क्यों होती है गुदगुदी : हम खुद को क्यों नहीं कर सकते Tickle, जानिए गुदगुदी का मजेदार साइंस

गुदगुदी हंसाती है, गुदगुदाती है और कभी-कभी परेशान भी करती है। इसके पीछे का विज्ञान और कहानियां भी बड़ी रोचक हैं। जैसे, क्या आप जानते हैं कि सिर्फ इंसान ही नहीं..चूहे, बंदर, और कुत्ते भी गुदगुदी महसूस करते हैं। वैज्ञानिकों ने जब चूहों को गुदगुदी की और वो हंसते हुए चीं-चीं की आवाज़ निकालने लगे। कुत्तों को पेट पर हल्के से गुदगुदी करो तो वो खुशी से लोटपोट हो जाते हैं। और एक तथ्य ये भी है कि कुछ लोग गुदगुदी के प्रति बिल्कुल संवेदनशील नहीं होते हैं, मतलब उन्हें गुदगुदी नहीं लगती है।

Fun Science of Tickling : गुदगुदी..पढ़ते ही चेहरे पर स्माइल आ गई न। गुदगुदी जो हमें हंसाती भी है और कभी-कभी परेशान भी कर देती है। आखिर क्यों होती है गुदगुदी। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि ये हमारे पुराने जमाने के डर से जुड़ा है। जब इंसान जंगलों में रहा करते थे तो कीड़े-मकोड़े या छोटे जानवरों के छूने से उन्हें खतरे का एहसास होता था। ये खतरे का अलार्म था। गुदगुदी उस एहसास की याद हो सकती है..जो अब डर की जगह हंसी में बदल गई है। दूसरी थ्योरी ये कहती है कि ये दोस्तों और परिवार के साथ मस्ती का तरीका है। छोटे बच्चों को गुदगुदी करने से वो हंसते हैं तो ये एक तरह का “सोशल गेम” भी है।

गुदगुदी वो अजीब सा एहसास है, जो तब होता है जब कोई हल्के से आपकी त्वचा को छूता है। खासकर कमर, पेट या तलवों पर। बस यहां छूते ही आपको हंसी छूट जाती है और शरीर अगड़म-बगड़म होने लगता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक..ये हमारे शरीर की नसों और दिमाग का एक खेल है। जब कोई संवेदनशील जगह को छूता है तो नसें दिमाग को फटाफट संदेश भेजती हैं और दिमाग कहता है ‘अरे, ये तो मजेदार है’ और इसका नतीजा होता है हंसी और हल्की छटपटाहट।

जानिए गुदगुदी का साइंस

गुदगुदी (Tickling) एक अनोखी शारीरिक प्रतिक्रिया है जो हमें हंसने और कभी-कभी असहज भी महसूस कराती है। ये एक न्यूरोलॉजिकल (Neurological) और शारीरिक (Physiological) प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसमें दिमाग, तंत्रिकाएं और त्वचा मिलकर काम करते हैं। आइए, इसे वैज्ञानिक नजरिए से समझते हैं।

दरअसल हमारी त्वचा में लाखों छोटे-छोटे सेंसर होते हैं जिन्हें “टच रिसेप्टर्स” कहा जाता है। ये सेंसर हल्के स्पर्श, दबाव या गुदगुदी जैसे एहसास को पकड़ते हैं। खास तौर पर कुछ संवेदनशील जगहें जैसे पेट, कमर, तलवे या बगल में ये सेंसर ज्यादा एक्टिव होते हैं। ऐसे में जब कोई इन जगहों को हल्के से छूता है तो ये सेंसर तुरंत नसों के जरिए दिमाग को संदेश भेजते हैं। वैज्ञानिक भाषा में इसे “मैकेनोरिसेप्टर्स” कहते हैं, जो स्पर्श को डिटेक्ट करते हैं।

जब ये संदेश दिमाग तक पहुंचता है तो दिमाग के दो हिस्से खास तौर पर सक्रिय होते हैं। पहला, सोमैटोसेंसरी कॉर्टेक्स जो ये हिस्सा बताता है कि शरीर के किस हिस्से को छुआ गया है। और दूसरा एंटीरियर सिंगुलेट कॉर्टेक्स जो हिस्सा भावनाओं से जुड़ा है और गुदगुदी को मजेदार या परेशान करने वाला बनाता है। दिमाग इस हल्के स्पर्श को एक अनप्रेडिक्टेबल चीज समझता है, जिससे हंसी या छटपटाहट शुरू हो जाती है। लेकिन अगर स्पर्श बहुत जोर का हो तो गुदगुदी की जगह दर्द का एहसास भी हो सकता है।

दो तरह की होती है गुदगुदी

वैज्ञानिक गुदगुदी को दो कैटेगरी में बांटते हैं। पहली है निसमेसिस (Knismesis) जो हल्की गुदगुदी होती है। जैसे कोई पंख से छुए या कीड़ा रेंगता हुआ सा महसूस हो। इसमें ज्यादा हंसी नहीं लआती, बस हल्की सी सिहरन होती है। वहीं, गार्गलेसिस (Gargalesis) यानी तेज़ गुदगुदी..जैसे कोई उंगलियों से कमर या तलवों पर गुदगुदी करे। ये वो वाली है जो आपको जोर-जोर से हंसाती है और शरीर को बेकाबू कर देती है।

हम खुद को गुदगुदी क्यों नहीं कर पाते

क्या आपने कभी कोशिश की है कि खुद को गुदगुदी करने की ? क्या आपको ऐसा कर हंसी आई ? ऐसा कर पाना बहुत मुश्किल है। तो क्या गुदगुदी वो जादू है जो सिर्फ दूसरों के हाथों में ही काम करता है। आखिर इसका क्या राज़ है। इसका जवाब है हमारा दिमाग। दरअसल हमारा दिमाग बहुत स्मार्ट है। जब हम खुद को गुदगुदी करने की कोशिश करते हैं तो मस्तिष्क पहले ही समझ जाता है कि अगला स्पर्श कहां और कैसा होने वाला है।

हमारे दिमाग में एक खास हिस्सा होता है जिसे “सेरिबैलम” (cerebellum) कहते हैं। ये आपका पर्सनल सेक्योरिटी गार्ड है जो हर वक्त ये चेक करता रहता है कि आप क्या करने वाले हैं। इसीलिए जब आप खुद को गुदगुदी करने की कोशिश करते हैं जैसे अपनी कमर या तलवों को छूते हैं तो सेरिबैलम पहले से ही जान जाता है कि ‘ये तो मैं खुद कर रहा हूं’। फिर वो दिमाग के बाकी हिस्सों को बता देता है कि कोई सरप्राइज या खतरा नहीं है तो हंसने या छटपटाने की जरूरत नहीं। नतीजा..गुदगुदी का वो मज़ेदार एहसास गायब हो जाता है। अब दूसरी तरफ, जब कोई और आपको गुदगुदी करता है तो ये आपके लिए अचानक और अनजाना होता है। सेरिबैलम को पता नहीं होता कि कब, कहां और कैसे वो उंगलियां आपकी त्वचा पर चलेंगी। इसीलिए दिमाग हंसी और छटपटाहट का बटन ऑन कर देता है। यानी गुदगुदी का मज़ा तभी आता है..जब वो आपके कंट्रोल से बाहर हो।

क्या गुदगुदी का कोई नुकसान हैं

वैसे तो गुदगुदी ज्यादातर मजेदार होती है, लेकिन कभी-कभी ये परेशानी भी खड़ी कर सकती है। अगर किसी को बहुत ज्यादा गुदगुदी की जाए, तो उसे सांस लेने में दिक्कत हो सकती है क्योंकि हंसते-हंसते सांस फूल जाती है। कुछ लोगों को गुदगुदी से घबराहट भी होती है, खासकर अगर वो इसे कंट्रोल न कर पाएं। और अगर कोई शरारती दोस्त गलत वक्त पर गुदगुदी कर दे..जैसे खाना खाते वक्त तो खाना गले में अटकने का डर भी रहता है। इसका मनोवैज्ञानिक असर भी होता है। अगर कोई बार-बार गुदगुदी करके आपको परेशान करे और आपको वो पसंद न हो तो ये एक तरह का कंट्रोल खोने का एहसास हो सकता है। इससे रिश्तों में तनाव आ सकता है, खासकर अगर दूसरा शख्स आपकी ‘ना’ को नज़रअंदाज़ करें। इसीलिए गुदगुदी को हंसने-हंसाने तक ही सीमित रखना चाहिए और इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी को कोई परेशानी न हो।


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Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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