क्या था जाकिर हुसैन का असल सरनेम? क्या बनी बदलने की वजह! कैसे मिला ताजमहल चाय का ऑफर

पद्म विभूषण से सम्मानित जाकिर हुसैन के तबले की थाप की दुनिया भर में गूंजी। उनके संगीत का जादू दुनियाभर में छाया। आज हम आपको बताते हैं कि उनका असली सरनेम क्या था और आखिरकार ताजमहल चाय का एडवर्टाइजमेंट उन्हें कैसे मिला।

Diksha Bhanupriy
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Zakir Hussain: जाकिर हुसैन नाम अमर है पर इस नाम के साथ जुड़ा शरीर अपने लाखों चाहने वालों को अलविदा कह गया है। तबले की थाप का असर और वाह ताज का वो दृश्य आज भी करोड़ों चाहने वालों के दिल में यूं बसा है मानो अभी ही तो देखा था।

पर अपने पसंदीदा कलाकार की कुछ ऐसी बातें हैं जो आज भी उनके करोड़ों फैंस नहीं जानते। उनमें से जो पहली बात है वह है कि जाकिर हुसैन का असली उपनाम हुसैन था ही नहीं वही दूसरी बात की उन्हें ताजमहल चाय का एडवर्टाइजमेंट कैसे मिला? आइए पढ़ें इनके बारे में

क्यों बदला उपनाम और कैसे जाकिर कुरैशी बने जाकिर हुसैन (Zakir Hussain)

जाकिर के परिवार में असल जिस उपनाम का उपयोग किया जाता था वह था कुरैशी, 2018 के एक इंटरव्यू में जाकिर ने बताया था कि जब वह तीन बहनों के बाद अपने पिता उस्ताद अल्ला रखा खान के घर जन्मे, इसके बाद उनके पिता बीमार रहने लगे। इस वजह से उनकी मां बेटे को जन्म को कोसती थी। एक रोज़ जब एक संत उनके घर आए तब संत द्वारा मां से मुझे ना कोसने की और मेरा ख्याल रखने की बात कही गई, साथ ही मुझे इमाम हुसैन का फकीर बना (जो एक शिया मुस्लिम थे) जाकिर हुसैन के नाम से बुलाने की बात कही। ऐसे मेरा सरनेम हुसैन हो गया।

आपको बता दें वर्ष 2010 में जाकिर हुसैन पहले भारतीय संगीतकार थे जिन्होंने व्हाइट हाउस अमेरिका के अंदर प्रस्तुति दी थी। यह न्यौता उन्हें तब के राष्ट्रपति बराक ओबामा की तरफ से आया था।

कैसे मिला ताजमहल चाय का एडवरटाइजमेंट

आज जब भी आप ताजमहल चाय पीते हैं तो आपके ज़हन में अपने आप वाह ताज की आवाज़ घूमने लगती है। आपके सामने तबला बजाते जाकिर हुसैन का चेहरा आ जाता है। पर यह हुआ कैसे? कैसे जाकिर ताजमहल चाय का चेहरा बने और कैसे करोड़ों भारतीयों के साथ बेजोड़ तरीके से जुड़ गए।

1966 कोलकाता में ब्रुक बॉन्ड ताज महल चाय की शुरुआत हुई। यह चाय एक प्रीमियम चाय के रूप में बाजार में आई और देश के लोगों को यह बताने की कोशिश की गई के इस चाय के बिना सुबह की शुरुआत नहीं की जा सकती। बेहद खूबसूरत मॉडल के साथ इस चाय की एड शुरू की गई और अंत में कहा गया “आह ताज”।

इसके बाद इस चाय को संपूर्ण भारत में कैसे लोगों तक पहुंचाया जाए इस बात को लेकर मंथन शुरू हुआ और सामने आया एक ऐसा आईडिया जिसमें भारत का ट्रेडीशन भी था और विदेश की छाप भी थी। चक्रवर्ती जो कि उसे टाइम पर कॉपीराइटर थे उन्हें इस बात को लेकर तबला और तबले के उस्ताद जाकिर हुसैन का नाम जहन में आया। और ऐसे जाकिर हुसैन बने ताजमहल चाय के ब्रांड एंबेसडर। एडवर्टाइजमेंट के शुरुआत में तबले की थाप और अंत में वह तक के साथ चाय की चुस्की करोड़ों हिंदुस्तानियों तक ताजमहल चाय को पहुंचा गई। वाह उस्ताद वाह बाद “अरे हुजूर वाह ताज बोलिए” अब हर भारतीय की ज़ुबान पर था। रेडियो पर तबले की थाप के साथ सुनाई देने वाले जाकिर हुसैन अब टेलीविजन के माध्यम से करोड़ों हिंदुस्तानियों के घर का हिस्सा बन चुके थे।


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Diksha Bhanupriy

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"पत्रकारिता का मुख्य काम है, लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को संदर्भ के साथ इस तरह रखना कि हम उसका इस्तेमाल मनुष्य की स्थिति सुधारने में कर सकें।” इसी उद्देश्य के साथ मैं पिछले 10 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम कर रही हूं। मुझे डिजिटल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का अनुभव है। मैं कॉपी राइटिंग, वेब कॉन्टेंट राइटिंग करना जानती हूं। मेरे पसंदीदा विषय दैनिक अपडेट, मनोरंजन और जीवनशैली समेत अन्य विषयों से संबंधित है।

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