झाबुआ। सीबी सिंह।
भारत सरकार ने कल रात देश के सभी प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त करने वालो के नामो का एलान कर दिया है मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले के ” गांधी ” माने जाने वाले महेश शर्मा को इस सूची मे पद्मश्री पाने वालो मे शामिल है । पद्मश्री महेश शर्मा को ऐसे ही नही मिल गया इसके पीछे संघर्ष ओर तपस्या की लंबी कहानी है इस खबर के जरिऐ जानिए यह कहानी ।
यह है महेश शर्मा की पारिवारिक पृष्ठभूमि
पद्मश्री घोषित किए गये महेश शर्मा मुलतः मध्यप्रदेश के दतिया जिले के “घूघसी” गांव के रहने वाले है 14 मार्च 1957 को जन्मे महेश शर्मा कुल 9 भाई – बहनों मे तीसरे नंबर के थे उनकी प्रारभिक शिक्षा वही हुई ओर फिर उन्होंने ग्वालियर से स्नातक ( B A ) किया ओर सेवाकाय॔ मे आ गये ।
छात्र राजनीति से हुई थी शुरुवात
महेश शर्मा पढाई के दोरान ही छात्र राजनीति मे आ गये थे 1974 मे वह ABVP मे शामिल हुऐ ओर फिर 1977 मे वह संघ मे शामिल हो गये ओर 1978 मे वे संघ प्रचारक बने ओर पहली बार शिवपुरी मे प्रचारक के रूप मे पहुंचे .. फिर ग्वालियर मे काम किया ओर भोपाल मे रहकर लंबा वक्त बिताया .. इस दोरान वह विद्याभारती के प्रदेश संगठन मंत्री भी रहे ओर 1998 मे संघ के प्रचारक के रूप मे झाबुआ आये ओर वनवासी कल्याण परिषद मे काम करना शुरु किया ।
संघ से मतभेद के बाद प्रचारक पद त्याग कर शिवगंगा से जुडे़
अविभाजित झाबुआ जिले मे काम करने के दोरान संघ के आला पदाधिकारियों से महेश शर्मा के वैचारिक मतभेद शुरु हो गये थे ओर उन्हें 2007 तक संघ के तत्कालीन पदाधिकारी यह दबाव बनाते रहे कि वह झाबुआ छोड दे ओर राजधानी भोपाल मे व्यापक स्तर की जिम्मेदारी संभाले या क्षैत्रीय स्तर पर बडा काम करे लेकिन महेश शर्मा तब तक अपना विजन चुन चुके थे ओर उन्होंने बढते मतभेदों को समाप्त करने के लिए संघ के प्रचारक पद को छोड दिया ओर अपने साथियों के साथ शिवगंगा अभियान की शुरुवात की ओर तब से वह झाबुआ के ओर झाबुआ उनका हो गया ।
हष॔ चोहान की अहम भूमिका रही
महेश शर्मा झाबुआ मे रहे ओर आदिवासीयों के समग्र विकास के लिए काम करे यह इच्छा शिवगंगा के फाउंडर हष॔ चोहान साहब की थी ओर महेश शर्मा के साथ उनकी जोड़ी अटल – आडवाणी जैसी है ओर हष॔ चोहान की साथ मिलकर महेश शर्मा अपने वीजन ओर झाबुआ मे रुककर अपनी तपस्या को साथ॔क कर पाये ।
हलमा ओर मातानुवन ने दिलवाई व्यापक पहचान
तमाम आलोचनाओ के बीच महेश शर्मा के संगठन ” शिवगंगा” ने आदिवासियों की हलमा परंपरा को अखिल भारतीय पहचान दी है हलमा दरअसल एक आव्हान है जिसके जरिऐ समुदाय की सामुहाकिता की भावना प्रकट होती है दूसरे शब्द मे हलमा के जरिऐ जनजातीय समुदाय परस्पर एक दूसरे के साथ मिलकर समस्याओं को हल करता है सामूहिक श्रम करता है जैसै कंटूर ट्रेंच बनाना या तालाब बनाना या गांव मे जंगल लगाना । हलमा के जरिऐ यहां के आदिवासी दुनिया भर को संदेश देते है कि ग्लोबल वार्मिंग की समस्या वातानुकूलित कमरों मे बैठकर चिंतन करने से हल नही होगी बल्कि जमीन पर उतरकर काम करना होगा यानी आदिवासियों की तरह हलमा करना होगा । इसी तरह मातानुवन के जरिऐ दज॔नो गांव मे जंगल खडे करने की कवायद हो रही है ।
समग्र विकास पर जोर
महेश शर्मा को आदिवासियों के उत्थान ओर सामाजिक कार्यों के लिए पद्मश्री से सम्मानित करने का एलान किया गया है दरअसल आदिवासियो के उत्थान के उनके स्वरोजगार को बढावा देना ओर उन्नत कृषी तकनीक को बढावा देने मे भी महेश शर्मा ओर उनकी टीम कामयाबी हासिल कर रही है आज वे जैविक खेती ओर बांस प्रशिक्षण के साथ साथ गांव मे वाचनालय ओर स्वास्थ मिशन के जरिऐ आदिवासियों के समग्र विकास मे जुटे है ।
कई संस्थान है मुरीद
झाबुआ के हलमा ओर शिवगंगा से देश के कई प्रतिष्ठित संस्थान बेहद प्रभावित है इंफोसिस जैसी संस्था हो या टाटा इंस्टीटयूट या भी आईआईटी रुडकी या मुंबई हो या भी कही ओर की आईआईटी हो सभी के विद्यार्थी झाबुआ आकर शिवगंगा के माडल को देखते ओर समझते है ।