इलाज के लिए अस्पताल पहुंचे लड्डू गोपाल, डॉक्टरों ने पर्चा बनाकर किया इलाज।

Gaurav Sharma
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आगरा डेस्क रिपोर्ट। ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा का शायद इससे बड़ा उदाहरण कोई हो नहीं सकता। आगरा के एक मंदिर के पुजारी जी पूजा के दौरान लड्डू गोपाल की मूर्ति का हाथ टूटने पर न केवल उन्हें अस्पताल ले गये बल्कि पर्चा बनाकर उनका इलाज भी करवाया।

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आगरा के लेख सिंह पुजारी शाहगंज क्षेत्र के खासपुरा में पथवारी मंदिर ईश्वर की आराधना करते हैं। उनके मंदिर में भगवान लड्डू गोपाल की मूर्ति भी विराजमान है। शुक्रवार को वह भगवान को स्नान करा रहे थे कि मूर्ति हाथ से फिसल गई और लड्डू गोपाल का हाथ टूट गया। बस फिर क्या था, पुजारी जी की आंखों से झर झर आंसू बहने लगे और वे जा पहुंचे जिला अस्पताल।अस्पताल खुला नही था तो पुजारी जी गेट पर ही बैठ गये। डॉक्टर जब आऐ तो पुजारी जी को देखकर हैरान रह गए और उन्हें समझाने लगे। लेकिन पुजारी जी ने जिद पकड़ ली कि भगवान को अस्पताल में भर्ती करना ही पड़ेगा। आखिर भक्तों की जिद के आगे डॉक्टर को झुकना पड़ा।

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जिला अस्पताल के अधीक्षक एके अग्रवाल ने बाकायदा पर्चा बनवाया और ‘श्रीकृष्ण पिता का नाम श्री भगवान’ के नाम से पर्चा बनकर आने के बाद बाकायदा लड्डू गोपाल की पट्टी भी कराई गई। जब तक भगवान के पट्टी नहीं बध गई, पुजारी जी रो-रोकर बेसुध हो गए। लोग उन्हें सांत्वना देते रहे। पुजारी जी की भक्ति देखकर लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई। डॉक्टरों ने लड्डू गोपाल की पट्टी बाधने के बाद उनको इलाज के लिए दवाइयां भी लिखी और पर्चा पुजारी जी को दिया और यह आश्वासन भी कि भगवान जल्द स्वस्थ हो जाएंगे। तब पुजारी जी की जान में जान आई और वे वापस मंदिर के लिए रवाना हुए। कलयुग में भक्तों की ईश्वर के प्रति श्रद्धा का यह अद्भुत उदाहरण है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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