Ramayan : हिंदू धर्म के महान ग्रंथों में से एक रामायण भी है, जिसे संस्कृत भाषा में लिखा गया है। यह आदर्श जीवन, मर्यादा, कर्तव्य और प्रेम का प्रतीक है। यह महाग्रंथ भगवान श्री राम के जीवन और उनके संघर्षों का वर्णन करता है। भगवान राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। जिनका का जन्म पावन नगरी अयोध्या में राजा दशरथ के घर हुआ था। उनकी शादी माता सीता से हुई, जो जनकपुर के राजा जनक की पुत्री थीं। इस ग्रंथ में 24,000 श्लोक और सात अध्याय है।
रामायण में बहुत सारे पात्रों के बारे में आपने सुना होगा, पर आज हम आपको त्रिजटा के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसकी सेवा से प्रसन्न होकर माता सीता ने उन्हें आशीर्वाद भी दिया था।
यह राक्षसी करती थी मां सीता की सेवा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रिजटा राक्षस कुल की थीं, लेकिन उनकी दयालुता और अच्छे स्वभाव के कारण उन्हें आज भी याद किया जाता है। त्रिजटा लंकेश्वर रावण के भाई विभीषण की पुत्री थीं। उनका यह स्वभाव उनके पिता के संस्कारों का परिणाम था। जब रावण द्वारा माता सीता का हरण कर उन्हें लंका के अशोक वाटिका में रखा गया था, तब त्रिजटा ने माता सीता की बहुत मदद की थी।
इस जगह होती है पूजा
कथाओं में इस बात का वर्णन किया गया कि जब राक्षसी माता सीता को परेशान करते थे, तो त्रिजटा उन्हें उन सभी से बचाती थीं। त्रिजटा ने भगवान श्री राम के लंका में प्रवेश करने की जानकारी भी माता सीता को देती थी। साथ ही उनका ढांढ़स बांधती थी। वहीं, युद्ध खत्म होने के बाद जब भगवान श्री राम ने लंका विभीषण को सौंप दिया। इसके बाद त्रिजटा भी माता सीता के साथ अयोध्या गई थी और उनकी सेवा किया करती थी। त्रिजटा की सेवा और भक्ति से प्रसन्न होकर माता सीता ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कलयुग में देवी के रूप में उनकी पूजा की जाएगी। इसलिए आज वाराणसी में त्रिजटा का एक मंदिर है, जहां उनकी पूजा-अर्चना होती है।
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