लादे गए अपराधिक प्रकरणों को वापस लाने का ऐलान कर चुकी है। जल्द ही केस वापस लेने की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी। सरकार के इस फैसले से पिछले साल 2 अप्रैल को हिंसा फैलाने वालों को भी फायदा होने जा रहा है। हिंसा से जुड़े 4 हजार से ज्यादा केस वापस होंगे। जिसमें पुलिस ने ग्वालियर-चंबल अंचल में पांच हजार से अधिक प्रकरण तोड़फोड़, आगजनी, पथराव, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, हत्या व हत्या के प्रयास के दर्ज किए थे।
हाल ही में कैबिनेट दो अप्रैल की जातीय हिंसा के साथ ही पिछले 15 साल में कांग्रेसियों व बसपाइयों पर दर्ज प्रकरण वापस लेने का निर्णय ले चुकी है। जल्द ही राज्य शासन की ओर से जिलों को केस वापस लेने संबंध में गाइडलाइन जारी कर दी जाएगी।
एट्रोसिटी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अनुसूचित जनजाति वर्ग ने दो अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया था। जिसका सबसे ज्यादा असर भिंड, ग्वालियर, मुरैना में रहा। ग्वालियर में बंद समर्थकों ने सड़कों पर जमकर उत्पात मचाया। इस दौरान भीड़ ने शहर में तोड़फोड़, आगजनी, पथराव, निजी व शासकीय संपत्तियों को जमकर नुकसान पहुंचाया। उपद्रवियों के आक्रोश को देखते हुए पुलिस को भी भागना पड़ा। इसके बाद दूसरा वर्ग भी हथियार लेकर सड़कों पर आ गया। थाटीपुर में हुई गोलीबारी में दो युवकों की मौत हो गई, जबकि एक युवक की डबरा में मौत हुई।
सरकार को है अधिकार
सरकार चाहे तो जनहित में किसी का भी केस वापस ले सकती है। सीआरपीसी में केस वापस लेने का प्रावधान है। जिस केस को वापस लिया जा रहा है, मामला गंभीर अपराध से जुड़ा नहीं होना चाहिए। केस वापस लेने के लिए सरकार को कोर्ट में आवेदन पेश करने होंगे। न्यायालय के विवेक पर निर्भर करेगा कि केस वापस करना है या नहीं।