भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। “विद्रोही सन्यासी” एक ऐसी पुस्तक है जो आदि शंकराचार्य के जीवन वृतांत पर आधारित है। राजीव शर्मा द्वारा लिखी गयी पुस्तक विद्रोही सन्यासी हिन्दुस्थान के चार पीठ और हिन्दू धर्म ध्वज के चार शंकराचार्य इस परंपरा को स्थापित करने वाले आदि शंकराचार्य के जीवन पर आधारित है।
पुस्तक के लेखक राजीव शर्मा ने आदि शंकराचार्य के समस्त जीवन और कार्यों को क्रमवार इस पुस्तक में समेटने का प्रयास बहुत ही सुंदर रूप से किया है। पुस्तक पढ़कर पता चलता है कि इसमें आदि शंकराचार्य जी के जीवन वृतांत को खोजने में एक बड़ा शोध किया गया है। बचपन से लेकर 32 वर्ष की आयु तक आदि शंकराचार्य जी के सम्पूर्ण भारत वर्ष और नेपाल तक की यात्रा तथा प्रत्येक स्थान पर दिए गए उपदेश उस स्थान की परिस्थिति के अनुसार चित्रित किये गए हैं। यह लेखक राजीव शर्मा की मेहनत को परिलक्षित करता है।
विद्रोही सन्यासी की विषय वस्तु को राजीव शर्मा ने शैव और वैष्णव के आपसी कलह और विवाद से लेकर बौद्ध धर्म के प्रसार से लिया है। विद्रोही सन्यासी की यह विषय वस्तु पुस्तक को आगे पढ़ने की रुचि जाग्रत करती है।
आदि शंकराचार्य का जन्म एवं बचपन का लालन पालन पुस्तक को आगे पढ़ने की सरसता जगाता है। आदि शंकराचार्य द्वारा किये गए कार्यों और धर्म उपदेश को अत्यंत सरलता से समझाया गया है। मूलतः आज भी भारतीय समाज में कई लोग विशेषकर युवा, शंकरचार्य के नाम आने पर धार्मिक कुरीतियों और कठोरतम अनावश्यक नियम को आगे बढ़ाने वाले संत के रूप में मानते हैं। लेकिन लेखक राजीव शर्मा ने आदि शंकराचार्य के जीवन को लिखकर यह साबित कर दिया कि हिन्दू धर्म में कुरीतियों ,छूआछूत,नरबलि और शैव वैष्णव विवाद था ही नहीं ।यह तो स्वयम अपने स्वार्थ के लिए धर्म गुरु इसका दुरुपयोग कर रहे थे।
आदि शंकराचार्य ने एक छोटी सी उम्र में केरल के कालड़ी ग्राम से निकलकर मन्द होते सनातन धर्म को विहार करते हुए सम्पूर्ण भारत राष्ट्र में पुनर्स्थापित कर दिया। लेखक राजीव शर्मा इस वृतांत को अत्यंत प्रभावी रूप से लिखकर पाठकों को रोमांचित कर देते है। आदि शंकराचार्य के जीवन वृतांत के अध्ययन से भारत के कई तीर्थ क्षेत्र का भी ज्ञान होता है।
उपरोक्त पुस्तक विद्रोही सन्यासी को प्रत्येक युवा को पढ़ना चाहिये। कॉलेज एवं स्कूलों की पुतकालय में यह पुस्तक होना चाहिए।आदि शंकराचार्य के जीवन को समझते समझते युवा भारत राष्ट्र की महान सांस्कृतिक विरासत को युवा समझेंगे। छुआछूत, नरबलि और धार्मिक कुरीतियों की धज्जियाँ उड़ाते हुए आदि शंकराचार्य का जीवन युवाओं के मन मस्तिष्क पर स्थायी रूप से बनेगा। आदि शंकराचार्य अपने समय की विकृत परम्पराओ के विरुद्ध खड़े हुए। नर बलि, पशुबलि, जातिगत भेदभाव, धार्मिक पाखण्ड से जूझने में उन्होंने किसी की परवाह नहीं की। सन्यासी होते हुए भी माँ को दिया वचन निभाने माँ की पुकार पर वे उनकी सेवा के लिये लौटे और उनको मुखाग्नि भी दी। ब्राम्हणों के विरोध की चिंता किये बिना उन्होंने शंकर स्मृति लिखी जिसमें ब्राम्हणों के लिये अनुशासन नियत किये। उन्होंने सन्यासियों को दशनामी संप्रदाय में संगठित किया. साधुओं के अखाड़े उन्ही की देन हैं। उन्होंने बौद्धों और सनातनियों के संघर्ष को शान्त किया. शैवों और वैष्णवों को एक सूत्र में बाँधा।
विद्रोही संन्यासी के बारे में लेखक राजीव शर्मा ने शैव वैष्णव विवाद और बौद्ध धर्म के के प्रसार को ज्यादा नहीं लिखकर अनावश्यक विवाद से इस पुस्तक को बचाया है। ये पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है। विद्रोही शंकर पिछले तीन सप्ताह से अमेजन में सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों की लिस्ट में शामिल है और अपने सेगमेंट में टॉप टेन में पँहुच चुकी है। अंग्रेजी किताबों के जुलूस में यह इकलौती हिंदी क़िताब है जो टॉप रैंकिंग पर है।