उमरिया, बृजेश श्रीवास्तव। उमरिया (Umaria) के जिला चिकित्सालय का हाल बेहाल होता नज़ारा रहा है। जहाँ पर प्रबंधन को कुछ मामलों में ध्यान देने की अति आवश्यकता है। और हॉस्पिटल के हित में निर्णय लेने और तत्काल कार्यवाही करने की ज़रूरत है। बतादें कि शहडोल (Shahdol) संभाग के कमिश्नर (Commissioner) राजीव शर्मा और कलेक्टर (Collector) संजीव श्रीवास्तव जिला चिकित्सालय की व्यवस्थाएं सुधारने एवं जिले के नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए लगातार जद्दोजहद कर रहे हैं। लोगों को लगता है कि उनकी इस मुहिम से व्यवस्थाओं और सेवाओं में सुधार होगा ।
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कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव कोविड प्रबंधन टीम की हौसला आफजाई करने के साथ-साथ उनके कामकाज की लगातार निगरानी, समीक्षा एवं मार्गदर्शन कर रहे हैं। वे खुद भी हर मोर्चे पर जाते हैं और अपनी आंखों से चीजों को देखने-समझने और सुलझाने की कोशिश करते हैं। पदभार संभालने के बाद से कमिश्नर राजीव शर्मा 2 बार दौरा कर तत्संबंधी जरूरी दिशा निर्देश दे चुके हैं। इस संबंध में उन्होंने जनप्रतिनिधियों और नागरिकों के से फीडबैक भी लिया है और तदनुसार व्यवस्थाएं सुनिश्चित करने हेतु कलेक्टर को फ्रीहैण्ड दिया है इसी चौकन्नेपन और चेक एंड बैलेंस के बहुस्तरीय सिस्टम का नतीजा है कि चीजें बेहतर हुई हैं। बावजूद इसके बहुत कुछ ऐसा है जिसमें समय रहते ध्यान देने, बिना देरी किये निर्णय लेने एवं तत्काल कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है । यद्यपि मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ आर. के. मेहरा का कहना है कि जिला चिकित्सालय में नियमानुसार सबकुछ सही चल रहा है ।
साफ सफाई की व्यवस्था
जिला चिकित्सालय की पहले से ही पंगु चल रही साफ-सफाई की व्यवस्था कोविड-19 के अतिरिक्त दबाव के कारण पूरी तरह चरमरा गई है । इसीलिए साफ-सफाई का पूरा सिस्टम अपडेट करने की आवश्यकता है । झाडू-पोछा करने से लेकर शौचालयों की धुलाई-सफाई, एकत्र कचरे का वर्गीकरण, सही जगह पर निष्पादन एवं अपशिष्ट प्रबंधन का अपना एक वैज्ञानिक तौर तरीका है, जिसको लेकर अस्पताल प्रबंधन किंकर्तव्यविमूढ़ है । ऐसा लगता है जैसे उनके हाथ में कुछ है ही नहीं ! या तो उनकी कोई सुनता नहीं या ये कहे कि इस पर कोई ध्यान नही देते। पिछले दिनों लंबे समय से अस्पताल परिसर में डंप कचरा उठाने को लेकर कलेक्टर से कमिश्नर तक बात उठाई गई, जिसका नतीजा यह हुआ कि अस्पताल के सफाई अमले ने ही अंततः उस कचरे को डिस्पोज किया और गैरवाजिब तरीके से अस्पताल में ही उस जहरीले कचरे को जला दिया। पिछले दिनों कोविड वार्ड के पीछे एकत्र कचरा हटाने और डिस्पोज करने की बजाय उसे वहीं जलाने का मामला सामने आया है। जो न सिर्फ गैरकानूनी है अपितु पर्यावरण और स्वास्थ्य से खिलवाड़ का गंभीर मामला भी है ।
संयुक्त मुहिम की आवश्यकता
साफ सफाई की व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त करने के लिए जिला प्रशासन की अगुवाई में संयुक्त मुहिम आवश्यक है । जिसमें अस्पताल प्रबंधन, नगर पालिका प्रशासन, सफाई ठेकेदार और जैव मेडिकल वेस्ट उठाने वाली कंपनी को समान रूप से जबाबदेह बनाना होगा । जरूरी है कि इन सभी के प्रमुखों के साथ संयुक्त बैठक कर सफाई के सभी मसलों को हल किया जाये । सभी की जिम्मेदारी जवाबदेही तय करने और उनके काम को लगातार मॉनीटर करने सिस्टम डेवलप किया जाए, तभी इसमें सुधार की गुंजाइश है ।
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कबाड़ का प्रबंधन
जिला चिकित्सालय में कबाड़ का प्रबंधन नहीं होने से जगह-जगह टूटी-फूटी कुर्सियां, टेबल, कूलर एवं खराब हो चुके अन्य चिकित्सा उपकरण बिखरे पड़े हैं। जिसके कारण मरीजों को असुविधा होती है एवं स्पेस की प्रॉब्लम भी खड़ी होती है । कबाड़ का समुचित रखरखाव नहीं होने से सफाई में भी व्यवधान उत्पन्न होता है इसलिए आवश्यक है कि कबाड़ के निस्तारण की कोई नीति बने और भौतिक सत्यापन के बाद हर तिमाही या छमाही में उसकी नीलामी की जा सके।
भोजन एवं नर्सिंग सेवाएं
जिला चिकित्सालय में भर्ती कोविड 19 के मरीजों को दी जाने वाली अन्य सेवाओं में मुख्यतः भोजन-नाश्ता एवं नर्सिंग केयर को लेकर लोगों में भारी असंतोष है, भोजन की मात्रा और क्वालिटी को लेकर कोई भी संतुष्ट नहीं है। इसी तरह नर्सिंग केयर को लेकर भी सवाल हैं। वार्ड बॉय ड्रेस में नहीं रहते । मरीजों की देखभाल की बजाय इधर-उधर बिजी रहना, गप्पे लगाना और मोबाइल में टाइमपास करना उनका रोज का काम बन चुका है। ड्रिप लगाने एवं निकालने में गफलत तो आम बात है, ऑक्सीजन कब खत्म हो गई यह देखने वाला भी कोई नहीं रहता। कौशल विश्वकर्मा सहित कई मरीजों ने इसकी शिकायत की है। कौशल विश्वकर्मा वाले मामलों में डॉक्टर ने भी यह स्वीकार किया है कि यह गफलत हुई थी। इसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। बल्हौड निवासी मृत कोविड मरीज भुवनेश्वर के अटेंडेंट प्रभात ने भी आरोप लगाया है कि ऑक्सीजन सपोर्ट हट जाने की वजह से उनके दादाजी की मौत हुई है, नही तो उनकी सेहत में तेजी से सुधार हो रहा था ।
टेक्नीशियन और ऑपरेटर्स का अभाव
जिला चिकित्सालय में उपलब्ध चिकित्सा उपकरण और मशीननें यूं भी सीमित हैं, किंतु हैरान करने वाली बात यह है कि जो भी मशीन एवं उपकरण हैं वह ऑपरेटर एवं टेक्नीशियन के अभाव में बंद पड़े हैं । सोनोग्राफी की मशीन लगभग 4 महीने से बंद पड़ी है। डायलिसिस सेंटर में भी ताला लगा है। यही नहीं कई अन्य मशीनों का भी यही हाल है । एनेस्थीसिया की सुविध भी फिलहाल नहीं है। यह सब ऐसी आवश्यकताएं हैं जो हर समय स्टैंडबाई मोड में होनी चाहिए ।
डॉक्टरों के छुट्टी एवं स्टाफ का हो सत्यापन
जिला चिकित्सालय में चिकित्सकों की भारी कमी है फिर भी जो जितने डॉक्टर पदस्थ हैं वे किसी न किसी बहाने से लंबे समय से अनुपस्थित चल रहे हैं । कुछ तो कोविड की चपेट में आने के कारण आइसोलेटेड हैं। इसी तरह नर्स, वार्डबॉय और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ का हाल है। इतनी क्राइसिस में भी कइयों का अता-पता नही है। जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। कौन-सा डॉक्टर कितने दिनों से छुट्टी पर है ? किस वजह से उसने लंबी छुट्टी ली है ? वह कब ज्वाइन करेगा ? इसकी समीक्षा होनी चाहिए। इसी तरह कोविड के नाम पर कुछ डॉक्टर महीनों से लापता हैं । जबकि पॉजिटिव पाए जाने के बाद यदि वे स्वस्थ हो गए हैं तो उन्हें 15 से 17 दिन बाद काम पर लौटना चाहिए था, किंतु उनसे कोई पूछने वाला नहीं है और वह अपनी जिम्मेदारी से बेखबर हो घर पर आराम फरमा रहे हैं । इस पूरे मसले का सत्यापन होना चाहिए । रिकार्ड में पदस्थ अमले की परेड कराई जाए तो कई कागज के पुतले ही निकलेंगे ।
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आपूर्ति और सेवाओं की मोनोपोली
आपूर्ति और रूटीन सेवाओं जैसे चिकित्सा सामग्री जैसे दवाई से लेकर उपकरण तक स्टेशनरी, भोजन-नाश्ता, व्हीकल, टेंट, फर्नीचर आदि के मामले में जिला चिकित्सालय कुछ हाथों में बंधक बना हुआ है । लंबे समय से यह देखा जा रहा है कि उन्होंने जिला चिकित्सालय को चारागाह बना रखा है । कोई आये कोई जाए पूर्व से बनी हुई व्यवस्था नही बदलती । जिसके कारण मात्रा और गुणवत्ता दोनो प्रभावित होती हैं । फर्जी बिलों का खुले आम खेल होता है । इस काकश को तोड़कर सिस्टम को जब तक पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी नही बनाया जाएगा, इसमें सुधार की गुंजाइश नही है ।
बहरहाल अब यहां देखने वाली बात यह है की कब तक जिला अस्पताल में सारी व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त होंगी या फिर मरीजों को इसी तरह परेशानियों में अपना इलाज करवाना पड़ता रहेगा।