भिंड,सचिन शर्मा। मध्यप्रदेश के भिंड (Bhind) जिले में प्रशासन ने मीडियाकर्मियों पर दबाव बनने के लिए जिले की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था को उजागर करती खबर चलने पर तीन पत्रकारों पर फ़ॉर्जरी समेत अन्य धाराओं में एफआईआर दर्ज कराई है इस मामले में फेक न्यूज का हवाला दिया गया है। जबकि पीड़ित पत्रकारों का दावा है कि खबर सत्य होने के बाद भी षड्यंत्र पूर्ण तरीके से मामला दर्ज किया गया है जबकि उनके पास वे सभी सबूत मौजूद हैं जिनसे साबित होता है कि इन अधिकारियों द्वारा झूठी FIR दर्ज कराई है।
– क्या है पूरा मामला
भिंड जिला प्रशासन ने अपनी नाकामी छुपाने के लिए पत्रकारों को बलि का बकरा बना कर उन पर गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज करा दी है, मामला दरअसल भिंड जिले के आखरी छोर पर बसे दबोह इलाके का है, जहां से 3 दिन पहले अपने बीमार वृद्ध पिता को चार पहिए के ठेले पर इलाज कराने ले जाते हुए वीडियो उसके बेटे की बाइट के साथ वायरल हुए थे, जिसमें उसका बेटा बता रहा था कि उनके पास ना तो आयुष्मान कार्ड है, ना ही मोबाइल है, उसने 13 अगस्त को अन्य लोगों को मोबाइल मांग करके 108 एंबुलेंस को कई बार कॉल लगाए लेकिन उनके कॉल रिसीव नहीं हुए, इस वजह से उनको बीमार मरीजों के लिए उपलब्ध 108 एंबुलेंस सेवा की सुविधा नहीं मिल सकी, जिस वजह से तीन दिन से इलाज के लिए अपने पिता को चार पहिए के ठेले पर रखकर अपने गांव मारपुरा से पांच किलोमीटर दबोह मैं इलाज के लिए ले जा रहा है। इस मामले के संबंध में उसी दिन लहार ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर धर्मेंद्र श्रीवास्तव से बात की गई तो उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत करा कर मामले की जांच कराने का आश्वासन दिया था।
-पीड़ित परिवार के कथन दिखाकर दर्ज कराई एफआईआर
मीडिया संस्थानों ने पीड़ित के वक्तव्य और ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर के ऑफिशियल स्टेट्मेंट (बाइट) के साथ प्रकाशन और प्रसारण किया. लेकिन, अखबारों और न्यूज़ चैनल पर इस खबर को चलने के बाद जिला प्रशासन में हड़कंप मचा गया और आनन-फानन में भिंड कलेक्टर के आदेश पर अचानक जाँच के आदेश हुए जिसके बाद दबोह तहसीलदार, पटवारी, ग्राम पंचायत सचिव, सरपंच एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों सहित दल बल के साथ पीड़ित के घर पहुंचे और मामले की जांच कर कलेक्टर को सौंपे प्रतिवेदन में बताया कि पीड़ित ग्याप्रसाद और उनकी पत्नी कौशल्या दोनों को वृद्धावस्था पेंशन प्राप्त होती है, गरीबी रेखा कार्ड भी है, प्रधानमंत्री किसान कल्याण योजना, मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना का लाभ भी मिलता है, और उनके पास 2 बीघा भूमि भी है, ग्याप्रसाद विश्वकर्मा और उनके बड़े बेटे पूरन विश्वकर्मा के नाम अलग-अलग प्रधानमंत्री आवास मिले हुए हैं, जिनमें एक की पहली किस्त मिल चुकी है और दूसरे का काम शुरू होने वाला है, पीड़ित जिस चार पहिए के ठेले पर पिता को ले जा रहा है उसका वह अपना ठेला है और उस पर पानीपुरी का व्यवसाय करता है, हाथ हाई जाँच रिपोर्ट में बताया गया कि उसने एंबुलेंस को कोई भी कॉल नहीं किया है, अतः भ्रामक जानकारी का वीडियो वायरल करने के कारण संबंधित पत्रकार के विरुद्ध कार्रवाई की अनुशंसा की जाती है।
-इन धाराओं में दर्ज कराया गया केस
इस पूरे मामले में जांच प्रतिवेदन एक पत्रकार के लिए होने के बावजूद भी जिले के दो और पत्रकारों सहित कुल तीन पत्रकारों पर गैर जमानती संगीन धाराओं में दबोह पुलिस स्टेशन में धारा 420 (जालसाजी), 505 (2) (वर्गों के बीच शत्रुता, घृणा या दुर्भावना पैदा करने या बढ़ावा देने वाले बयान) और आईटी एक्ट की 66 (एफ) 1 के तहत मामला दर्ज कराया गया. इस केस में फरियादी लहार शासकीय अस्पताल के मेडिकल ऑफ़िसर को बनाया गया।
– पीड़ित परिवार को धमकाया फिर कोरे कागज पर कराए हस्ताक्षर, तैयार किया झूठा बयान
मामला दर्ज होने के बाद स्थानीय पीड़ित पत्रकार कुंज बिहारी कौरव एक बार फिर पीड़ित के घर पहुंचे और देखा तो ग्याराम जिस घर में छोटे बेटे के साथ रहे थे वह बांस ओर घासफूस से बनी हुई छोटी सी झोपड़ी है, छोटे बेटे हरिसिंह को नाही किसी प्रकार का आवास मिला है,उससे बातचीत की तो पीड़ित गया प्रसाद विश्वकर्मा और उसके छोटे बेटे हरि सिंह विश्वकर्मा ओर बेटी ने बताया कि उनके घर पर तहसीलदार सहित कल चार पांच लोग पहुंचे और उन्होंने दबाव बनाते हुए कहा कि कोरे कागजों पर दस्तखत कर दो अन्यथा आपकी सारी योजनाएं और उनका लाभ वापस ले ली जाएंगी, साथ ही जुए के केस में आपको जेल में भी बंद करा दिया जाएगा इस तरह हरि सिंह पर दबाव बनाकर कोरे कागज पर साइन करा ले गए, साथ हो बड़े बेटे पूरन सिंह से भी दस्तखत कराए गए। गरीब ग्याप्रसाद के परिवार द्वारा हस्ताक्षर कराए गए कोरे कागज के प्रतिवेदन से जांच प्रतिवेदन के आधार पर भोपाल जनसंपर्क द्वारा फैक्ट चेक के माध्यम से पोस्टर जारी किया गया जिसमें कई मीडिया संस्थानों द्वारा चलाई गई उस खबर को गलत साबित किया गया।
-जनसम्पर्क भोपाल ने फ़ैक्ट चेक के माध्यम से मीडिया की खबर को बताया फेक
अब सवाल उठता है कि आखिर भिंड जिला प्रशासन पत्रकारों पर सामाजिक सरोकार वाली खबर दिखाए जाने पर इतना क्यों बौखलाया हुआ है, उन पर FIR करवानी पड़ रही है, क्या भिंड जिला प्रशासन सभी सरकारी योजनाओं को लागू करवाने में नाकाम रहा है, जिस वजह से पत्रकारों पर दबाव बनाकर खबरों को चलाए जाने से रोका जा सके या मध्यप्रदेश का जनसंपर्क विभाग सही खबर को गलत तरीके से जिला प्रशासन द्वारा सही बता कर फैक्ट चेक के माध्यम से सवालिया निशान खडे कर सकता है. हालांकि केस दर्ज होने के बाद भिंड जिले के पत्रकार इतना डरे हुए हैं, कि प्रशासन को आईना दिखाने वाली खबर आगे भी चलाने की हिम्मत नही जुटा पा रहे हैं साथ ही जिन तीनों पत्रकारों पर FIR हुई है वह कुछ भी बोलने से भी इंकार कर रहे हैं, उनको डर है कि कहीं अगर प्रशासन के खिलाफ कुछ बोलते हैं, तो उनकी तुरंत ही गिरफ्तारी करा कर जेल में डलवाया जा सकता है।
नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह जी को मिली तब उन्होंने इसकी घोर निंदा की साथ ही कहा जिला प्रशासन का रवैया लोकतंत्र का गला घोंटने वाला है। उन्होंने कहा कि कलेक्टर ने पीड़ित की मदद करने की वजह उनको डरा धमकाकर असत्य बयान लिखाए गए और उसी के आधार पर पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई, साथ ही लहार एसडीएम ने पीड़ित को धमकाकर बोला शासन की जो तमाम योजना मिल रही है उनको बंद कर दिया जाएगा। और आपके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाएगी।
नेता प्रतिपक्ष ने आगे कहा मुख्यमंत्री जी ऐसे निकम्मे अधिकारी जो पत्रकारों पर फर्जी मुकदमा दर्ज करते है उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज होना चाहिए। उन्होंने आगे कलेक्टर को चेतावनी दी कहा कि आप जनता के सेवक है न की मालिक, आप ब्रिटिश सरकार की तरह काम कर रहे है, मगर याद रहे कि यहां के लोगों ने ब्रिटिश सरकार को भी सबक सिखाया था।