भोपाल।
आज प्रचार प्रसार का आखिरी दिन है, लेकिन अंतिम दौर में भी भाजपा की मुश्किलें कम होने का नाम नही ले रही है।अब चुनाव से पहले भाजपा की चंदे की रिपोर्ट विवादों में घिर गई है। आरोप है कि अन्य दलों की तुलना में बीजेपी ने अपनी चंदे की कंट्रीब्यूशन रिपोर्ट चुनाव आयोग में बैकडेट में जमा की है। इस पर आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे ने आयोग पर सवाल उठाए है। दुबे का आरोप है कि देरी से रिपोर्ट जमा करने पर कहीं टैक्स छूट से हाथ न धोना पड़े, इसके लिए बीजेपी की रिपोर्ट बैकडेट में जमा हुई । ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या आयोग बीजेपी को इस मामले में ढील दे रहा है।
दुबे का आरोप है कि 31 अक्टूबर 2018 की आखिरी तारीख बीत जाने के बाद एक नवंबर 2018 तक चुनाव आयोग की वेबसाइट पर बीजेपी की रिपोर्ट उपलब्ध ही नहीं थी। मगर 18 नवंबर को हुई एक शिकायत के बाद अचानक 19 नवंबर को आयोग की वेबसाइट में कंट्रीब्यूशन रिपोर्ट का लिंक ठप हो गया और फिर 20 नवंबर को कुछ ही समय बाद वेबसाइट पर बीजेपी की रिपोर्ट शो होने लगी । इस रिपोर्ट को खोल कर देखने पर पता चलता है कि इस पर 31 अक्टूबर की तिथि दर्ज है। यानी आयोग की वेबसाइट पर भले ही बीजेपी की रिपोर्ट 20 नवंबर को अपलोड हुई, मगर उस पर तारीख तय समय-सीमा यानी 31 अक्टूबर की दर्ज रही। दुबे ने बताया कि 20 नवंबर को चुनाव आयोग की वेबसाइट पर अपलोड हुई बीजेपी की 31 अक्टूबर 2018 डेट की रिपोर्ट पर R & I सेक्शन की मुहर नहीं लगी है। सिर्फ डीजी एक्सपेंडिचर की मुहर और साइन है।
दुबे ने मांग है कि बीजेपी ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के सेक्शन 29 सी(3) (4) और चुनाव आचार संहिता 1961 के नियम 85 का उल्लंघन किया है, इसलिए इस गंभीर मामले में त्वरित एक्शन लिया जाए इस स्थिति में नियमानुसार बीजेपी सहित अन्य 30 क्षेत्रीय दलों को चंदे पर मिलने वाली टैक्स छूट रद्द कर 2017-18 में अर्जित चंदे और कमाई पर टैक्स वसूला जाए। इसके लिए आयोग बीजेपी पर एक्शन के लिए सीबीडीटी से सिफारिश करे।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 प्रावधान
दरअसल, आयोग के नियुमानुसार, चुनाव से पहले राजनीतिक दलों को साल में एक बार इनकम टैक्स रिटर्न के साथ 20 हजार या अधिक चंदा देने वाले लोगों के नाम और पते के बारे में जानकारी वाली कंट्रीब्यूशन रिपोर्ट देनी होती है। यदि वह रिपोर्ट सबमिट करने में पार्टी फेल होती है तो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट उन्हें चंदे पर टैक्स की छूट नहीं दे सकता। ऐसा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में स्पष्ट प्रावधान है। अगर राजनीतिक दल समय-सीमा के भीतर रिपोर्ट दाखिल नहीं करते तो उन्हें चंदे पर टैक्स छूट का लाभ नहीं मिल सकता।