Slow Living : क्या आप भी जीवन की तेज़ रफ्तार से थक गए हैं, एक कदम बढ़ाइए स्लो लिविंग की ओर, जानिए कब और क्यों शुरु हुआ Slow Movement 

स्लो लिविंग सिर्फ एक जीवनशैली नहीं है, बल्कि यह एक सोचने का तरीका है। ऐसा तरीका जो हमें तनावमुक्त करने के साथ एक संतोषजनक जीवन जीने के लिए प्रेरित भी करता है। अगर हम अपने आसपास नज़र दौड़ाएं तो पाएंगे कि कई लोग अब इस भागमभाग वाली तेज रफ्तार जिंदगी से थक गए हैं और वो अब संसाधनों और सुविधाओं से ज्यादा मानसिक शांति और सरलता की ओर लौटना चाहते हैं। यही वजह है कि दुनियाभर में स्लो लिविंग की अवधारणा को पसंद किया जा रहा है और इसे अपनाने वालों की तादाद भी बढ़ती जा रही है।

Slow Living Lifestyle

Slow Living : आज के डिजिटल युग में, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़माने में, भागते हुए समय में क्या आप भी कभी थकान महसूस करते हैं। क्या आपको अपनी जिंदगी में सुकून और शांति की ज़रूरत लगती है। क्या कभी ऐसा लगता है कि इससे तो पहले का समय ही ठीक था जब रफ्तार इतनी तेज नहीं थी। अगर ऐसा है तो स्लो लिविंग का कॉन्सेप्ट आपके लिए ही है। स्लो लिविंग या धीमी गति से जीवन जीना एक मानसिकता है..जिसके तहत आप एक अधिक सार्थक और जागरूक जीवनशैली अपनाते हैं।

स्लो लिविंग का मतलब है हर काम सही गति से करना। ये अवधारणा चीजों को तेजी से करने का प्रयास करने की बजाय, धीमी गति चीजों को बेहतर तरीके से करने पर ध्यान केंद्रित करती है। अक्सर, इसका मतलब है धीमा करना, कम करना और उन चीज़ों पर सही समय खर्च करने को प्राथमिकता देना जो आपके लिए सबसे ज्यादा मायने रखती हैं।

Slow Living : एक नई जीवनशैली 

स्लो लिविंग एक जीवनशैली है जो दैनिक कार्यों को धीमी गति से करने के महत्व को बढ़ावा देती है। यह अवधारणा “स्लो फूड” आंदोलन से जुड़ी हुई है, जो 1980 और 1990 के दशक में फास्ट फूड के बढ़ते चलन के जवाब में रूप में विकसित हुई। स्लो लिविंग का लक्ष्य जीवन के हर पहलू में एक संतुलित, सरल और पूर्णता की भावना को शामिल करना है जिससे कि व्यक्ति अपने अनुभवों का अधिकतम लाभ उठा सके।

कब और क्यों शुरु हुआ Slow Movement 

स्लो लिविंग आंदोलन 1980 के दशक में इटली में शुरू हुआ था। रोम में मैकडॉनल्ड्स के सामने एक्टिविस्ट कार्लो पेट्रिनी (Carlo Petrini)  और उनके साथियों ने ‘स्लो फूड’ (Slow food) का गठन किया। ये ऐसा आंदोलन था जो क्षेत्रीय खाद्य परंपराओं का बचाव कर रहा था। धीरे धीरे स्लो फूड आंदोलन इतना मशहूर हुआ कि अब 150 से अधिक देशों में इसके समर्थक हैं और यह गैस्ट्रोनॉमिक परंपराओं (gastronomic traditions) की सुरक्षा, स्थानीय उत्पादकों के लिए उचित वेतन को बढ़ावा देने और अच्छी गुणवत्ता वाले भोजन का आनंद लेने को प्रोत्साहित करने पर ज़ोर देते हैं।

Slow movement पर सबसे प्रसिद्ध लेखकों और वक्ताओं में से एक, कार्ल होनोर ने 2004 में अपनी पुस्तक ‘इन प्राइज़ ऑफ़ स्लोनेस’ (In Praise of Slowness) के प्रकाशन के साथ धीमी गति से जीवन जीने की अवधारणा को मुख्यधारा में लाने में मदद की। होनोर ने पता लगाया कि कैसे स्लो फूड ने धीमी गति से जीवन जीने के व्यापक आंदोलन को जन्म दिया और अब इसे जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी लागू किया जा रहा है।

क्यों लोकप्रिय हो रही है स्लो लिविंग की अवधारणा

अब दुनियाभर में कई लोग स्लो लिविंग की अवधारणा को पसंद कर रहे हैं और इसे अपना भी रहे हैं। धीरे धीरे जीवन की धीमी गति के बारे में जागरूकता बढ़ी है। आज, धीमी यात्रा, धीमी बागवानी, धीमी आंतरिक सज्जा, धीमी डिजाइन, धीमी फैशन, धीमी फूल, धीमी पालन-पोषण, धीमी सोच, धीमी समाचार और धीमी गति से काम करना सभी धीमी जीवन शैली की ओर रूझान बढ़ रहा है। ज्यादा से ज्यादा लोग यह स्वीकार कर रहे हैं कि तेज़ गति हमेशा बेहतर नहीं होती है।

  • मानसिक स्वास्थ्य का महत्व : आधुनिक जीवन की तेज गति तनाव और चिंता को बढ़ाती है। स्लो लिविंग से लोग अपने मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए समय निकालते हैं, जिससे उनकी जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है ।
  • सस्टेनेबिलिटी की आवश्यकता: पर्यावरणीय मुद्दों के बढ़ने के साथ, लोग अधिक टिकाऊ जीवन जीने की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं। स्लो लिविंग स्थानीय, जैविक और संपूर्ण खाद्य पदार्थों के सेवन को बढ़ावा देता है, जिससे न केवल व्यक्ति की सेहत बल्कि हमारी पृथ्वी की सेहत भी बेहतर होती है।
  • पर्यावरणीय जागरूकता : स्लो लिविंग का एक प्रमुख पहलू सततता है। लोग अब यह समझने लगे हैं कि तेजी से खपत करने वाली जीवनशैली पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है। इसलिए, अधिक से अधिक लोग स्थानीय और मौसमी खाद्य पदार्थों की ओर लौट रहे हैं, जिससे उनकी कार्बन फुटप्रिंट कम होती है 
।
  • सामाजिक संबंधों का महत्व : यह जीवनशैली गहरे संबंध बनाने और अधिक महत्वपूर्ण रिश्तों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है। जब लोग धीमा जीवन जीते हैं, तो वे अपने प्रियजनों के साथ अधिक गुणवत्तापूर्ण समय बिता पाते हैं।

स्लो लिविंग के लाभ

तनाव में कमी : नियमित रूप से धीमी गति से जीने से लोगों का मानसिक तनाव कम होता है और वे अपने अनुभवों का बेहतर आनंद ले पाते हैं 
।
खुद पर ध्यान : इस जीवनशैली को अपनाने से लोग अपने स्वास्थ्य, आहार और जीवन के प्रति अधिक जागरूक हो जाते हैं 
।
आर्थिक लाभ : धीमी जीवनशैली से लोग आवश्यक वस्तुओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे अनावश्यक खर्च कम होते हैं 
।

कैसे अपनाएं स्लो लिविंग 

अगर आपको भी अपने जीवन में परिवर्तन लाना है तो सबसे पहला कदम है कि जीवन को सरल बनाएं। अनावश्यक चीजों और जिम्मेदारियों से छुटकारा पाएं। छोटी छोटी आदतों से इसकी शुरुआत करें जैसे कि खाना धीरे-धीरे खाएं। अपने भोजन का पूरी तरह आनंद लें और हर निवाले का स्वाद लें। कृत्रिमता से जितना संभव को दूरी बनाएं और प्रकृति के साथ जुड़ें। प्रकृति सबसे बड़ी डॉक्टर है। घर और ईंट पत्थरों की इमारतों से बाहर समय बिताएं और प्रकृति की सुंदरता का आनंद लें
। स्लो लिविंग ऐसी जीवनशैली है जो हमें जीवन को समझने और आनंदित करने के नए तरीके मुहैया कराती है। बस हमें इसकी ओर एक कदम बढ़ाना है। यह न सिर्फ व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि समाज और पर्यावरण के लिए भी एक स्थायी विकल्प साबित हो सकती है।

 


About Author
श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

Other Latest News