MP ELECTION : यहां बेटे के लिए मंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर, कांग्रेस से ज्यादा BSP से डर

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भोपाल/सतना

मध्यप्रदेश की कई ऐसी सीटे है जहां बीजेपी के साथ साथ मंत्रियों की साख भी दांव पर लगी हुई है। जहां वंशवाद की बेल सूबे की राजनीति को आगे बढ़ा रही है। हम बात कर रहे है सतना जिले रामपुर बघेलान विधानसभा सीट की, जो किसी जमाने में कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, यहां से पूर्व मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह विधायक रह चुके हैं। लेकिन अब इस सीट पर गोविंद सिंह के बेटे हर्ष नारायण सिंह का कब्जा है लेकिन वो बीजेपी से विधायक हैं। हर्ष सिंह के दादा अवधेश प्रताप सिंह विंध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे और आजादी के लड़ाई में उनकी अहम भूमिका रही। लेकिन जनता विधायक द्वारा क्षेत्र के विकास कार्य में ध्यान न देने से काफी नाखुश है, जिसका असर आने वाले चुनाव पर पड़ सकता है।वही बसपा का भी इस सीट पर अच्छा खासा प्रभाव है, जिसके कारण मुकाबला त्रिकोणीय होता दिखाई दे रहा है।

दरअसल, हर्ष सिंह को राजनीति विरासत में मिली है, इसी वजह से क्षेत्र में उनका दबदबा कायम है। चुनाव के समय वोटरों को कैसे लुभाना है यह उन्हें बखूबी आता है। हर्ष सिंह खुद चार बार विधायक (दो बार कांग्रेस, एक बार समानता दल और एक बार भाजपा) रहे हैं। अब इसी परिवार की चौथी पीढ़ी से उनके बेटे विक्रम सिंह मैदान में है।विक्रम सिंह नगर पंचायत रामपुर बघेलान में अध्यक्ष है।  वही 1985 के बाद से जीत को तरस रही कांग्रेस ने इस ब्राह्मण बाहुल्य सीट पर स्थानीय ब्राह्मण रामशंकर पयासी को उतारा है।

वही भाजपा को टक्कर देने के लिए बसपा आज भी एक मजबूत पार्टी मानी जाती है क्योंकि 2003 के चुनाव में बसपा ने भाजपा व कांग्रेस को परााजित कर 29.19 प्रतिशत वोट पाकर जीत हासिल की थी। बसपा के पूर्व विधायक रामलखन सिंह पटेल अपने प्रभाव और जातिगण समीकरण के भरोसे फिर मैदान में हैं। वे 2008 में हर्ष को हरा चुके हैं, इसलिए न तो उन्हें प्रत्याशी हल्के में ले रहे हैं, न मतदाता। पिछले तीन चुनाव में यहां मुकाबला भाजपा और बसपा के बीच ही रहा है। इसी कारण मुकाबला त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है।इस सीट पर पटेल, ठाकुर, ब्राह्मण जाति के मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं, इसलिए कांग्रेस, भाजपा व बसपा प्रत्याशी का चयन इसी आधार पर करती है।

पिछले आकंड़ों पर एक नजर

इस चुनाव में कांग्रेस की परंपरागत सीट पर सबसे पहले बीजेपी ने सेंध लगाई थी, तब बीजेपी के हर्ष सिंह को करीब 24 हजार वोटों के बड़े अंतर से जीत मिली थी. उनका मुकाबला बीएसपी के रामलखन सिंह से था, जिन्हें 47563 वोट हासिल हुए. कांग्रेस इस चुनाव में चौथे स्थान की पार्टी थी, उसे एक निर्दलीय उम्मीदवार से भी कम 5491 वोट मिले। इस सीट पर कुल 2.16 लाख मतदाता हैं, जिनमें से 1.51 लाख वोटरों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया।इस बार मुख्य मुकाबला बीएसपी और बीजेपी के बीच रहा, हालांकि नतीजों में बीएसपी के रामलखन सिंह ने 10718 वोटों से जीत दर्ज की। बीजेपी उम्मीदवार हर्ष सिंह को तब 26917 वोट हासिल हुए थे, इस चुनाव में कांग्रेस तीसरी पायदान पर रही और उसे 22845 वोट हासिल हुए।


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