दमोह, आशीष कुमार जैन। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के दमोह (Damoh district) से हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां यूपी के ग्रेटर नोएडा (Greater Noida) से मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड अंचल के मजदूरों को बंधन से मुक्त कराया गया है। इस सनसनीखेज मामले के सामने आने के बाद सरकार की मजदूरों के लिए चलाई जा रही योजनाओं और व्यवस्था भी कटघरे में आ खड़ी हैं।
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दरअसल ये मजदूर उत्तरप्रदेश के ग्रेटर नोयडा में बंधुआ मजदूर थे जिन्हें बीते ढाई महीनों से बंधक बनाकर रखा गया था। लेकिन अब ये बंधन से मुक्त हुए हैं और अपने घर वापस लौट आये हैं। दरअसल बुंदेलखंड से रोजगार की तलाश में बड़े पैमाने पर मजदूर महानगरों की तरफ पलायन करते हैं। सूबे के दमोह और छतरपुर जिले के ये 41 मजदूर भी काम की तलाश में दिल्ली गए थे जहां से बिहार का एक ठेकेदार इन्हें लेकर गौतम बुद्ध नगर ग्रेटर नोएडा एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करने ले गया था। कंपनी के नुमाइंदों ने एक एक मजदूर को शुरुवाती दिनों में महज सौ सौ रुपये दिए और फिर पैसे देना बंद कर दिया। मजदूरों की माने तो उनसे काम करवाया जाता था लेकिन जिस जगह बिल्डिंग निर्माण का काम चल रहा था उंस जगह से बाहर नही निकलने दिया जाता था। वहीं पिछले ढाई महीनों से कैद इन मजदूरों की इलाके के कुछ लोगों ने मदद की और आखिरकार यूपी के गौतम बुद्ध नगर इलाके के प्रशासन ने इनकी मदद की और बुंदेलखंड के 41 मजदूर मुक्त कराए गए।
यूपी सरकार ने मानवता का परिचय देते हुए अपनी ड्यूटी पूरी की औऱ इन बंधुआ मजदूरों को दमोह तक भेजने का इंतज़ाम भी किया, जबकि दमोह जिला प्रशासन के नुमाइंदे भी लगातार मजदूरों के आने का इंतज़ार कर रहे थे और शनिवार की देर रात मजदूर दमोह पहुंचे। इस पूरे मामले में खास बात ये है कि बंधक बनाए गए मजदूरों में से कुछ मजदूर ऐसे भी हैं जिन्हें पहले भी दिल्ली में बंधक बना कर रखा गया था जिसकी गवाही इलाके के सरकारी मुलाजिम दे रहे हैं।
बता दें, पिछड़ेपन का शिकार बुंदेलखंड पलायन को लेकर सालों से सुर्खियों में हैं। प्रदेश और केंद्र सरकारें लगातार रोजगार मुहैया कराने के दावे भी करती रही हैं लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां करती है। तमाम सरकारी योजनाओं और मनरेगा जैसी स्कीम लागू होने के बाद भी मजदूर महानगरों की तरफ भागते हैं और ऐसे हालात बन जाते हैं जब गरीब मजदूरों को बंधक तक बना लिया जाता है। इस सब पर अधिकारी कहते हैं कि मजदूर ज्यादा मजदूरी के चक्कर मे बड़े शहरों दूसरे प्रदेशों की तरफ जाते हैं और लालच की वजह से फस जाते हैं।
बहरहाल यूपी के प्रशासन की मदद से मजदूर बंधन से मुक्त हुए हैं लेकिन पूरे घटनाक्रम ने सरकार की योजनाओं को जरूर कटघरे में खड़ा कर दिया है। कटघरे में वो दावे भी हैं जिनमें सरकार और उनके नुमाइंदे ये दावा करते हैं कि हर गावँ में रोजगार के साधन मुहैया कराए गए हैं और सवाल यही है कि आखिर कब तक पलायन जारी रहेगा कब तक मजदूर अपना घर अपना गावँ छोड़कर महानगरों में डेरा डालेंगे और बंधक बनकर जुल्म सहते रहेंगे ?