ये कैसी दबंगई, 24 घंटे तक मुक्तिधाम के बाहर रहा शव, प्रशासन के दखल के बाद हुआ अंतिम संस्कार

हालांकि इसके पहले भी अनुसूचित जाति के कई लोगों की मृत्यु होने पर मुक्तिधाम ना होने के कारण अंतिम संस्कार करने में समस्या आई थी लेकिन प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।

Jabalpur News :  हिंदुस्तान पूरी दुनिया में अपनी संस्कृति और परंपराओं के लिए पहचाना जाता है, लेकिन इक्कीसवीं सदी में भी जात, पात को मानने वाले लोग समाज और मानवता को शर्मसार कर रहे हैं। ताजा मामला जबलपुर के पाटन थाना अंतर्गत पौंडी ग्राम पंचायत का है जहां गांव के दबंगों ने अनुसूचित जाति के एक युवक की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार रोक दिया, और 24 घंटे तक मृतक का शव मुक्ति पाने के लिए मुक्तिधाम का इंतजार करता रहा।

पूरा मामला ग्राम पंचायत के चपोद गांव का है, 25 मार्च को गांव के शिव कुमार चौधरी की मृत्यु हो गई थी, शिवकुमार की मृत्यु का समाचार सुनकर पूरा गांव और रिश्तेदार एकत्रित हुए और गांव के बाहर बने मुक्तिधाम में उसका अंतिम संस्कार करने का फैसला किया, जब परिवार और रिश्तेदार मृतक के शव को लेकर मुक्तिधाम पहुंचे तो गांव के कुछ दबंगों ने वहां अंतिम संस्कार करने से रोक दिया।

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दूसरे दिन प्रशासन ने करवाया अंतिम संस्कार 

दबंगों का कहना था कि उन्होंने मुक्तिधाम के आसपास खेत में फसल बोई है और लोगों की भीड़ जमा होने से फसल खराब होगी, इसके बाद अनुसूचित जाति के लोगों ने इसका विरोध किया और स्थानीय तहसीलदार एवं पुलिस तक शिकायत पहुंची, जिसके दूसरे दिन प्रशासन की मौजूदगी में अंतिम संस्कार करवाया गया।

सार्वजनिक मुक्तिधाम के लिए जगह चिन्हित करने के निर्देश 

इस घटना के बाद गांव में सार्वजनिक मुक्तिधाम की मांग उठ रही है, हालांकि इसके पहले भी अनुसूचित जाति के कई लोगों की मृत्यु होने पर मुक्तिधाम ना होने के कारण अंतिम संस्कार करने में समस्या आई थी लेकिन प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। इस घटना के बाद रविदास समाज के लोगों ने आज कलेक्टर से मुलाकात की और ज्ञापन सौंपकर गांव में तत्काल मुक्तिधाम बनवाने की मांग की, जिसके बाद कलेक्टर दीपक सक्सेना ने तत्काल तहसीलदार से गांव पहुंचकर शासकीय भूमि पर मुक्तिधाम बनाने के लिए जगह चिन्हित करने के निर्देश दिए।

जबलपुर से संदीप कुमार की रिपोर्ट  


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Atul Saxena

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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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