स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव समेत 3 अधिकारियों की बढ़ी मुश्किलें, ये है पूरा मामला

Pooja Khodani
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ग्वालियर, अतुल सक्सेना। स्कूल शिक्षा विभाग (MP School Education Department) के दो कर्मचारियों से जुड़ी एक अवमानना याचिका पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (MP Highcourt) की ग्वालियर बेंच (HC) ने 25-25 हजार रुपये के जमानती वारंट से तलब किया है। मामला शिवपुरी जिले से जुड़ा है।

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दरअसल, ग्वालियर हाईकोर्ट (Gwalior Highcourt) ने स्कूल शिक्षा विभाग (school education department) के प्रमुख सचिव, संचालक लोक शिक्षण संचालनालय और शिवपुरी के जिला शिक्षा अधिकारी को 25-25 हजार रुपए के जमानती वारंट से तलब किया है। मामला जिले के दो कर्मचारियों से जुड़ा हुआ है। जिन्होंने 1990 में दैनिक वेतन भोगी के रूप में मगरोनी के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय (Government School) में भृत्य की नौकरी शुरू की थी।

याचिकाकर्ता के वकील सिद्धार्थ शर्मा के मुताबिक 1990 में दैनिक वेतन भोगी के रूप में नौकरी शुरू करने वाले सुरेश शर्मा और वीरेंद्र तोमर को स्कूल शिक्षा विभाग ने 2013 में नियमित कर दिया गया। लेकिन शासन की नियमावली के मुताबिक उन्हें पेंशन का लाभ इसलिए नहीं दिया जा रहा था कि उनकी सर्विस को 10 साल की अवधि पूरी नहीं हुई थी। पेंशन पाने के लिए शासकीय कर्मचारी (Government Employee) का 10 साल की रेगुलर सर्विस होना जरूरी है। लेकिन इस मामले में दैनिक वेतन भोगी के रूप में शुरू की गई इन कर्मचारियों की सर्विस को नहीं जोड़ा गया था। लिहाजा सुरेश कुमार शर्मा और वीरेंद्र तोमर ने HC में याचिका दायर की।

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याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने स्कूल शिक्षा विभाग और शिवपुरी के जिला शिक्षा अधिकारी को नोटिस जारी किए थे। लेकिन नोटिस जारी होने के बाद भी ना तो विभाग की ओर से उनका कोई अधिवक्ता पेश हुआ और ना ही कोई जवाब दिया गया। इस पर याचिकाकर्ता सुरेश कुमार शर्मा और वीरेंद्र तोमर ने अपने वकील के माध्यम से कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की। अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए HC ने स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, संचालक लोक शिक्षण संचालनालय और शिवपुरी के जिला शिक्षा अधिकारी को 25-25 हजार रुपये के जमानती वारंट से तलब किया है और 4 सप्ताह में जवाब पेश करने के निर्देश दिये हैं।

याचिका में यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पहले ऐसे कई मामलों में व्यवस्था दी है कि जो लोग दैनिक वेतन भोगी या संविदा कर्मी के रूप में नौकरी पर ज्वाइन हुए और बाद में भी नियमित किए गए उनकी पुरानी सर्विस भी सेवा काल में जोड़ी गई थी। लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का हवाला देने के बावजूद ऐसा नहीं किया गया।

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