उज्जैन, डेस्क रिपोर्ट। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन बाबा महाकाल ने श्री हरि विष्णु को सृष्टि का भार सौंप दिया है। साल भर में एक बार कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी को उज्जैन (Ujjain) में हरिहर मिलन (Harihar Milan) का यह नजारा देखने को मिलता है। जहां बाबा महाकाल अपनी रजत पालकी में सवार होकर द्वारकाधीश के द्वार जाते हैं और उन्हें सत्ता सौंप देते हैं। धूमधाम के साथ इस बार भी बाबा महाकाल की सवारी गोपाल मंदिर तक पहुंची और एक दूसरे को स्पर्श करने के बाद यहां बाबा महाकाल और द्वारकाधीश को बिल्वपत्र की माला पहनाई गई।
मान्यताओं के मुताबिक यह कहा जाता है कि भगवान विष्णु को सत्ता का भार सौंपने के बाद भगवान शिव तपस्या के लिए कैलाश चले जाते हैं। दोनों देवताओं के इस मिलन के दौरान इन्हें इनकी पसंदीदा वस्तुओं का भोग लगाया जाता है। मान्यताओं के मुताबिक देवशयनी एकादशी के बाद बैकुंठ चतुर्दशी तक भोलेनाथ सृष्टि का भार संभाल रहे थे। लेकिन देवउठनी एकादशी के बाद भगवान विष्णु का शयन समाप्त होते ही भोलेनाथ ने उन्हें पुनः सृष्टि सौंप दी है।
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रात 11 बजे बाबा महाकाल अपने रजत पालकी में सवार होकर ठाट बाट से द्वारकाधीश के मंदिर पहुंचे। यहां 2 घंटे तक चले पूजन अर्चन के बाद रात 1:30 बजे सवारी वापस मंदिर लौटी। हरिहर मिलन को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। जहां हरि और हर का एक दूसरे के समक्ष बैठकर सत्ता का भार परिवर्तित करने का दृश्य बहुत ही मनोरम होता है। इस दौरान दोनों देवताओं का पंचामृत अभिषेक करने के बाद बाबा महाकाल को श्री विष्णु की प्रिय तुलसी की माला और भगवान विष्णु को भोलेनाथ की प्रिय बिल्वपत्र की माला अर्पित की जाती है। दोनों ही माला है एक दूसरे को स्पर्श कराकर धारण करवाई जाती है।
इस तरह से दोनों देवताओं की प्रिय मालाओं को स्पर्श कराकर एक दूसरे को पहनाकर सृष्टि के भार का हस्तांतरण किया जाता है। इस अनूठे दृश्य को देखने के लिए भक्तों को साल भर हरिहर मिलन का इंतजार रहता है। भव्य और आकर्षक तरीके से होने वाले इस हरिहर मिलन को शैव और वैष्णव संप्रदाय के आपसी सौहार्द और एकता के रूप में भी देखा जाता है।
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पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक देवशयनी एकादशी के बाद भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के यहां विश्राम करने के लिए चले जाते हैं। इस दौरान सृष्टि का दारोमदार भगवान शिव के पास होता है। देवउठनी एकादशी पर जब भगवान विष्णु का शयन पूरा हो जाता है तो बैकुंठ चतुर्दशी पर शिव उन्हें सृष्टि की बागडोर वापस सौंप देते हैं। शास्त्रों के मुताबिक कोई भी मांगलिक कार्य भगवान विष्णु के सानिध्य में ही संपन्न करवाया जाता है। इसलिए बैकुंठ चतुर्दशी को उत्सव के रूप में मना कर 2 देवताओं के अदभुत मिलन को देखा जाता है।