Gwalior News : गुरुद्वारा दाताबंदी छोड़ पर मत्था टेका सिंधिया ने, बोले सिख समाज का सेवा भाव, प्रेम की सीख देता है

Atul Saxena
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ग्वालियर, अतुल सक्सेना।  केन्द्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) मंगलवार को ग्वालियर पहुंचे।  यहाँ उन्होंने ग्वालियर किले पर स्थित गुरुद्वारा दाताबंदी छोड़ (Gurudwara Databandi Chod Gwalior) पहुंचकर मत्था टेका। सिंधिया ने कहा कि गुरु गोबिंद साहिब जी की प्रेरणा समाज के हर वर्ग के लिए प्रासंगिक है। गुरु हरगोबिंद साहिब ने चार सदी पहले समाज को एक सूत्र में पिरोने की जो राह दिखाई थी वह आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि सिख समाज का सेवा भाव हर वर्ग को सभी से प्रेम करने की सीख देता है।

गौरतलब है कि ग्वालियर के ऐतिहासिक दुर्ग स्थित गुरुद्वारे दाता बंदी छोड़ का चार सौ वां साल धूमधाम एवं श्रद्धा भाव के साथ मनाया जा रहा है। केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया मंगलवार सुबह अचानक किला स्थित गुरुद्वारे पहुंचे। इस दौरान सिंधिया ने गुरु हरगोबिंद साहिब को याद करते हुए गुरुद्वारे में मत्था टेका।

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इस अवसर पर सिंधिया ने कहा कि ग्वालियर का यह इतिहास केवल सिख समाज का नहीं पूरे देश का इतिहास है। कुछ आदर्श व मूल्य स्थापित किए गए थे कि किस तरीके से केवल एक समाज ही नहीं, पूरे देश की सेवा की जाती है। गुरु  हरगोबिंद साहिब ने ऐसे आदर्श और मूल्य की स्थापित किए हैं जो हम सबको आज भी प्रेरणा देते हैं। यहाँ आने पर हम सबको प्रेरणा मिलती है कि हम समर्पण भाव से जनता की सेवा करें।

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तीन दिवसीय महोत्सव का हो रहा है आयोजन

ग्वालियर में ऐतिहासिक किला स्थित गुरुद्वारे में प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है और यहां धार्मिक आयोजन चल रहे हैं। यह दाता बंदी छोड़ का 400वां साल (400 Year Of Databandi Chod) है। इसलिए इसे समाज के हर वर्ग द्वारा धूमधाम से मनाने का निर्णय किया गया है।

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ज्ञात हो मुगल सम्राट जहांगीर को विवश होकर गुरु हरगोबिंद साहिब को ग्वालियर किले के कारावास के मुक्त करने का आदेश देना पड़ा था। गुरु गोबिंद साहिब ने अपने साथ 52 निर्दोष राजा रिहा कराए थे। उस घटना को आज 400 वर्ष पूरे हो गए हैं। इस मंगल और प्रेरणादायी स्मृति के उपलक्ष्य में चार से छह अक्टूबर तक महोत्सव का आयोजन किया गया है। इसमें शामिल होने देश-विदेश से सिख श्रद्धालु आए हैं।


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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