मध्यप्रदेश उपचुनाव : जीत के लिए राजनैतिक दलों ने चला था यह दांव, आंकड़ों ने खोली पोल

Pooja Khodani
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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के 28 विधानसभा सीट (Assembly Seat) में हुए उपचुनाव (By-election) के दौरान राजनीतिक दलों (Political Parties) में जमकर शराब (Alcohol) का वितरण किया है। इस सच्चाई का पता आबकारी विभाग के आंकड़ों से चला है।हैरानी की बात तो ये है कि इसका खुलासा नतीजों के ठीक 3 दिन पहले हुआ है।

दरअसल, पिछले साल की तुलना में इस साल अक्टूबर में 22 लाख लीटर शराब  की खपत ज्यादा हुई है, जबकि उससे पहले यानी सितंबर (September) का आंकड़ा औसत रहा है। मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों में उपचुनाव के मद्देनजर 3 नवंबर (3 November) को मतदान (Voting) था। राजनीतिक दलों का चुनाव प्रचार (Election Campaign) अक्टूबर में जोरों पर था। नवरात्रि (Navratri) का त्यौहार (Festival) भी अक्टूबर (October) में था। कोरोना वायरस के संक्रमण का असर पूरे समय था। उसके बावजूद शराब की खपत तेजी से बढ़ी है।

आबकारी विभाग (Excise Department) के आंकड़ों पर नजर डालें तो अक्टूबर 2019 की तुलना में इस साल यानी अक्टूबर 2020 में 22 लाख 78000 लीटर शराब (Liqueur) की खपत ज्यादा हुई है। अवैध शराब के परिवहन से जुड़े केस भी ढाई लाख से ज्यादा है। आबकारी विभाग के अधिकारी खपत बढ़ने की एक बड़ी वजह उप-चुनाव को मान रहे हैं। संयुक्त मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी मोहित बुंदस (Joint Chief Electoral Officer Mohit Bundas) भी बता चुके हैं कि चुनाव वाले जिलों में आबकारी और पुलिस (Police) ने मिलकर 10 लाख 8000 लीटर शराब जप्त की है, जो करीब 9.72 करोड रुपए की है।

देसी से ज्यादा अंग्रेजी शराब की खपत बढ़ी

आबकारी सूत्रों के अनुसार देसी से ज्यादा अंग्रेजी शराब की खपत बढ़ी है या खपत 4 गुना से भी ज्यादा है।देसी शराब पिछले साल के अक्टूबर की तुलना में तीन लाख 87 हज़ार लीटर और अंग्रेजी शराब 18 लाख 91 हज़ार लीटर ज्यादा बेची गई है। पिछले साल की तुलना में सितंबर में खपत ज्यादा नहीं बढ़ी है। वजह उपचुनाव है। सितंबर तक चुनाव की चहल-पहल कम थी और अक्टूबर में जोरों पर थी। इससे पता चलता है कि शराब की बिक्री और परिवहन (Transportation) चुनाव में खूब किया गया है। यह सर्वविदित भी है की राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए शराब का सहारा लेते हैं और मतदाताओं के बीच इसे बांटने का काम करते हैं, जो आंकड़ों से परिलक्षित भी हो रहा है।

चुनाव आयोग को पहले से ही थी आशंका

चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमाने वाले प्रत्याशी  (Candidate) और उनके दलों के राजनेता मतदाताओं को लुभाने के लिए शराब का उपयोग करेंगे, यह आशंका चुनाव आयोग को पहले से थी। शायद इसीलिए चुनाव आयोग ने शराब की धरपकड़ के लिए विशेष अभियान चलाने के निर्देश दिए थे। चुनाव आयोग (Election Commission) के निर्देश पर पुलिस और आबकारी विभाग ने अलग-अलग और संयुक्त अभियान भी चलाया था। इस अभियान को कामयाबी भी मिली थी। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव के दौरान चुनाव वाले क्षेत्रों में पुलिस और आबकारी विभाग ने मिलकर 10 लाख 8000 लीटर शराब जप्त की थी। जप्त की गई शराब की कीमत तकरीबन 9.72 करोड आंकी गई है। अफसरों (Excise Officers) की मानें तो चुनाव आयोग की सख्ती नहीं होती तो शराब की खपत का आंकड़ा बढ़ सकता था।


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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