Supreme Court on marital rape : वैवाहिक बलात्कार को को अपराध के दायरे में लाया जाए या नहीं, इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 15 फरवरी तब जवाब मांगा है। मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की मांग वाली याचिकाओं को लेकर ये जवाब मांगा गया है। 21 मार्च से इन याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू होगी। कोर्ट भारतीय कानून के तहत पतियों को दी गई छूट खत्म करने की याचिकाओं पर विचार कर रहा है। इन याचिकाओं में से एक याचिका दिल्ली हाईकोर्ट के विभाजित आदेश के संबंध में दायर की गई है।
सोमवार को सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जे बी पारदीवाला की बेंच ने मामले की सुनवाई की। मैरिटल रेप अपराध है या नहीं, इस सवाल पर 16 दिसंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट परीक्षण के लिए तैयार हुआ था। पिछले साल 11 मई को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर विभाजित फैसला दिया था। इस मामले पर दोनों जजों की राय में अंतर था। इसी कारण दोनों जजों ने मामले को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए प्रस्तावित किया था।
IPC की धारा 375( रेप) के तहत मैरिटल रेप को अपवाद माने जाने को याचिकाकर्ता ने चुनौती दी है। इस धारा के अनुसार विवाहित महिला के पति द्वारा यौन क्रिया को तब तक दुष्कर्म नहीं माना जाएगा, जब तक पत्नी नाबालिग न हो। एक अन्य याचिका कर्नाटक हाईकोर्ट में दायर की गई थी, जिसके बाद उसके भपर अपनी पत्नी के साथ कथित बलात्कार का मुकदमा चलाया गया था। इन याचिकाओं के बैच में चार प्रकार के मामले शामिल है जिनमें दिल्ली हाईकोर्ट के विभाजित फैसले के खिलाफ अपील है, दूसरी वो जनहित याचिकाएं हैं जो मैरिटल रेप को अपवाद में रखने की वैधता के खिलाफ की गई हैं, इसके बाद कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका और हस्तक्षेप करने वाले अनुप्रयोग हैं।