गड्ढों में तब्दील होता जा रहा इटारसी का ओवरब्रिज, हादसे को आए दिन देता है आमंत्रण

Gaurav Sharma
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होशंगाबाद/ इटारसी,राहुल अग्रवाल। प्रदेश के सबसे बड़े T आकर के ओवरब्रिज की दशा बहुत दयनीय हो चुकि है। ओवरब्रिज पर जगह जगह बड़े बड़े गड्डों की भरमार हो गई हैं। 2-2 फिट गहरे गड्ढे हादसे का इंतजार करते नजर आते है। यहां के इन भीमकाय गड्ढे में गिरकर बहुत से लोग अपनी जान गवा चुके है।

ब्रिज पर बैठे मवेशी भी बने मुसीबत

ब्रिज पर केवल गड्ढे का ही डर नहीं बल्कि एक बड़ी मुसीबत है कि ब्रिज पर दिन भर मवेशी बैठे रहते हैं। कुछ साल पहले इटारसी के वरिष्ठ व्यवसायी रामसेवक चौरसिया की मृत्यु सड़क पर बैठे मवेशियों के कारण ही हुई थी । ये पहली बार नहीं है कि ओवरब्रिज की ये हालत हुई है । ये सिलसिला पिछले 10 सालों से चल रहा है हर बार बारिश में ये हाल होता । हर बार टेंडर होते है और काम ऐसा होता है कि बस अगली बारिश तक ही टिक पाता है।  MP ब्रेकिंग न्यूज़ ने इस सम्बंध में PDW के अधिकारियो से बात कि तो उनका कहना है कि इस साल मई में टेंडर हुए थे पर लॉकडाउन और कोरोना माहवारी के कारण मजदूर नहीं आये।

8 लाख का था एस्टीमेट

लोक निर्माण विभाग की ब्रिज कॉर्पोरेशन विंग ने कुछ महीने पहले ओवरब्रिज के सिटी थाने तरफ के भाग के मेंटनेंस के लिए एस्टीमेट तैयार किया था। यह एस्टीमेट करीब 8 लाख रुपए का था, जिसमें सिटी थाने के सामने का पूरा डामरीकरण और ऊपर तक पेंचवर्क होना था। वहीं ब्रिज कॉर्पोरेशन के सब इंजीनियर नागेश दुबे ने बताया कि टेंडर हुए थे पर कोरोना के कारण काम नहीं हो पाया हैं । अब जैसे ही स्थिति सामान्य होगी जल्द ही ब्रिज पर डामरीकरण किया जाएगा।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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