भोपाल। मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार की जय जवान फसल ऋण माफी योजना के क्रियान्वयन के समय गंभीर मामले सामने आ रहे हैं। पहली बार बकायेदार किसानों की सूची ग्राम सभा में प्रकाशित होने से यह साफ हो रहा है कि किस किसान ने ऋण लिया और किसने नहीं। हजारों ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें किसानों ने कभी लोन लिया ही नहीं लेकिन किसानो के नाम पर फर्जी लोन दर्ज कर दिया गया और शून्य प्रतिशत ब्याज का लाभ लेने के साथ-साथ भारत सरकार और राज्य सरकार की ब्याज अनुदान की राशि भी सहकारी समितियों के द्वारा हड़प ली गई। हैरत की बात यह है कि इस मामले में कभी राज्य सरकार के आला अधिकारियों ने यह जानने की कोशिश भी न
कि आखिरकार उनकी नाक के नीचे इतना बड़ा घोटाला कैसे चल रहा है। इस पूरे मामले में यदि राजस्व विभाग और सहकारिता विभाग सजग रहते तो शायद किसानों के साथ इतनी बड़ी धोखाधड़ी न होती। दरअसल सहकारिता अधिनियम मे साफ प्रावधान है कि कृषकों के द्वारा लिए गए ऋण की सूची प्रतिवर्ष तहसीलदार को भेजी जाए और कृषक की ऋण पुस्तिका में प्रविष्ट की जाए। वर्तमान में राजस्व ऑनलाइन होने से सं���ंधित कृषक के भू राजस्व अभिलेखों में भी प्रविष्टि करने की सुविधा है। इस सुविधा का लाभ व्यवसायिक बैंक ले रहे हैं परंतु सहकारी बैंकों द्वारा दिए जा रहे लोन की प्रविष्टि कृषको के भू राजस्व अभिलेखों में ऑनलाइन नहीं की जा रही है। इस पूरे मामले में यदि किसी भी जिले के कलेक्टर ने थोड़ी सी मॉनिटरिंग की होती तो यह मामला आसानी से पकड़ में आ जाता। लेकिन हैरत की बात यह है कि पिछले 15 सालों में किसी भी प्रशासनिक अधिकारी ने इस मामले पर ध्यान नहीं दिया और सहकारिता विभाग के अधिकारी तो मानो आंखों में पट्टी बांध कर बैठे थे। जिस तरह से मध्य प्रदेश के किसानों के साथ धोखाधड़ी की गई और न केवल किसानों बल्कि राज्य सरकार के साथ भी धोखाधड़ी की गई इससे साफ दिखता है कि मामला इतना सीधा और छोटा नहीं जितना दिखाई देता है। इस मामले की गंभीरता से जांच की जाए तो साफ तौर पर इस मामले के तार सीधे भोपाल में बैठे आला अधिकारियों और राजनेताओं से जुड़े नजर आएंगे जो सहकारिता की आड़ में मध्यप्रदेश के साथ बड़ा धोखा कर रहे थे।