ग्वालियर, अतुल सक्सेना
कांग्रेस (Congress) में उपेक्षा और कमलनाथ (Kamalnath) के सड़क पर उतरने के बयान से आहत होकर भाजपा bjp में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) अगस्त के महीने में मध्यप्रदेश (MadhyPradesh) की राजनीति में जबरदस्त गर्माहट लाने जा रहे हैं ।’अंग्रेजों भारत छोड़ो’ की तर्ज पर अब ग्वालियर चंबल अंचल में सिंधिया कई ऐसे कांग्रेसियों को कांग्रेस छोड़ भाजपा की सदस्यता दिलाने जा रहे हैं जो कभी स्वर्गीय माधवराव सिंधिया या ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थक रहे हैं ।इसके लिए बाकायदा ग्वालियर चंबल अंचल में बीजेपी के नेतृत्व में व्यापक पैमाने पर सदस्यता अभियान चलाया जाएगा ।
दरअसल, 22 अगस्त को ग्वालियर, 23 अगस्त को मुरैना और 24 अगस्त को भिंड के कार्यकर्ताओं का सदस्यता अभियान चलेगा जहां बीजेपी के मुख्यमंत्री शिवराज, गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, प्रदेश अध्यक्ष (State President) वीडी शर्मा (VD Sharma) और केंद्रीय मंत्री (Central Minister) नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) भी शामिल होंगे। सिंधिया की अगुवाई में होने वाले इस महा सदस्यता अभियान में पार्टी को उम्मीद है कि हजारों लोग कांग्रेस का दामन थाम कर बीजेपी का दामन थामेंगे। दरअसल मध्य प्रदेश की कुल 27 विधानसभा सीटों में से 16 विधानसभा सीटें ग्वालियर चंबल अंचल में आती हैं जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया का अच्छा खासा प्रभाव है। बीजेपी ज्वाइन करने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति में इतनी सक्रियता नहीं दिखी जितनी उम्मीद की जा रही थी और इसका एक बड़ा कारण कोरोना संक्रमण और खुद सिंधिया का भी कोरोना संक्रमित होना था। लेकिन अब सिंधिया एक नई पारी की शुरुआत धमाकेदार अंदाज में करने जा रहे हैं और कभी उनकी दादी स्वर्गीय विजय राजे सिंधिया का गढ़ रहा ग्वालियर चंबल अंचल एक बार फिर भाजपा के केसरिया रंग में रंगेगा, इस बात की समर्थकों को पूरी उम्मीद है।
राजनीतिक दृष्टिकोण के अलावा अगर आम जनता में लोकप्रियता की बात करें तो सिंधिया आज भी ग्वालियर चंबल अंचल में महिलाओं और युवाओं की पहली पसंद बने हुए हैं ।अंचल में लोगों का मानना है कि सिंधिया के साथ अन्याय हुआ है और मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सत्ता में 15 साल बाद वापसी के बाद मुख्यमंत्री पद का हकदार अगर कोई था तो वह ज्योतिरादित्य सिंधिया थे लेकिन आलाकमान ने उनकी जगह कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया। यहां तक तो ठीक था लेकिन सिंधिया और उनके समर्थकों के साथ जिस तरह का दोयम दर्जे का व्यवहार किया गया, उसके कारण सिंधिया ने पार्टी छोड़ने का जो निर्णय लिया, वह पूरी तरह से उचित था। हालाकि जनता के मन में क्या है, यह तो उपचुनाव के परिणाम ही बताएंगे लेकिन फिलहाल मध्य प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर सरगर्मी तेजी से बढ़ गई है।