बालाघाट, सुनील कोरे| बैहर पुलिस (Baihar Police) ने थाना अंतर्गत मसनीनाला में सड़ी-गली हालत में मिले कथित कोटवार नेमीचंद बारमाटे के अंधे हत्याकांड का खुलासा (Blind Murder Case) करते हुए मृतक के परिचित दो आरोपियों सिंगोड़ी निवासी 30 वर्षीय गणेश पिता सुक्कलसिंह और चैतसिंह पिता हीरासिंह वरकड़े को गिरफ्तार किया है। जिन्होंने रूपये के विवाद में नेमीचंद के सिर पर पत्थर मारकर पहले उसे घायल किया, जिसके बाद गला दबाकर उसकी हत्या कर दी और हत्या के साक्ष्य छिपाने की मंशा से आरोपियों ने मृतक के शव को बोरे में भरकर उसमें पत्थर बांधकर मसनीनाले में फेंक दिया। साथ ही मृतक के मोबाईल को तोड़ा डाला और मोटर सायकिल को नाले के गहरे पानी में फेंक दिया। जिसके बाद वह वहां से वापस अपने गांव सिंगोड़ी आ गये। पुलिस की मानें तो आरोपियों ने योजनाबद्व तरीके से हत्या (Murder) को अंजाम दिया था, लेकिन मोबाईल कॉल डिटेल और मनोवैज्ञानिक पूछताछ में आरोपियों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया।
आरोपी गणेश से मकान बनाने पर मृतक ने की थी 50 हजार रूपये की मांग
बैहर पुलिस की मानें तो नेमीचंद बारमाटे के छोटे भाई की पत्नी कोटवार है, बहू के कोटवार होने से नेमीचंद भी आसपास के गांवो में कोटवार प्रतिनिधि के रूप में काम करता था। जिससे उसके कई परिचित हो गये थे। सिंगोड़ी में नेमीचंद की पत्नी आशा कार्यकर्ता है और आरोपी गणेश भोंडेकर की पत्नी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, चूंकि प्रसव के दौरान एक साथ काम होने के चलते दोनो आपस में अच्छी मित्र है। जिससे गणेश भी नेमीचंद को अच्छे से जानता था या कहे कि पत्नी के आपस में अच्छी मि़त्र होने के कारण गणेश और नेमीचंद भी एक दोस्त की तरह ही थे। जिसके चलते नेमीचंद द्वारा बनाये गये एक आवास के पास ही खाली जमीन पर नेमीचंद ने गणेश को आवास बनाने बोला, जिसको लेकर तय हुआ कि गणेश, नेमीचंद को कुछ रूपये देगा। जब गणेश भोंडेकर का आवास स्लेप तक पहुंच गया तो नेमीचंद गणेश को 50 हजार रूपये के लिए दबाव बनाने लगा और रूपये नहीं देने पर आवास को जेसीबी चलाकर गिरा देने की बात कही। जिसको लेकर गणेश, नेमीचंद से खफा हो गया और उसने अपने साथी चैतुसिंह से मिलकर नेमीचंद की हत्या की योजना बनाई।
25 नवंबर को पार्टी करते है कहकर नेमीचंद को बुलाया
योजनाबद्व तरीके से गणेश ने 25 नवंबर को नेमीचंद को पार्टी करते है कहकर सिंगोड़ी तालाब के पास बुलाया। चूंकि नेमीचंद भी शराब का शौकीन था, वह पार्टी की बात सुनकर चला गया। जहां तीनो ने बैठकर कच्ची शराब पी। जिसके बाद पास ही पड़े एक पत्थर से आरोपी गणेश ने नेमीचंद के सिर पर हमला कर दिया। जिसके बाद गणेश और चैतुसिंह ने उसका गला दबाया। जब नेमीचंद की मौत हो गई तो आरोपी गणेश ने उसे एक बोरी में भरा और उसमें पत्थर बांधकर उसे मसनीनाला में फेंक दिया। इसके अलावा मृतक नेमीचंद की मोटर सायकिल को भी नाले के गहरे पानी में फेंक दिया और उसके मोबाईल तो तोड़ डाला। जिसके बाद नेमीचंद का कोई पता नहीं चला और 29 दिसंबर को बैहर पुलिस ने मसनीनाला से नेमीचंद का सड़ी-गली हालत में शव बरामद किया था। जिसके पीएम जांच के दौरान ही प्रारंभिक पीएम रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ धारा 302 और 201 का मामला कायम कर विवेचना में लिया था।
कॉल डिटेल से खुला राज
मसनीनाला में मिले शव की हत्या होने पर आईजी, डीआईजी, पुलिस अधीक्षक एवं अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्याम कुमार मेरावी के मार्गदर्शन एवं एसडीओ आदित्य मिश्रा के नेतृत्व में हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए बैहर थाना प्रभारी के साथ बिरसा और मलाजखंड पुलिस की एक टीम गठित की गई। जो विभिन्न पहलुओं से हत्या मामले की विवेचना कर रही थी। इस दौरान निकाली गई कॉल डिटेल के आधार पर पुलिस ने घटना के दौरान मृतक नेमीचंद के साथ रहे गणेश भोंडेकर और चैतुसिंह वरकड़े को संदेह के आधार पर हिरासत में लिया। जिनसे मनोवैज्ञानिक तरीके से की गई पूछताछ में आरोपियों ने नेमीचंद की हत्या करना स्वीकार किया। जिसके बाद बैहर पुलिस ने विधिवत आरोपियों को गिरफ्तार किया। जिनकी निशानदेही पर पुलिस ने मृतक के हाथ में पहना चांदी का कढ़ा, मृतक की नाले में फेंकी गई मोटर सायकिल और तोड़कर फेंका गया मोबाईल बरामद किया। इस मामले में पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ अनुसूचित जाति, जनजाति अधिनियम के तहत 3 (2)(वी) की धारा का ईजाफा किया है। जिन्हें पुलिस ने आज 7 दिसंबर को बालाघाट न्यायालय में पेश किया। जहां से आरोपियों को न्यायिक रिमांड पर जेल भिजवा दिया गया है।
अंधे हत्याकांड में इनकी रही सराहनीय भूमिका
नेमीचंद बारमाटे के अंधे हत्याकांड को सुलझाकर आरोपियों की गिरफ्तारी में एसडीओपी आदित्य मिश्रा के नेतृत्व में बैहर थाना प्रभारी गिरिवरसिंह उईके, एसआई मुकेश ठाकुर, बिरसा थाना उपनिरीक्षक अवधेश भदौरिया, मलाजखंड थाना उपनिरीक्षक रंजीत सर्राटे, उकवा चौकी प्रभारी एसआई पंकज तिवारी, बैहर थाना एएसआई आर.आर. झारिया सहित प्रधान आरक्षक और आरक्षको की भूमिका सराहनीय रही।