इंदौर, आकाश धोलपुरे। आज समूचे देश मे नेशनल डॉक्टर्स डे (National Doctors Day) मनाया जा रहा है। इस खास दिन पर हम आपको एक ऐसे डॉक्टर (doctor) की खबर बताने जा रहे है जो वाकई इस धरती पर गरीबों का न सिर्फ मसीहा था बल्कि भगवान का साक्षात अवतार था। जी हां हम बात कर रहे है इंदौर (Indore) के कोरोना वारियर और दिवंगत डॉ. शैलेंद्र दुबे की। जो कोरोना के काल के गाल में समा गए है लेकिन आपको बता दें कि शहर के मिल क्षेत्र में डॉक्टर शैलेंद्र दुबे का एक प्रभाव था जो अब भले ही यादों में सिमट कर रह गया हो। लेकिन उनकी यादे आज भी उनके परिवार के जेहन में जीवंत है।
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दरअसल, साल 1986 में इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर चुके डॉ. शैलेंद्र दुबे निवासी स्किम नम्बर 54 हमेशा गरीबो के हिमायती रहे है। और उन्होंने इंदौर के अन्नपूर्णा रोड स्थित यूनिक हॉस्पिटल में 2 साल की शुरुआती सेवा देने के बाद अलग-अलग अस्पतालों में सेवाएं दी है। लेकिन गरीबो के प्रति हमदर्दी का ही परिणाम था कि साल 1995 में उन्होंने शहर के मालवा मिल क्षेत्र के फिरोज गांधी नगर में श्मशान के पास के एक डे केयर क्लिनिक खोला। जिसे वो एक बड़े संस्थागत अस्पताल के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे। उस समय महज 5 रुपये में इलाज देने वाले गरीबो के मसीहा की वर्तमान फीस महज 30 रुपये प्रति मरीज थी। जो ये बताने के लिए काफी है कि वो वास्तव में धरती पर ईश्वर का दूसरा रूप थे जो हजारो मिल मजदूरों से लेकर अन्य गरीबो की स्वास्थ्य सेवा का भार अपने कंधे पर उठाए हुए थे।
उनकी एक खासियत थी कि वो जिंदगी को जिंदादिली से जीते थे और उसी का परिणाम था कि वो जब कोविड पॉजिटिव हुए तो उन्होंने सबसे पहले अपने बेटे डॉक्टर सन्देश दुबे की शादी अपने सामने होने की इच्छा जताई। इस बीच वो जिंदगी की जंग यूनिक हॉस्पिटल में लड़ते रहे और जब उनकी हालत खराब हुई तो उन्हें बॉम्बे हॉस्पिटल शिफ्ट किया गया। जहां उन्होंने अपने बच्चे की रिंग सेरेमनी यानि सगाई अपने सामने होती देखी। दरअसल, जिंदादिल कोरोना वारियर और डॉक्टर शैलेंद्र दुबे अपने जीवन के अंतिम समय तक भी कोविड मरीजो का इलाज करते रहे और इसी दौरान वो कोविड-19 को चपेट में भी आ गए। लेकिन तब भी उन्होंने हौंसला नहीं हारा और अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान भी वो मरीजों को विशेष परामर्श देकर ठीक करते रहे। लेकिन खुद अपनी जिंदगी की जंग लोगो की सेवा के दौरान हार गए। उनकी पत्नि श्रीमती स्मिता शैलेंद्र दुबेआज भी अपने पति की यादों को जेहन में रखकर भले ही आंसू बहाती हो लेकिन उन्हें अपने डॉक्टर पति पर गर्व है और वो चाहती है कि गरीबो के स्वास्थ्य के लिए उनका बेटा संदेश अपने पापा का सपना पूरा कर एक चेरिटेबल हॉस्पिटल बनाये जहां लोगो को बेहतर इलाज बेहद कम कीमत में मिल सके।
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वहीं अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए दिवंगत वारियर के बेटे डॉ. संदेश दुबे ये प्रण कर चुके है। और अब वो अपने पिता का सपना पूरा करेंगे। डॉ. संदेश दुबे मानते है कि आज भी उन्हें लगता है कि उनके पिता उनके आस – पास ही है और वो गरीबो की सेवा में जुटे है। आज नेशनल डॉक्टर्स डे ऐसे में हम ये सच्ची कहानी इसलिए आपके सामने लाये है ताकि अगली बार से आप किसी डॉक्टर के पास जाए तो इस बात को जेहन में जरूर रखे कि धरती पर ईश्वर का रूप डॉक्टर शैलेंद्र दुबे भी थे। जो वाकई अपने साथी डॉक्टरों और अन्य प्रोफेशनल के सामने अपने पेशे के लिहाज से एक मिसाल पेश कर इस दुनिया को अलविदा कह चुके है।