जबलपुर। दिल्ली की तरह ही जबलपुर में लोग प्रदूषण का शिकार न हो इसके लिए जिला प्रशासन ने नगर निगम की मदद से ई रिक्शा चलाने का प्लान बनाया था लेकिन नगर निगम की दूसरी योजनाओं की तरह ही जिला प्रशासन का ई रिक्शों को बढ़ावा देने की योजना खटाई में पड़ने लगी है। अपने इस प्लान के जरिए पर्यावरण को बचाने और रोजगार देने शुरू किए गए ईको फ्रेंडली कहलाने वाले ई रिक्शो को बढ़ावा देने शहर में 4 सौ से ज्यादा ई रिक्शे रजिस्टर्ड हुए थे, लेकिन खराब सड़कों और सुविधाओं के अभाव में ई रिक्शें गायब होने लगे है।
जबलपुर को प्रदूषण मुक्त रखने जिला प्रशासन ने 3 साल पहले नगर निगम की मदद से पर्यावरण को बचाने और रोजगार मुहैया कराने ई रिक्शा के लिए पहल शुरू की थी।अपनी इस कवायद के जरिए पर्यावरण को बचाने और ई रिक्शो को बढ़ावा देने जिला प्रशासन ने उर्जा विकास निगम के सहयोग से नगर निगम के जरिए 430 ई रिक्शों का रजिस्ट्रेशन कराया था लेकिन शहर में चार्जिंग पॉइंट न होने के कारण बार-बार बैटरी उतरने और बदहाल सड़कों के कारण रेस कंट्रोलर खराब होने से आने वाली परेशानियों और कमाई से ज्यादा होने वाले खर्चे को देखते हुए रिक्शा बेच कर ऑटो खरीद रहे है आलम ये है कि शहर में अब 430 रिक्शों में से महज डेढ़ सौ ई रिक्शे बचे है लेकिन ये रिक्शे भी कभी कभी सड़को पर ही नजर आते है पर्यावरण को बचाने और रोजगार मुहैया कराने वाली इस महत्वपूर्ण योजना के दम तोड़ने पर जिम्मेदार अब इसके कारणों को का पता लगा बचे हुए ई रिक्शों के लिए चार्जिंग पॉइंट बनाने सहित दूसरी सुविधाओं को मुहैया कराने की बात कह रहे है।
दरअसल एक ई-रिक्शा में चार बैटरी लगती है,और एक बैटरी की क्षमता करीब 10 माह होती है।इसके बाद नई बैटरी के लिए 30 से 36 हजार रुपए तक खर्च करने पड़ते है ऊपर से सड़कें खराब होने से रेस कंट्रोलर और सिल्वर वायरिंग खराब होने से ई-रिक्शा चालकों को 6 हजार रुपए का भी खर्चा उठाना पड़ता है..ई-रिक्शा के लिए सपाट सड़कें चाहिए…जो जबलपुर में नहीं है,और यही सब वजह है ई रिक्शों के सड़को से गायब होने की।