भोपाल। शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। सोमवार रात करीब 9 बजे उन्होंने राजभवन में आयोजित सादे समारोह में चौथी बार प्रदेश के सीएम पद की शपथ ली।
इसी के साथ देशभर में मामा के नाम से अपनी पहचान बनाने वाले शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के 32वें मुख्यमंत्री बन गए हैं। इससे पहले सोमवार शाम विधायक दल की बैठक में उन्हें सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुन लिया गया। खास बात ये है कि कमलनाथ के इस्तीफे के बाद से ही अटकलें लगाई जा रही थी कि शिवराज ही प्रदेश के अगले सीएम होंगे, सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक मामाजी ट्रेंड कर रहा था। हालांकि केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और नरोत्तम का नाम भी चर्चाओं में बना हुआ था लेकिन आखिरकार अटकलों पर विराम लगा और शिवराज के नाम पर मुहर लग गई।
सोमवार रात राजभवन में शिवराज सिंह चौहान को राज्यपाल लालजी टंडन ने मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। फिलहाल उन्हें अकेले ही शपथ दिलाई गई है। इस अवसर पर राजभवन में अधिकतम 40 लोगों के बैठने का इंतजाम किया गया। कोरोना अलर्ट को देखते हुए प्रत्येक आमंत्रित अतिथि को एक मीटर की दूरी पर बैठाया गया।
बता दें कि बीजेपी विधायक दल की बैठक में दल के नेता के चुनाव के लिए अरूण सिंह को केंद्रीय पर्यवेक्षक बनाया गया था। अरूण सिंह बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव हैं और उन्होने ही बैठक में मुख्यमंत्री पद के लिये नाम का चुनाव कराया। इस बैठक में शिवराज सिंह चौहान, नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव, वी डी शर्मा सहित सभी विधायक शामिल रहे। बैठक में गोपाल भार्गव ने शिवराज सिंह चौहान का नाम विधायक दल के नेता के लिये प्रस्तावित किया जिसका सारे विधायकों ने अनुमोदन किया, नरोत्तम मिश्रा सहित सभी विधायकों ने शिवराज सिंह चौहान के नाम का समर्थन किया।
चार बार मुख्यमंत्री बनने वाले पहले नेता
शिवराज चौथी बार मध्यप्रदेश के सीएम बने हैं। मध्यप्रदेश के इतिहास में पहला मौका है जब किसी ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। शिवराज के अलावा अब तक अर्जुन सिंह और श्यामाचरण शुक्ल तीन बार सीएम रहे हैं।
मामा से देशभर में पहचान
राज्य में शिवराज को “मामा” कहा जाता है। मध्य प्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान सबसे पॉपुलर फेस माने जाते हैं। इसके साथ ही बीजेपी संगठन और आरएसएस में भी उनका खासा वर्चस्व है। राज्य की जनता के बीच उन्हें ‘मामाजी’ के नाम से ख्याति प्राप्त है।
2005 से लेकर 2018 तक रहे मुख्यमंत्री
वे 2005 से 2018 तक लगातार 13 साल सीएम रह चुके हैं। इस दौरान उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। शिवराज सिंह चौहान पहली बार 29 नवंबर 2005 को बाबूलाल गौर के स्थान पर राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। शिवराज चौहान बीजेपी मध्य प्रदेश के महासचिव और अध्यक्ष भी रह चुके है। वे विदिशा संसदीय क्षेत्र से पांच बार लोकसभा का चुनाव भी जीत चुके हैं। उन्होंने पहली बार विदिशा लोकसभा सीट का चुनाव 1991 में जीता था। वे वर्तमान समय में सीहोर जिले की बुधनी विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
1990 में पहला चुनाव लड़ा और 2003 में दिग्विजय से हारे
1990 में पहला चुनाव लड़ा था। पहली बार राज्य विधानसभा के लिए 1990 में सीहोर जिले की बुधनी विधानसभा सीट से चुने गए थे। बाद में अगले साल हुए विदिशा संसदीय चुनाव क्षेत्र से लोकसभा के लिए पहली बार चुने गए। इसके बाद 5 बार विदिशा संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने गए।2003 में भाजपा ने दिग्विजय सिंह के 10 साल के शासन के खिलाफ पूरे दम से चुनाव लड़ा। पार्टी ने जबरदस्त जीत दर्ज की, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ राघौगढ़ से चुनाव लड़ने वाले शिवराज सिंह हार गए। हालांकि बाद में बुधनी विधानसभा के लिए उपचुनाव लड़कर जीता।
ऐसा रहा है अब तक का राजनीतिक सफर
शिवराज एक किसान परिवार से नाता रखते हैं। उन्होंने प्रदेश को एक ऐसे राज्य के रूप में स्थापित किया जिसने कृषि और रोडवेज में सराहनीय प्रगति की है। शिवराज का जन्म 5 मार्च 1959 में सिहोर जिले के जैत गांव में किराड़ राजपूत परिवार में हुआ था, उनके पिता का नाम प्रेम सिंह चौहान और माता का नाम सुंदर बाई चौहान है। शिवराज ने 1992 में साधना सिंह से शादी की। उनके दो बेटे हैं- कार्तिकेय सिंह चौहान और कुणाल सिंह चौहान।शिवराज बार-बार जीत हासिल करते रहे और मप्र को एक ऐसे राज्य के रूप में स्थापित किया जिसने कृषि और रोडवेज में सराहनीय प्रगति की है।शिवराज सिंह हमेशा पढ़ाई में अव्वल रहे । उन्होंने भोपाल के बरकतुल्ला विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में गोल्ड मेडल हासिल किया था। वे छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़े रहे हैं। वर्ष 1975 में वे मॉडल हायर सेकंडरी स्कूल की स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष चुने गए थे। वे इंदिरा गांधी के शासनकाल में लगाए गए आपातकाल के दौरान जेल भी गए। वे वर्ष 1977 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े और सक्रियता के साथ संगठन को बढ़ाने का काम किया। वे सिर्फ 13 वर्ष की उम्र में आरएसएस से जुड़ गए थे। वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से लंबे समय तक जुड़े रहे।वे पहली बार 1990 में सीहोर जिले की बुधनी विधानसभा सीट से विधायक चुने गए।