Tiger Movement In Bhopal : खुले में शौच बना बछड़ों की मौत का कारण, आखिर किसकी लापरवाही!

Tiger movement in Kaliasot Bhopal : भोपाल में कलियासोत इलाके में इन दिनों एक बाघिन अपने शावकों के साथ डेरा डाले हुए हैं। उसका तीन साल का बड़ा बेटा भी मां की तलाश में पीछे-पीछे आ गया है। सरकारी बुल मदर फार्म में ये अब तक दो बछड़ों का शिकार कर चुके हैं। लेकिन बछड़ों की मौत की वजह हर किसी को हैरत में डाल देने वाली है।

पशुपालन विभाग कर रहा मोदी के सपने को अनदेखा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वच्छ भारत अभियान पूरे देश में न केवल सराहा गया, बल्कि लोकप्रिय भी हुआ। गांव या कस्बों में शौच के लिए लगने वाली कतारें अब जैसे अतीत की बात है। हर घर शौचालय की प्रधानमंत्री की योजना काफी हद तक धरातल पर क्रियान्वित हो चुकी है। लेकिन मध्य प्रदेश के पशुपालन विभाग में इस योजना को नजरअंदाज करना गाय के दो बछड़ों की मौत का कारण बन गया।

काट दी गई फार्म की फेंसिंग

कहानी शुरु होती है भोपाल के कलियासोत पर स्थिति बुल मदर फार्म से..यहां उच्च प्रजाति की गाय व गौवंश का संरक्षण व संवर्धन किया जाता है। इस कार्य के  लिए काफी संख्या में मजदूर भी इसी फार्म के केंपस में निवास करते हैं। इनमें झाबुआ से आए लगभग दो दर्जन श्रमिक परिवार भी शामिल हैं। इनकी रिहाइश की व्यवस्था कैंपस में ही की गई है और आवास बनाए गए हैं। हर आवास के लिए एक एक शौचालय की व्यवस्था भी है। लेकिन आदतन मजबूर ये श्रमिक अभी भी खुले में शौच जाते है और सारी चूक यहीं से शुरू होती है। खुले में शौच जाने के लिए इन्होने फार्म की सुरक्षा के लिए बनाई गई दो कांटेदार फेंसिंग को बीच में से काट दिया, ताकि ये निकलकर बाहर शौच कर सकें। इनमें एक 16 फीट और दूसरी 5 फीट लंबी थी।

वन विभाग की लापरवाही ने ली बछड़ों की जान

हालांकि ये पूर इलाका रातापानी अभ्यारण्य की ज़द में आता है जो टाइगर का सहज मूवमेंट स्थल भी है। अब ज़रा एक और विभाग की लापरवाही देखिए..जंगल में बाघ जैसे आदमखोर जानवरों को सरलता से खाद्य पदार्थ उपलब्ध हो सके उसके लिए आवश्यक है एक मजबूत PREY BASE, इसको लेकर हमारी बात मशहूर एनवायरमेंटलिस्ट अजय दुबे से हुई। दुबे ने हमें बताया कि ‘टाइगर का जंगल से बाहर शिकार करने जाना साफ दर्शाता है कि जंगल में शिकार की कमी है’। यदि जंगल में भरपूर मात्रा में शिकार हो तब बाघ बाहर क्यों जाएगा। लेकिन इंसानों द्वारा हिरण, नीलगाय आदि जानवर जो टाइगर का भोजन है का शिकार किया जा रहा है। जिस कारण भोजन की तलाश में वह जंगल से सटे इलाकों तक आ जाता है और गाय, बैल, बछड़ा आदि जानवरों का शिकार करता है। शिकारियों द्वारा किए जा रहे शिकार पर वन विभाग का लगाम न लगा पाना साफ तौर पर विभाग की बड़ी लापरवाही को दर्शाता है। यदि जंगल के अंदर भरपूर मात्रा में PREY BASE उपलब्ध रहता है तो बाघ की शहरी इलाकों में आने की संभावना है ना के बराबर रह जाती हैं।

बछड़ों की जगह इंसान की भी जा सकती है जान

अब अधिकारी फेंसिंग को दुरुस्त करा रहे हैं और आश्वासन भी दे रहे हैं कि ऐसी घटना भविष्य में दुबारा नहीं होगी। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि भूखी बाघिन के सामने अगर बछड़ों की बजाय कोई इंसान होता तो वो उसे भी अपना शिकार बना लेती। ऐसे में इन दो विभागों की लापरवाही कितने बड़े हादसे का सबब बन जाती, अंदाज़ा लगाया जा सकता है। और अब भी खतरा पूरी तरह टला नहीं है। वन विभाग को ये सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में भी ऐसी कोई लापरवाही न हो जिससे किसी भी तरह के जानमाल के नुकसान की आशंका बनी रहे।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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