भोपाल, रवि नाथानी। राजधानी भोपाल (Bhopal) में मानसून सक्रिय होते ही भोपाल के व्यापारिक नगर बैरागढ़ का हाल बेहाल हो चुका है। इस सडक़ से हजारों छोटे-छोटे बच्चे और गल्र्स कालेज की छात्राएं आना-जाना करते है, लेकिन बावजूद इसके सडक़ पर दो फिट गहरे गड्डे हो गए है और इनमें पानी भर जाने से महिला वाहन चालक गिर रही है। इसके बाद भी निगम का अमला इधर कोई ध्यान नहीं देता। दूसरी तरफ झमाझम बारिश का सिलसिला लगातार जारी है। भोपाल में कभी तेज तो कभी रिमझिम हो रही बारिश ने नगर निगम की पोल खोल दी है।
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बारिश ने शुरूआती दिनों में ही आफत मचा दी है। बारिश से संतनगर जोन बेहाल हो गया है। जोन के अंतर्गत आने वाले 5 वार्डो में बारिश का कहर देखा जा सकता है। गांधीनगर, सीटीओ, भौंरी या फिर संतनगर के दो वार्डो की बात करें तो सभी पानी-पानी हो गए हैं। आसमान से हो रही तेज बारिश के बाद संतनगर जलमग्न हो रहा है और ऐसा लग रहा है जैसे बाढ़ की स्थिति आ गई हो। सडक़ों से लेकर इस बार गलियों में भी घुटनो तक पानी भर चुका है और मकानों से लेकर दुकानों में पानी भरने से नुकसान हो रहा है। बारिश में हर साल संतनगर में जलभराव की स्थिति बनती है, फिर भी नगर निगम कोई कदम नहीं उठाता। नाले नालियों की सफाई में खानापूर्ति की जा रही है। साल दर साल बारिश का मौसम शुरू होते ही स्थिति बिगड़ रही है फिर भी ना तो नेता ध्यान दे रहे है ना ही अफसरो को कोई चिंता है और भुगतना जनता को करना पड़ रहा है
अधिकारी नहीं उठाते फोन
जब सीवेज का टैक साफ करवाने के लिए और चौक को खुलवाने के लिए श्री मारन ने पीएचई के अधिकार आर .के चावला जिनका नंबर 9300034688 है। इसपर कई बार फोन करने पर कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई। उन्होनें फोन तक उठाना जरूरी नहीं समझा। ऐसे में अधिकारी पूरे तरीके से बे-परवाह बने हुए है। बरसात के मौसम में अगर रात में घरों में पानी घुस जाए और बाढ़ जैसे हालात बन जाए,उस समय भी ये अधिकरी सर पर कंबल डाल कर सोते हुए नजर आएंगे। यहाँ रहने वाले लोगों का कहना है की इन अधिकारियों पर तत्काल कारवाई होनी चाहिए।
सड़क को लग कहते हैं “दो फिट गहरे गड्डों की सडक़”
संत नगर के सडक़ों की हालत भी बत से बत्तर हो चुकी है। उपनगर के ओल्ड डेरी फार्म की सडक़ जहां से कई स्कूल और गलर्स कालेज है। यहां पर गड्डों भरी सडक़ से वाहन चालक परेशान है। छोटे-छोटे बच्चों को स्कूल लेने और छोडऩे के लिए परिजन यहां सुबह और दोपहर में आते है, इसमें कई महिलाएं होती है। इन गड्डों में वाहनों के पहिये धसने से वे सडक़ पर गिर जाती हैं। प्रशासन को इन सडक़ों को भरने तक की फुर्सत तक नहीं है। निगम का अमला इन सडक़ों को भरने तक की जहमत नहीं उठा रहे बनाने की बात ही दूर है।