भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। आज होली (Holi) का त्योहार है। रविवार रात होलिका दहन के बाद आज रंग खेला जा रहा है। हिंदू धर्म का ये एक प्रमुख त्योहार है और लोग सालभर इसका इंतज़ार करते हैं। लेकिन इस बार होली अन्य साल की होली की तुलना में काफी खास है, क्योंकि इस होली पर अद्भुत संयोग बन रहा है। इस संयोग का नाम गजकेसरी योग है। 499 साल बाद होली पर बन रहा गजकेसरी का शुभ संयोग लोगों के जीवन में खुशहाली लेकर आएगा जो हर राशि के जातकों को शुभ फल देने वाला होगा।
होली (Holi) पर इससे पहले ये महासंयोग सन 1521 में बना था। तब भी मकर राशि में शनि ग्रह और गुरु अपनी धनु राशि में रहे थे और इस बार भी ऐसा ही है। इसके चलते होली पर शुभ संयोग बना है। इससे पहले 03 मार्च 1521 यानि अब से 499 साल पहले होली के दिन दोनों ग्रहों के अपनी-अपनी राशियों में होने के कारण ऐसा संयोग बनाया था। इस होली के बाद सभी राशि वाले लोगों की परेशानियां खत्म होने की उम्मीद है।
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इन राशियों की चमकेगी किस्मत
मेष : होली पर मेष राशि के लोगों के लिए अच्छा समय है। इस राशि के लोगों की धन की स्थिति अच्छी रहेगी, नौकरीपेशा लोगों को फायदा होगा और बिजनेस वाले लोगों के लिए निवेश में अच्छा समय है। बुजुर्गों का सम्मान करना होगा और दान में खाने की चीजें और लाल कपड़ा देना होगा।
वृषभ: राशि के लोगों के लिए भी अच्छा समय है। इस राशि के लोगों के पीछे किए गए अच्छे कार्य आपको इस समय लाभ कराएंगे। इस राशि के लोगों को अपने बड़ों की सलाह माननी चाहिए और गर्म कपड़े गरीबों को दान करने चाहिए।
मिथुन: राशि के लोगों के लिए भी अच्छा समय है। इस राशि के लोगों को अधिकारियों से अच्छा फायदा होगा। आपकी किस्मत आपके साथ है। इस राशि के लोग केसर का दान करें।
कन्या: राशि के लोगों के लिए भी होली शुभ समाचार लेकर आ रही है। इस राशि के लोगों के साथ किस्मत का साथ बना हुआ है। घर से अच्छा समाचार मिलेगा। इस राशि के लोगों को अनाज का दान करना होगा।
धनु: राशि के लोगों के लिए होली पर शुभ संयोग अच्छा समय लेकर आ रहा है। इस राशि के लोगों को परिवार की तरफ से लाभ मिलने की संभावना है। इस राशि के लोग चावल का दान करें।
होली की कथा
होली बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देता हुआ त्योहार है। होली की कहानी का संबंध श्रीहरि विष्णु से है। नारद पुराण के अनुसार आदिकाल में हिरण्यकश्यप नामक एक राक्षस हुआ था। वो स्वयं को ईश्वर से भी महान समझता था और उसने अपने राज्य में ये नियम बनाया था कि लोग केवल उसकी पूजा करें। लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रह्लाद विष्णु जी का परम भक्त था। ये भक्ति उसे उसकी मां से विरासत के रूप में मिली थी। लेकिन ये बात हिरण्यकश्यप को पसंद नहीं थी। वो अपने पुत्र को भक्ति मार्ग से हटाना चाहता था लेकिन कई प्रयासों के बाद भी उसमें सफल नहीं हो पाया। इसके बाद क्रुद्ध हिरण्यकश्यप ने पुत्र प्रह्लाद को मारने की कई कोशिशें की लेकिन उसमें भी असफल रहा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को भगवान शंकर से वरदान में एक चादर मिली थी जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। अपने भाई की आज्ञा पर होलिका उस चादर को ओढकर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गयी। लेकिन विष्णु जी के चमत्कार से वह चादर उड़ कर प्रह्लाद पर आ गई जिससे प्रह्लाद बच गया और होलिका जलकर स्वाहा हो गई। तभी से होलिका दहन की प्रथा की शुरूआत हुई।
होलिका दहन के दूसरे दिन रंग खेले जाते हैं जिसे धुलेंडी, धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन भी कहते हैं। इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग अबीर गुलाल आदि लगाते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं।
होली का महत्व
होली फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है। आने वाली त्रि-राशियों में से एक होली की रात्रि भी मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन किए गए सभी धार्मिक अनुष्ठान, मंत्र, जाप, पाठ आदि सिद्ध और अक्षुण्ण हो जाते हैं जिनका फल जीवनभर प्राप्त होता है।
होली के विविध रंग
होली न सिर्फ हमारे देश में बल्कि विदेशों में भी हर्षोल्लास से मनाई जाती है। बाहर के देशों में जहां भी भारतीय बसे हैं वो भी बड़े उल्लास से इसे मनाते हैं। हमारे यहां भी अलग अलग जगह इसे कई तरह से मनाते हैं। मथुरा और वृंदावन में होली बहुत प्रसिद्ध त्योहार है। ये श्रीकृष्ण की जन्मस्थली है और मान्यतानुसार यहां होली राधा और कृष्ण के समय से चली आ रही है। आज भी यहां राधा और कृष्ण शैली में होली खेली जाती है। वही बरसाने की लठमार होली विश्वप्रसिद्ध है। यहां हर साल लोग लट्ठमार होली मनाते हैं, बरसाने और नंदगांव की होली देखने लोग दूर दूर से आते हैं। तो आईये रंगों के इस त्योहार में हम भी रंग जाएं और सारी दुनिया में प्रेम और शांति का संदेश फैलाएं।