कोरोना संकट, नवरात्रि में श्रद्धालु नहीं कर पाएंगे  मां पीतांबरा और शारदा के दर्शन 

Virendra Sharma
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भोपाल डेस्क रिपोर्ट।कोरोना के बढते संक्रमण का असर नवरात्र पर्व पर भी पड़ रहा है।संक्रमण के बढते ऑकड़ों को देखते हुए दतिया की पीतांबरा और सतना जिले के मैहर के शारदा मंदिर में श्रद्धालुओं के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। दरअसल जिस तेजी के साथ कोरोना फैल रहा है, उसमें भारी भीड़ के बीच श्रद्धालुओं का दर्शन करना कोरोना के संक्रमण फैलने का बड़ा कारण बन सकता है।

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 शक्ति की उपासना का पर्व चैत्र नवरात्र  13 अप्रैल से शुरू हो रहा है। इस बार कोई दिन क्षय नहीं है और यह पर्व पूरे 9 दिन मनाया जाएगा जिस का समापन 21 अप्रैल को होगा। भक्तगण इस पर्व को पूरी श्रद्धा के साथ मनाते हैं और मंदिरों में भारी भीड़ रहती है। लेकिन इस समय  कोरोना भयावह तरीके से फैला हुआ है और इसके चलते मंदिर प्रशासन ने निर्णय लिया है कि मंदिर के पट तत्काल प्रभाव से बंद किए जाते हैं। इसी के साथ सतना जिले के मैहर में मां शारदा के मंदिर में भी श्रद्धालु दर्शन नहीं कर पाएंगे। इन मंदिरों में आम दिनों की तरह पूजा तो होगी लेकिन श्रद्धालुओं का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित रहेगा।

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                                        मां पीतांबरा दतिया
दतिया जिले में स्थित पीतांबरा  पीठ विश्व प्रसिद्ध है। देश के लोकप्रिय शक्तिपीठों में से एक इस स्थान पर कभी श्मशान हुआ करता था ।इसी मंदिर के प्रांगण में मां धूमावती देवी का मंदिर है जो देश भर में एकमात्र है। कहा जाता है कि पीतांबरा पीठ के स्वामी जी महाराज ने बचपन से ही सन्यास ग्रहण कर लिया था। वह यही निवास करते थे और उन्होंने 1935 में इस पीठ की स्थापना की थी। यहां बना वन खंडेश्वर मंदिर महाभारत कालीन मंदिरों में अपना विशेष स्थान रखता है जो भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर परिसर में मां बगलामुखी देवी की सुंदर प्रतिमा विराजमान है जो अपने साधकों की हर मनोकामना पूरी करती है।

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                                           मां शारदा सतना
 सतना जिले के मैहर में त्रिकूट पर्वत की चोटी पर स्थित इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है ।मैहर देवी के मंदिर में देवी काली ,दुर्गा, गौरी, शंकर ,शेषनाग ,काल भैरवी,  फूलमती माता, ब्रह्मा देव, हनुमानजी और जलापा देवी की भी पूजा होती है। इस मंदिर में कुल 1063 सीढ़ियां है जिन्हें चलकर ऊपर जाया जाता है ।इस मंदिर की खोज आल्हा और उदल के द्वारा की गई थी और मान्यता है कि देवी ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था।

 


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