वेश्यालय की मिट्टी के बिना माँ दुर्गा की प्रतिमा क्यों नहीं होती आखिर पूरी !

Published on -

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। दुर्गा पूजा एक ऐसा पर्व जिसके बारे में माना जाता है कि शारदेय नवरात्रि के इन नौ दिनों में माँ दुर्गा अपने परिवार सहित इस धरती पर आती है,और इन्ही नौ दिनों में मायके आई बेटी की तरह उनका स्वागत और सत्कार किया जाता है, पूरे भारत मे नवरात्रि के दौरान उत्सव और उल्लास का माहौल नज़र आता है, लोग माँ जननी की भक्ति में डूब जाते है।

सरकार की बड़ी घोषणा, इन पूर्व कर्मचारियों को मिलेगा 3 महीने का वेतन

दुर्गा पूजा में मां दुर्गा की भव्य मूर्तियों का एक खास महत्व होता है। लेकिन इस पावन पर्व की बात कोलकाता की दुर्गा-पूजा के बिना अधूरी है। पूरे भारत में लोकप्रिय इस पूजा के लिए यहां विशेष मिट्टी से माता की मूर्तियों का निर्माण होता है और उस मिट्टी का नाम है ‘निषिद्धो पाली’। उत्तर और पूर्व भारत में नवरात्रि नौ दिनों का त्यौहार होता है। जबकि पश्चिम बंगाल में नवरात्रि के आखिरी चार दिन दुर्गा पूजा की जाती है और यही उनका सबसे बड़ा पर्व होता है। सुनकर हैरानी होगी कि दुर्गा पूजा के दौरान देवी मां की मूर्ति बनाई जाती है, जिसके लिए मिट्टी तवायफों के आंगन  से लाई जाती है। वैश्यालय वह जगह जिसे सबसे अपवित्र माना जाता है ऐसे में आखिर दुर्गा माँ की प्रतिमा के लिए यहां की मिट्टी का उपयोग क्यों किया जाता है। आइए जानते है।

ऊर्जा मंत्री का अलग अंदाज, सफाई मित्रों के सामने झुकाया सिर, किया सम्मान

 

ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में एक वेश्या मां दुर्गा की अन्नय भक्त थी उसे तिरस्कार से बचाने के लिए मां ने स्वयं आदेश देकर, उसके आंगन की मिट्टी से अपनी मूर्ति स्थापित करवाने की परंपरा शुरू करवाई. साथ ही उसे वरदान दिया कि बिना वेश्यालय की मिट्टी के उपयोग के दुर्गा प्रतिमाओं को पूरा नहीं माना जाएगा, और तब से इस परंपरा की शुरुआत हुई। यह भी कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति वेश्यालय में जाता है तो वह अपनी पवित्रता द्वार पर ही छोड़ जाता है। प्रवेश करने से पहले उसके अच्छे कर्म और शुद्धियां बाहर रह जाती हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि वेश्यालय के आंगन की मिट्टी सबसे पवित्र हुई, इसलिए उसका प्रयोग दुर्गा मूर्ति के लिए किया जाता है। मान्यता यह भी है कि माँ दुर्गा को महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है, महिषासुर ने देवी दुर्गा के सम्मान के साथ खिलवाड़ किया था, उसने उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाई थी, उसके अभद्र व्यवहार के कारण ही मां दुर्गा को क्रोध आया और अंतत: उन्होंने उसका वध कर दिया। इस कारण से वेश्यावृति करने वाली स्त्रियों, जिन्हें समाज में सबसे निकृष्ट दर्जा दिया गया है, के घर की मिट्टी को पवित्र माना जाता है और उसका उपयोग मूर्ति के लिए किया जाता है।

उप चुनाव से पहले भाजपा का बड़ा दावा, किसानों को लेकर कही ये बात

वही इस परंपरा के पीछे यह भी माना जाता है वेश्याओं ने अपने लिए जो ज़िंदगी चुनी है वो उनका सबसे बड़ा अपराध है। वेश्याओं को इन बुरे कर्मों से मुक्ति दिलवाने के लिए उनके घर की मिट्टी का उपयोग होता है, मंत्रजाप के जरिए उनके कर्मों को शुद्ध करने का प्रयास किया जाता है। वेश्याओं को सामाजिक रूप से काट दिया जाता है, लेकिन इस त्यौहार के सबसे मुख्य काम में उनकी ये बड़ी भूमिका उन्हें मुख्य धारा में शामिल करने का एक जरिया है।

 


About Author

Harpreet Kaur

Other Latest News