Fri, Dec 26, 2025

Bengal SSC Scam : पार्थ चटर्जी को नहीं मिली जमानत, ED ने किया यह दावा

Written by:Sanjucta Pandit
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Bengal SSC Scam : पार्थ चटर्जी को नहीं मिली जमानत, ED ने किया यह दावा

कोलकाता, डेस्क रिपोर्ट | पश्चिम बंगाल में SSC भर्ती घोटाले (Bengal SSC Scam) को लेकर काफी दिनों तक बवाल मचा हुआ था। इस मामले में पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी को 5 अक्टूबर तक न्यायिक हिरासत में भेजा गया था। जिसके बाद पार्थ चटर्जी के वकील ने जमानत के लिए याचिका दायर की थी लेकिन, CBI के स्पेशल कोर्ट ने पार्थ की जमानत याचिका खारिज कर दी। जिसके कारण पार्थ चटर्जी को 5 अक्टूबर तक जेल में ही रहना होगा। बता दें कि पार्थ चटर्जी के साथ अन्य तीन लोगों को भी न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है, जिन्हें CBI ने जांच पड़ताल पूरी करने के बाद 15 सितंबर को गिरफ्तार कर लिया था।

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वहीं ED का दावा है कि, पार्थ जांच में उनका सहयोग नहीं कर रहे हैं। तमाम सबूत होने के बाद भी पार्थ चटर्जी ने कुछ भी मानने से साफ इंकार कर रहे हैं। ED के अनुसार, चटर्जी के सामने पूरे सबूत के साथ कुछ दस्तावेज रखे गए थे जिसपर उन्होंने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है। बता दें कि कुछ दिन पहले ED ने कोलकाता में पार्थ और अर्पिता के फ्लैट पर छापेमारी की थी। जहां से उन्हें करोड़ों रुपए नगद समेत ज्वेलरी बरामद हुए थे। साथ ही कुछ दस्तावेज भी हाथ लगे थे। साथ ही दावा किया गया कि, अर्पिता मुखर्जी बहुत जल्द एक बच्चे को गोद लेने वाली थीं। जिसके लिए पार्थ चटर्जी ने NOC भी जारी किया था और जब इस मामले में उनसे पूछताछ की गई तो पार्थ ने जवाब देते हुए कहा कि, वह मात्र एक जनप्रतिनिधि है। उनके पास NOC के लिए ऐसे कई लोग आते हैं।

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दरअसल, बंगाल शिक्षा घोटाले में ED ने 22 जुलाई और 27 जुलाई को पार्थ चटर्जी के घरों में छापेमारी की थी। जहां से उन्हें करीब 50 करोड़ रुपए कैश समेत आभूषण बरामद हुए थे। बता दें कि आभूषण की कीमत करीब 5 करोड रुपए थी। इसके अलावा फ्लैट, फार्म हाउस आदि जब्त किया गया था।

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वहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पार्थ चटर्जी पर मनी लांड्रिंग केस लगने के बाद उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था। बता दें कि उनकी गिरफ्तारी के 5 दिन बाद ही ममता को यह कदम उठाना पड़ा था। क्योंकि मामला इतना बिगड़ चुका था कि, TMC के कार्यकर्ताओं ने ही अपने पार्टी से निष्काषित करने की मांग करने लगे थे। जिसके कारण ममता बनर्जी को पार्टी की बात पर गौर फरमाते हुए यह फैसला लेना पड़ा था।

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