सतना।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव अपने अंतिम पड़ाव पर बस पहुंचने ही वाला है।आखिरी दौर में राजनैतिक दल धुंआधर प्रचार प्रसार करने में जुटे है। इस जीत को हासिल करने दोनों ही दलों भाजपा-कांग्रेस के बड़े नेताओं ने मप्र में डेरा डाल रखा है।विजय पताका फहराने दोनों ही दल स्टार प्रचारकों के तौर पर अभिनेताओं और अभिनेत्रियों को मैदान में उतारे हुए है। ऐसे में कई ऐसी विधानसभा सीटे है जहां पार्टी नहीं नेता जीतता है।पार्टी के दावे और चिन्ह का यहां कोई मतलब नही रहता । हम बात कर रहे है मैहर विधानसभा सीट की, जहां वर्तमान में बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी का कब्जा है, जो यहां पार्टी के दम पर नही बल्कि खुद के वर्चस्व पर चुनाव जीतते आए है। बीजेपी से पहले वे कांग्रेस और समाजवादी टिकट पर लड़कर भी चुनाव जीत चुके हैं।
दरअसल, मध्य प्रदेश की मैहर विधानसभा सीट के बारे में कहा जाता है कि यहां से पार्टी नहीं नेता जीतता है। यही वजह है कि बीजेपी से मौजूदा विधायक नारायण त्रिपाठी इससे पहले कांग्रेस और समाजवादी टिकट पर लड़कर भी चुनाव जीत चुके हैं। पिछले तीन चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो उन्हें देखकर कोई भी असमंजस में पड़ जायेगा क्योंकि यहां के वर्तमान विधायक नारायण त्रिपाठी तीन बार अलग-अलग पार्टियों के टिकट से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे हैं, जबकि 2016 में हुए उपचुनाव में वह बीजेपी के टिकट पर विधायक चुने गये, जो उनकी चौथी पार्टी थी।
इस बार के सियासी रण में बीजेपी ने जहां एक बार फिर वर्तमान विधायक और ब्राह्मण चेहरे नारायण त्रिपाठी पर दांव लगाया है तो कांग्रेस ने भी ब्राह्मण प्रत्याशी श्रीकांत चतुर्वेदी को मैदान में उतारा है, जबकि सपा-बसपा भी हर बार यहां प्रभावी भूमिका में रहते हैं।भले ही त्रिपाठी का सियासी सफर दलबदल वाला माना जाता है, लेकिन सियासी हवाओं का रूख परखने में वे माहिर माने जाते है्ं। पूरे क्षेत्र के हर समाज में उनकी अच्छी पकड़ होने के चलते जनता ने उन्हें हर बार चुना है।यही वजह है कि इस बार भी मैहर में मुकाबला रोचक दिख रहा है। इस सीट की खास बात तो ये है कि यहां चुनाव के पहले जो समीकरण दिखते हैं, वह परिणाम के वक्त पलट जाते हैं। लिहाजा यह सीट कई मायनों में अपने आप में अलग है। यहां के सियासी समीकरण का अंदाजा लगाना बड़े बड़ों के लिए टेढ़ी खीर साबित होता है क्योंकि यहां पार्टी विशेष नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष का दबदबा रहता है। इसके अलावा बीजेपी, कांग्रेस, सपा और बसपा का एक सा प्रभाव होना इस सीट को महत्वपूर्ण बनाता है। यहां इन चारों दलों के बीच टक्कर होता है।
पिछले आंकड़ों पर एक नजर
2013 की बात करे तो नारायण त्रिपाठी ने इस चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर जीत हासिल की थी,उन्होंने बीजेपी के रमेश प्रसाद को 7 हजार वोटों से हराया था, तब बीएसपी को भी बीजेपी उम्मीदवार के बराबर करीब 27 फीसद वोट हासिल हुए थे।वही साल 2008 के चुनाव में बीजेपी के मोतीलाल तिवारी को मैहर सीट से जीत मिली थी, उनका मुकाबला कांग्रेस के मथुरा प्रसाद पटेल से था जो 14306 वोटों से चुनाव हार गए थे। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी को 15 और बीएसपी को 12 फीसदी वोट मिले और वो क्रमश तीसरे और चौथे स्थान पर रहीं।वही सतना जिले की इस सीट पर फरवरी 2016 में उपचुनाव हुआ था, तब कांग्रेस का दामन छोड़ त्रिपाठी ने बीजेपी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी।करीब 2.12 लाख मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में ब्राह्मण और पटेल आबादी ज्यादा होने की वजह से यहां ब्राह्मणों का वोट निर्णायक है और राजनीतिक दल भी इसी समुदाय के उम्मीदवार को टिकट देते हैं।