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Sat, Dec 6, 2025

ब्रह्मलीन हुए निमाड़ के सुप्रसिद्ध संत सियाराम बाबा, शाम 4:00 बजे नर्मदा नदी किनारे पंचतत्व में होंगे विलीन

Written by:Rishabh Namdev
निमाड़ के सुप्रसिद्ध संत सियाराम बाबा आज ब्रह्मलीन हो गए। उन्होंने सुबह 6:10 बजे देह त्याग दी है। पिछले कुछ दिनों से सियाराम बाबा बीमार चल रहे थे। वे आज शाम 4:00 बजे नर्मदा नदी किनारे पंचतत्व में विलीन होंगे।
ब्रह्मलीन हुए निमाड़ के सुप्रसिद्ध संत सियाराम बाबा, शाम 4:00 बजे नर्मदा नदी किनारे पंचतत्व में होंगे विलीन

निमाड़ के सुप्रसिद्ध संत और प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त सियाराम बाबा आज ब्रह्मलीन हो गए। बुधवार सुबह 6:10 बजे उन्होंने देह त्याग दी है। लंबे समय से सियाराम बाबा बीमार चल रहे थे। उनके निधन की खबर सुनने के बाद उनके भक्त बड़ी संख्या में आश्रम पहुंचना शुरू हो चुके हैं। आज शाम 4:00 बजे उन्हें नर्मदा नदी के किनारे पंचतत्व में विलीन किया जाएगा।

संत सियाराम बाबा काफी समय से बीमार चल रहे थे। जिसके चलते उनका आश्रम में ही इलाज किया जा रहा था। बीती रात उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई। जानकारी के मुताबिक बीती रात उन्होंने कुछ भी नहीं खाया था, जिससे और ज्यादा कमजोरी आ गई। वही आज सुबह उनका प्रभु से मिलन हो गया।

दोपहर 3:00 बजे उनका डोला निकल जाएगा

संत सियाराम बाबा निमाड़ के सुप्रसिद्ध संत थे। वह खरगोन के भट्यान स्थित आश्रम में प्रभु श्री राम की भक्ति किया करते थे। उनके निधन की खबरें मिलने के बाद बड़ी संख्या में भट्यान स्थित आश्रम में भक्तों की भीड़ लगना शुरू हो गई। आज दोपहर 3:00 बजे उनका डोला निकल जाएगा। शाम 4:00 बजे के करीब उन्हें पंचतत्व में विलीन किया जाएगा। संत सियाराम बाबा के सेवादारों ने उनकी अंत्येष्टि के लिए चंदन की लकड़ी की व्यवस्था की है। पिछले कुछ समय से डॉक्टरों की टीम उनकी देखभाल कर रही थी।

12 वर्षों तक मौन धारण भी किया

वहीं संत सियाराम बाबा की अंत्येष्टि आश्रम के समीप ही नर्मदा नदी किनारे की जाएगी। अंतिम दर्शन के लिए मुख्यमंत्री मोहन यादव भी आश्रम पहुंचेंगे। संत सियाराम बाबा को निमोनिया हो गया था। पिछले कुछ समय से उनका इलाज किया जा रहा था। लेकिन उन्होंने अस्पताल की जगह आश्रम में रहने का फैसला किया था। वह अंतिम समय में भी अपने भक्तों से मिलना चाहते थे। जिसके चलते वह आश्रम में ही इलाज करवा रहे थे। संत सियाराम बाबा की उम्र लगभग 100 साल से भी ज्यादा थी। उन्होंने 12 वर्षों तक मौन धारण भी किया था। जो भी भक्त आश्रम में उनके दर्शन के लिए आता था। उनसे वह सिर्फ ₹10 का ही नोट लेते थे। बाकी धनराशि उन्हें वापस कर देते थे। भक्तों से प्राप्त धनराशि का उपयोग आश्रम से जुड़े कामों में किया जाता था। संत सियाराम बाबा एक पेड़ के नीचे रामायण पड़ा करते थे।