Pitru Paksha 2023 : पितृपक्ष या श्राद्ध पर्व हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान पितरों की पूजा की जाती है। यह पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष के प्रारंभ में शुरू होता है और 15 दिन तक चलता है। इसका मुख्य उद्देश्य पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करना है ताकि वे स्वर्ग में सुख से विश्राम कर सकें। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों के लिए अंधकार तिथि और पितृओं के लिए पूर्णिमा तिथि के दिन श्राद्ध करते हैं। इसके अलावा, अन्य दिनों पर भी पितृओं के लिए पूजा की जाती है। वैसे तो देशभर में पिंडदान के लिए 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है लेकिन उनमें बिहार का गया तीर्थ सर्वोपरि है। तो चलिए जानतें है इसकी खास वजह…
पितृपक्ष मेले का भी होता है आयोजन
गया जिला बिहार राज्य में स्थित है, जहां पितृपक्ष के दौरान पिंडदान किया जाता है। इस दौरान पितृपक्ष मेले का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें देश-विदेश से लगभग लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस जगह को “गया श्राद्ध” के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, गया में पिंडदान करने से परमात्मा की कृपा से 108 कुल (यानी पितृकुल) और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। गया में इस धार्मिक कार्य को बड़े आदर और श्रद्धा के साथ किया जाता है। यहां पर अनेक पुराने और पवित्र मंदिर भी हैं।
जानें गया में पिंडदान करने का महत्व
एक धार्मिक कथा के अनुसार, गयासुर एक असुर था जो कि भगवान विष्णु का परम भक्त था। उन्होंने भगवान विष्णु की अत्यंत भक्ति और तपस्या की, जिससे भगवान प्रसन्न हो गए और उनकी तपस्या को प्रसन्नता से स्वीकार किया और उनसे एक वरदान मांगने का अवसर दिया। गयासुर ने वरदान के रूप में पापों से मुक्ति और स्वर्ग की प्राप्ति मांगी। भगवान विष्णु ने इसे स्वीकार कर दिया। जिसके बाद लोग गयासुर के दर्शन मात्र से ही अपने सभी पापों से मुक्त हो जाते थे और मरने के बाद उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती थी। जिससे स्वर्ग के देवता चिंतित हो गए और भगवान विष्णु के पास जा पहुंचे।
गयासुर ने मांगा ये वरदान
जिसके बाद भगवान विष्णु गयासुर के शरीर में समा गए, जिससे गयासुर तनिक भी विचलित नहीं हुआ। इस बात से भगवान एक बार फिर प्रसन्न हो गए और गयासुर से एक और वरदान मांगने को कहा। यह सुनते ही गयासुर ने अनंत काल तक उसी स्थान पर विराजमान रहने का वरदान मांग लिया। जिसके बाद उसका शरीर पत्थर में बदल गया। उस समय श्रीहरि ने कहा कि जो भी व्यक्ति पितृपक्ष के दौरान श्रद्धा और भक्ति भाव से गया में अपने पितरों के लिए पिंडदान करेगा, तो उनके मृत पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होगी।
पूर्वजों को मिलती है शांति
एक अन्य धर्मिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम और माता सीता ने गया जाकर अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। इस पिंडदान के माध्यम से उन्होंने अपने पिता की आत्मा को शांति दिलाई और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इसीलिए गया में पिंडदान करना बेहद खास माना जाता है।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना अलग-अलग जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)