राज्य शासन ने OBC के लिए आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ा कर 27 प्रतिशत किए जाने पर अपनी दलील देते हुए कहा कि प्रदेश में 51 प्रतिशत जनसंख्या पिछड़ा वर्ग की है जिसके आधार पर प्रदेश सरकार उन्हे बढ़ा हुया आरक्षण देना चाहती है। इस पर याचिकाकर्ता के वकील आदित्य संघी ने हाईकोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) की गाइड लाइन के तहत आरक्षण जनसंख्या के आधार पर नहीं दिया जा सकता है। OBC आरक्षण को लेकर पूर्व में दिए गए आदेश में अंतरिम बदलाव करते हुए OBC की सभी भर्तियां 14% रिजर्वेशन के अनुसार करने का आदेश दिया है।
इसके चलते मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने बढ़े हुए आरक्षण पर रोक जारी रखते हुए इस मामले की अगली सुनवाई अब 10 अगस्त को नियत की है। हाईकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि राज्य शासन (MP Government) और MPPSC की भर्ती प्रक्रिया में OBC को 14% आरक्षण ही दिया जा सकेगा। प्रदेश में मेडिकल अफसरों की भर्ती की मेरिट लिस्ट ओबीसी को दिए जाने वाले 27% के आरक्षण के आधार पर ही तैयार की जाएगी लेकिन 14% के आरक्षण के आधार पर ही नियुक्ति दी जा सकेगी यह पूरी प्रक्रिया हाईकोर्ट के अधीन होगी।
दरअसल, मध्य प्रदेश सरकार ने मार्च 2019 मे अन्य पिछड़ा वर्ग को दिए जाने वाला आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ा कर 27 प्रतिशत कर दिया था। आरक्षण मे की गई इस वृद्धि के खिलाफ हाईकोर्ट मे याचिकाए दायर की गयी थी जिनकी एक साथ सुनवाई करते हुए जबलपुर हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के इस अध्यादेश पर रोक लगा दी थी, जो कि अभी भी जारी है।
इस रोक के तहत OBC को सिर्फ 14 प्रतिशत आरक्षण दिया जा सकता है। मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओ के वकील आदित्य संघी ने दलील दी है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाईन के अनुसार किसी भी राज्य में आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नही होना चाहिए लेकिन मध्य प्रदेश में आरक्षण इस सीलिंग से ज्यादा है ऐसे में ओबीसी को बढ़ा कर दिए गए आरक्षण के राज्य सरकार के आदेश को रद्द किया जाए।
वर्तमान में 50 फीसदी आरक्षण
प्रदेश में वर्तमान में अनुसूचित जाति को 16, जनजाति को 20 और पिछड़ा वर्ग को 14 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। इस तरह तीनों वर्गों को मिलाकर 50 फीसदी आरक्षण है। लेकिन सत्ता में आते ही कमलनाथ सरकार के शासकीय नौकरियों में 27 फीसदी करने से आरक्षण की सीमा बढ़कर 63 फीसदी हो गई थी, जो कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का उल्लंघन है।इसके बाद बीजेपी, कई सामाजिक संगठनों और छात्रों के द्वारा जबलपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। फिलहाल इस मामले में हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश दिया है कि सरकार किसी भी भर्ती प्रक्रिया में 27% आरक्षण लागू न करे।