कैसे कैसे जनप्रतिनिधि,क्रियाकर्म की धमकी दी विधायक जी ने

Gaurav Sharma
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शिवपुरी, मोनू प्रधान। कहते हैं जनप्रतिनिधि होना जितने सम्मान की बात है उतनी ही जिम्मेदारी की बात भी है। जनता न केवल इनसे उम्मीदें लगाती है बल्कि इन्हें अपना आदर्श भी मानती है, ऐसे में इनके द्वारा सामाजिक जगहों पर कही गई बातें निश्चित ही नपीतुली और गंभीर होना चाहिए। पर लगता है कोलारस विधायक रघुवंशी इन सभी बातों से खुद को ऊपर मानते हैं और इसलिए क्रिया कर्म और हरमखोर जैसे शब्दों का उपयोग जनता दरबार में कर रहे हैं।

आपको बता दें कोलारस विधायक वीरेंद्र रघुवंशी जनता दरबार लगाने विधानसभा के रांची गांव में पहुंचे थे। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार विधायक गांव में पहुंचे जहां ग्रामीणों ने अपनी समस्याएं सुनाते हुए विधायक के समक्ष रोजगार सहायक शिवराज धाकड़ की शिकायतें रखी। शिवराज को विधायक रघुवंशी के दौरे की जानकारी थी पर इसके बाबजूद वह जनता दरबार में नहीं पहुंचा।

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धाकड़ के विधायक जी द्वारा लगाए गए जनता दरबार न पहुंचने की वजह से रघुवंशी जनता की समस्याओं को लेकर सवाल-जबाब नहीं कर पा रहे थे जिस वजह से विधायक जी ने धाकड़ को गुस्से में फोन लगाया। इतना ही नहीं रघुवंशी ने धाकड़ को फोन लगाकर धमकी देते हुए कहा कि, “आजा नहीं मैं तो क्रिया-कर्म भी कर देता हूं, सब जानते हो मेरे बारे में”। इसके बाद फोन काट कर रघुवंशी ने ग्रामीणों से बात करते हुए धाकड़ हरामखोर भी कह डाला और यह भी बता डाला की में 2 साल में एक बार आया हूं, क्या विधायक 400 गांव में रोज़ जाएगा क्या विधायक हिम्मत कैसे हुई इनकी? हालांकि अभी यह वीडियो वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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