Vikram Samvat History: उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य ने की थी विक्रम संवत की शुरुआत, 2080 साल पुराना है इतिहास

Diksha Bhanupriy
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Vikram Samvat History

Vikram Samvat History Hindi: आज देशभर में गुड़ी पड़वा का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है, जो हिंदू नव वर्ष का पहला दिन कहा जाता है। आपको बता दें कि हिंदू नव वर्ष के कैलेंडर की शुरुआत मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर से हुई थी। सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की शुरुआत की थी और उसी समय से इसे नव वर्ष के रूप में मनाया जाता आ रहा है।

यहां जानें Vikram Samvat History

कर्क रेखा और भूमध्य रेखा का क्रॉसिंग पॉइंट उज्जैन ही है और यह महाकाल का निवास स्थान होने की वजह से राजा विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की शुरुआत की थी। गुड़ी पड़वा को सृष्टि के आरंभ का दिन कहा जाता है जो अरबों साल पुराना दिन है। चैत्र शुक्ल सृष्टि का सबसे पहला और पुराना दिन कहा जाता है और आज इसकी शुरुआत हुए को लगभग एक अरब 95 करोड़ 58 लाख 81 हजार 124 वर्ष बीत चुके हैं।

Vikram Samvat History

सबसे अधिक प्रचलित है विक्रम संवत

102 ईसा पूर्व जन्म लेने वाले सम्राट विक्रमादित्य ने 57 ईसा पूर्व शक साम्राज्य का पतन कर उनके कैलेंडर को विक्रम संवत से परिवर्तित किया। आज से 2080 वर्ष पहले हिंदू नव वर्ष की शुरुआत हुई थी और उस समय विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे। 60 से ज्यादा संवत है लेकिन सबसे ज्यादा प्रचलित विक्रम संवत है।

Vikram Samvat History

अंग्रेजी कैलेंडर से 57 साल आगे

विक्रमादित्य के शासनकाल में सबसे बड़े खगोल शास्त्री रहे वराह मिहिर की सहायता से ही इस संवत को बहुत प्रचार-प्रसार मिला।

अंग्रेजी कैलेंडर विक्रम संवत के कैलेंडर से 57 वर्ष पीछे चल रहा है। कैलेंडर के मुताबिक साल 2023 चल रहा है लेकिन विक्रम संवत 2080 वर्ष तक पहुंच चुका है।

कहीं नहीं हुआ ऐसा साम्राज्य

ना कभी अतीत में हुआ है ना भविष्य में होगा इस किवंदित को राजा विक्रमादित्य ने सच कर दिखाया है। विक्रमादित्य ने अपने नाम के मुताबिक दुनियाभर में सफलता का परचम कुछ इस तरह लहराया की पूरा विश्व देखता रह गया।

सम्राट ने पूरे एशिया पर अपना शासन जमाया था इसी के साथ चीन, मध्य एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के कुछ भाग में भी उनका शासन फैला हुआ था। ये अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा साम्राज्य है और इसके बाद कोई भी शासक अपने साम्राज्य को इतनी भव्यता नहीं दे सका।

बेताल पच्चीसी और सिंहासन बत्तीसी

बेताल पच्चीसी उन 25 कहानियों को कहा जाता है जो बेताल ने राजा विक्रमादित्य को सुनाई थी। इन्हीं के जरिए बेताल ने सम्राट की न्याय प्रियता की परीक्षा ली थी। इन कहानियों को कब लिखा गया इस बारे में कोई नहीं जानता है लेकिन कहा जाता है कि यह सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल के दौरान ही लिखी गई थी।

 

कहानियों के मुताबिक राजा विक्रमादित्य रोजाना एक साधु के कहने पर शमशान के पेड़ से बेताल को अपनी पीठ पर बैठाकर अनुष्ठान स्थल पर ले जाते थे और बेताल उन्हें इस शर्त पर कहानी सुनाता था कि वह कुछ बोलेंगे नहीं लेकिन अपनी न्याय प्रियता के चलते सम्राट को बोलना पड़ता था और बेताल फिर से पेड़ पर बैठ जाया करता था।

सिंहासन बत्तीसी के बारे में यह कहा जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य इसी पर बैठकर न्याय करते थे और इस पर बने 32 मुख इसमें उनकी सहायता किया करते थे। कालांतर में यह सिंहासन गायब हो गया और सालों बाद राजा भोज ने इसकी वापस खोज करवा कर जब इस पर बैठना चाहा तो 32 पुतलियां हंस पड़ी और राजा विक्रमादित्य की महानता का बखान करने लगी।

नववर्ष पर कार्यक्रम

सम्राट विक्रमादित्य बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन के राजा थे इसलिए हर साल गुड़ी पड़वा के दिन हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस पर्व को यहां बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है और कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। शिप्रा नदी के तट पर सूर्य को अर्ध्य देकर और शंख बजाकर नव वर्ष का शुभारंभ किया जाता है।


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"पत्रकारिता का मुख्य काम है, लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को संदर्भ के साथ इस तरह रखना कि हम उसका इस्तेमाल मनुष्य की स्थिति सुधारने में कर सकें।” इसी उद्देश्य के साथ मैं पिछले 10 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम कर रही हूं। मुझे डिजिटल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का अनुभव है। मैं कॉपी राइटिंग, वेब कॉन्टेंट राइटिंग करना जानती हूं। मेरे पसंदीदा विषय दैनिक अपडेट, मनोरंजन और जीवनशैली समेत अन्य विषयों से संबंधित है।

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