नई दिल्ली| बजट से एक दिन पहले आज यानी गुरुवार को संसद में आर्थिक सर्वे संसद में पेश कर दिया गया| राज्यसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह सर्वे पेश किया। बता दें कि यह सर्वे मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमणियम ने तैयार किया है और इसमें दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के रास्ते में देश के समक्ष चुनौतियों को रेखांकित किये जाने की संभावना है। इसमें 2024 तक देश की अर्थव्यवस्था का आकार दोगुने से अधिक कर 5,000 अरब डॉलर पर पहुंचाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्ष्य को पूरा करने के लिये सुधारों की विस्तृत रूपरेखा पेश किये जाने की उम्मीद है। आर्थिक सर्वेक्षण में वर्ष 2019-20 के लिए वास्तविक आर्थिक वृद्धि दर सात फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है|
पिछले वित्त वर्ष 2018-19 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर पांच साल के न्यूनतम स्तर 6.8 प्रतिशत रही थी। 7 फीसदी ग्रोथ का मतलब है कि भारत दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ता रहेगा। वहीं, ग्लोबल ग्रोथ के कम रहने की भी संभावना व्यक्त की गई है।
आर्थिक सर्वेक्षण की बड़ी बातें…
– आर्थिक सर्वे में साल 2019-20 में तेल की कीमतों में कमी आने का अनुमान लगाया गया है। इसके साथ ही देश की जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है।
– आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि 2019-20 में वित्तीय घाटा 5.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
– मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने कहा कि हमारी टीम ने पूरे समर्पण के साथ काफी मेहनत से आर्थिक सर्वे को तैयार किया है। मैं उम्मीद करता हूं की नतीजे अच्छे होंगे और हम अर्थव्यवस्था में नए विचार दे सकेंगे।
-वित्त वर्ष 2025 तक 5 लाख करोड़ (ट्रिलियन) डॉलर की इकॉनमी बनने के लिए भारत को प्रति वर्ष 8% की ग्रोथ हासिल करनी होगी।
-केंद्र में स्थिर सरकार बनने के कारण अर्थव्यवस्था में तेजी को बल मिलने की संभावना है।
-वित्त वर्ष 2019 में सामान्य वित्तीय घाटा 5.8% रहा जो वित्त वर्ष 2018 में 6.4% था।
-ऐसा लगता है कि निवेश दर निम्नतम स्तर पर पहुंच गई है।
-सरकार वित्तीय समेकन (फिस्कल कन्सॉलिडेशन) के प्रति संकल्पित है।
-जनवरी-मार्च के बीच आर्थिक मंदी चुनावी गतिविधियों के कारण आई।
-वित्त वर्ष 2019 में मंदी का कारण नॉन-बैंकिंग फाइनैंशल कंपनियों (एनबीएफसी) के नकदी संकट।
-नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट्स (एनपीए) में गिरावट से कैपेक्स साइकल को गति मिलेगी।
-वित्त वर्ष 2019-20 में मांग बढ़ने से निवेश की दर बढ़ेगी।
-वित्त वर्ष 2019-20 में तेल की कीमतों में गिरावट देखी जा रही है।
-मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की उदार नीति से रीयल लेंडिंग रेट्स (वास्तविक उधारी दरों) में कटौती हो पाई है।