हालाँकि जब प्रधानमंत्री जी कह रहे थे तब उनकी इस परिभाषा पर संसद में ठहाका लगा । पर प्रधानमंत्री जी ने जो कहा वह निराधार नहीं था और न कोई व्यंग वाक्य । वह तो देश का यथार्थ है । वाकई देश में कुछ चेहरे ऐसे हैं जो हर आँदोलन में दिखते हैं । और आँदोलन भी कौन सा जो सत्य और तथ्य पर नहीं बल्कि तार्किक भ्रम के आधार पर होता है ।प्रधानमंत्री जी ने जिन भी चेहरों और गतिविधियों को ध्यान में रखकर कहा उनके सहयोगी एक और वर्ग है । वह है आँदोलन सृष्टा का । यह वर्ग मीडिया (Media) प्रिय होता है । इस वर्ग की एक विशेषता होता है वह जानता है कि ऐसी पंच लाइन क्या होना चाहिए जो मीडिया में सुर्खी ले सके ।
वे कोई विषय उठाते हैं जिसकी ओर ध्यान आकर्षित हो । यह ठीक उसी तरह है जैसे सब लोग चप्पल पैर में पहनकर चलतें हैं, लेकिन कोई चप्पल हाथ में लेकर चले तो सब उसकी ओर देखने लगते हैं । बिना पूछे ही वह तर्क देखा कि चप्पल शरीर लेकर बहुत चली है । अब शरीर भी चप्पल लेकर चले । जो लोग ऐसा हुँकारा लगाते हैं वे आँदोलन सृष्टा हैं । उनकी बातों में एक नये आँदोलन की सृजना होती है । वह केवल चाय काफी की टेबल या मीडिया कैमरे के सामने केवल बहस तक सीमित हो या सड़कों तक भी आये । आँदोलन जीवियों पर निर्भर करता है ।2014 में एक वाक्य आया कि भारत रहने लायक नहीं बचा । इस पर महीनों बहस चली या चलाई गयी । ऐसा कहने वालों में से कोई कहीं नहीं गया । सबने भारत को ही रहने लायक माना । सब यहीं रहे ।
जिन लोगों ने यह बहस चलाई इनमें से ही कुछ लोगों ने कश्मीर में धारा 370 (Section 370 in Kashmir)समाप्त करने, कश्मीरी नागरिकों के मानवाधिकार का हरण माना, कुछ ने बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक (Balakot Surgical Strike) पर प्रश्न उठाये, कुछ ने कश्मीर में सैनिकों पर मानवाधिकार हनन के आरोप लगाये, शरणार्थी कानून, तीन तलाक (Triple talaq) धर्म स्वातंत्र्य विधेयक (freedom of religion bill), विदेशी निवेश, विकास के लिये भूमि अधिग्रहण, नये बांध बनाना आदि विषयों पर तार्किक आपत्ति लेकर सामने आते हैं । जो इस तरह शाब्दिक बहस आरंभ करते हैं उन्हे आँदोलन सृष्टा कह सकते हैं और जो इन तर्कों के आधार पर नारे लगाते हुये सड़कों पर आते हैं उन्हे आँदोलन जीवी कह सकते हैं ।
प्रधानमंत्री जी का संकेत इन सड़क पर आँदोलन करने वालों की ओर था । यह यथार्थ परक परिभाषा है । हम देख लें पिछले कुछ वर्षों में आंदोलन का विषय कोई हो लेकिन लेकिन कुछ विशेष चेहरे हैं जो सब जगह दिखाई देते हैं । वह बाँध की ऊँचाई बढ़ाने का विरोध हो, कश्मीर से धारा 370 का विरोध हो, वह शरणार्थी कानून का विरोध हो, वह जे एन यू का आँदोलन हो या अब दिल्ली में चल रहा किसान आँदोलन हो, उनमें से कुछ चेहरे सर्वत्र दिखाई दे रहे हैं । लगता है इनका जीवन आँदोलन के लिये ही हुआ और ये आँदोलन के लिये ही जी रहे हैं इसी लिये इनके लिये आँदोलन जीवी शब्द बहुत उपयुक्त है ।
इन आँदोलन जीवियों के पीछे आँदोलन सृष्टा होते हैं । वे सत्य पर या तथ्य पर बात नहीं करते केवल तर्क की बात करते हैं । चर्चा और आँदोलन का सूत्र वामपंथियों का होता है । वे ऐसी बात करते हैं, ऐसा तर्क गढ़ते हैं जिस पर सहसा कूछ सूझ न पड़े । पिछले हर आंदोलन के तर्क देख लीजिये । जो दिये गये या जो नारे उछाले गये उनका सत्य से कितना संबंध था ।कुछ बातें सुनने में और कहने में अच्छी लग सकती हैं । किसी को निरूत्तर कर सकती हैं पर उनका यथार्थ क्या है । ये आँदोलन सृष्टा और आँदोलन जीवी सत्य पर कोई बात नहीं करते और न अपनी बात के समर्थन में कोई तथ्य देते हैं । वे नारा उछालते हैं तर्क गढ़ कर अपनी बात पर अड़े रहते हैं । जैसा शरणार्थी कानून के समय हुआ । तब नारा उछाला गया कि अब मुसलमानों को अपनी नागरिकता का प्रमाणपत्र देना होगा । जबकि शरणार्थी कानून का भारत में निवास करने वाले किसी नागरिक से कोई संबंध नहीं था ।
अब कृषि कानून के समय नारा उछाला गया कि किसानों की जमीन चली जायेगी । जबकि यह सबसे बड़ा झूठ है । पर नारा चल रहा है । यह नारा गढ़ा गया और लोग सड़क पर आकर जमा हो गयेश। वे लोगों का ध्यान खींच सकें इसके सेलीब्रिटी तक को लाया गया इसमें पोर्न दुनियाँ में सबसे बड़ा नाम भी सामने आया । ये नाम केवल इसलिए सामने लाये गये ताकि मीडिया में सुर्खियाँ मिलें इसमें वे सफल भी हुए ।इन आँदोलन जीवियों और आँदोलन सृष्टाओं में एक बात यह देखी जा रही है कि इनके आंदोलन की कल्पना या स्वरूप भारतीय हितों के प्रतिगामी होता है । ऐसा क्यों होता है ये तो वही जाने लेकिन उनके शब्द उनकी शैली यह सोचने पर अवश्य विवश करते हैं कि कहीं उनके तार भारत विरोधी शक्तियों से तो नहीं जुड़े ? चूंकि उनके कृत्य और उनके कथन दोनों से भारत में विभेद पैदा होता है और भारत के बाहर छवि खराब होती है
(लेखक- दैनिक नवलोक के प्रधान संपादक विवेक सारंग है।)