भोपाल। मध्य प्रदेश में नई सरकार के गठन के बाद से ही केंद्र और राज्य के बीच टकराव जारी है| प्रदेश में कांग्रेस केंद्र सरकार पर भेदभाव के आरोप लगाते हुए भाजपा सांसदों का घेराव कर चुकी है, केंद्र सरकार ने विभिन्न योजनाओं के तहत मप्र के हिस्से का पैसा नहीं दिया है। जिससे केंद्र पोषित योजनाओं के काम प्रभावित हो रहे हैं। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मप्र के हिस्से की राशि मांगने के लिए मंत्रियों को दिल्ली जाकर केंद्र पर दबाव बनाने को कहा है। मंत्रियों का दिल्ली जाने का सिलसिला इसी हफ्ते से शुरू हो जाएगा। मंत्री अलग मंत्री और विभागों के अधिकारियों से मिलकर मप्र के हिस्से पैसा देने की मांग रखेंगे। मंत्रियों के साथ विभागीय अधिकारी भी रहेंगे।
मंत्री जीतू पटवारी ने इस सम्बन्ध में कहा कि प्रदेश में भाजपा के बड़े नेता राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए हमेशा आगे रहते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश का पैसा अटका हुआ है उसे केंद्र से दिलाने आगे नहीं आते| बता दें कि केंद्र ने समर्थन मूल्य पर खरीदे गए सात लाख मीट्रिक टन गेहूं का पैसा अभी तक नहीं दिया है। इस संबंध में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर केंद्रीय मंत्री से मुलाकात करेंगे। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री कमलेश्वर पटेल भी मनरेगा सहित अन्य योजनाओं की लंबित राशि हासिल करने का प्रयास करेंगे। राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत भेल की जमीन लौटाने और राहत पैकेज की राशि देने, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री सुखदेव पांसे ग्रामीण नलजल परियोजनाओं की लंबित राशि हासिल करने के लिए दिल्ली जाएंगे। वहीं, वरिष्ठ अधिकारी भी केंद्रीय सचिवों से मुलाकात करके प्रदेश के लंबित कामों को पूरा करने में जोर लगाएंगे।
मार्च से पहले ज्यादा राशि लाने पर फोकस
राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है। हर महीने सरकार कर्ज उठा रही है। ऐसे में सरकार की कोशिश है कि अगले तीन महीने के भीतर केंद्र से ज्यादा से ज्यादा राशि ली जाए। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी अफसरों से कहा है कि जनवरी, फरवरी और मार्च काफी अहम हैं। केंद्र सरकार को इन महीनों में राशि खर्च करनी होती है, जो राज्य लगातार संपर्क में रहते हैं, उन्हें इसका लाभ मिलता है। मुख्यमंत्री ने अफसरों को हिदायत दी है कि इसके लिए पत्र लिखने की खानापूर्ति नहीं होना चाहिए।
इन योजनाओं का पैसा केंद्र में अटका
राज्य ने केंद्र सरकार की नीतियों के तहत किसानों से गेहूं खरीदा। इसमें से सात लाख मीट्रिक टन गेहूं का सेंट्रल पूल में उठाव कराने का मामला अभी तक अटका हुआ है। यदि यह गेहूं केंद्र नहीं लेता है तो राज्य के ऊपर 1400 करोड़ रुपए का अतिरिक्त वित्तीय भार आ जाएगा। भावांतर भुगतान योजना के एक हजार करोड़ रुपए अभी तक नहीं मिले हैं। इसी तरह फसल बीमा योजना में केंद्रांश बीमा कंपनियों को मिलना बाकी है। इसके बिना किसानों को फसल बीमा का भुगतान नहीं होगा। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के करीब 492 करोड़ रुपए केंद्र के स्तर पर लंबित हैं। इसमें मजदूरी के 200 करोड़ रुपए से अधिक हैं। विभागीय मंत्री कमलेश्वर पटेल का कहना है कि इस राशि के लिए केंद्र को पत्र लिखा जा चुका है। इस बार फिर केंद्रीय मंत्री से मुलाकात कर राशि उपलब्ध कराने की मांग की जाएगी। वहीं, ग्रामीण पेयजल परियोजना के करीब 500 करोड़ रुपए केंद्र सरकार से मिलना अभी बाकी है। इसको लेकर लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री सुखदेव पांसे केंद्रीय मंत्री और अधिकारियों से मिलेंगे।