भोपाल। रंगों का त्यौहार होली जहां एक तरफ रंगों के साथ खुशियां लाता है वहीं दूसरी तरफ बदलते दौर के साथ इसमें कई तरह के बदलाव भी हुए हैं, इस बारे में बात करते हुए साहित्यकार और लेखक श्याम मुंशी ने बताया कि नवाबी दौर में होली एक अलग ही अंदाज में मनाई जाती थी नवाब हमीद उल्लाह खान महल क़सरे सुल्तानी यानी अब जहां सेफिया कॉलेज लगता है यह अहमदाबाद में स्थित है। यहां नवाब साहब शहर के प्रतिष्ठत लोगों को बुलाते थे और होली मिलन समारोह की तरह यह आयोजित किया जाता था। यह दौर सन् 1926 से 1949 तक हमीद उल्लाह खां के समय में रहा।
होते थे कवि सम्मेलन और मुशायरे
श्याम मुंशी ने बताया कि उस दौर में होली के जुलूस निकला करते थे। यहां रात में होली के जलते ही शहर में कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरु हो जाते थे। शहर में कव्वाली, कवि सम्मेलन, राई नाच और लोक गीत आदि होते थे। यह सुबह तक चलते थे। फिर सुबह होली का रंग शुरु हो जाता था।
यादगारे शाहजानी में होता था गेट टू गेदर
श्याम मुंशी कहते हैं कि उस समय दिन में होली खेलने के बाद लोग अच्छे से तैयार होकर शाम को यादगारे शाहजानी पार्क पहुंचते थे, यहां पर पूरे शहर के लोगों के लिए एक गेट टू गेदर आयोजित किया जाता था। यहां एक अच्छी होली मिलन पार्टी आयोजित की जाती थी। इस दौरान खूब मिठाईयां तकसीम की जातीं थीं। नवाब साहब सभी को इनवाइट करते थे इसमें हर धर्म के लोग शामिल होते थे: नवाब हमीद उल्लाह खां के दौर में होली के समय चौक बाजार में बिकतीं मिठाइयां