भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chauhan) अपनी सादगी के चलते अन्य राजनेताओं में अलग पहचान रखते हैं। बच्चों के मामा खुद को कहलवाने में उन्हें बहुत सुकून मिलता है। वे बच्चों के साथ घुल मिलकर आनंद का अनुभव भी करते हैं। इसका ताजा उदाहरण है आज भोपाल में उनका आंगनवाड़ी भ्रमण। जहाँ वे गए तो थे मुख्यमंत्री बनकर, लेकिन बच्चों के बीच खुद भी बच्चे बन गए।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज गुरुवार को भोपाल में सुनहरी बाग स्थित आंगनवाड़ी का भ्रमण किया। मुख्यमंत्री ने अडॉप्ट एन आंगनवाड़ी में इस आंगनवाड़ी को गोद लेकर इसमें कलर करवाया और अन्य आवश्यक व्यवस्थाएँ व्यक्तिगत रूप से करवाई हैं।
सीएम शिवराज जब आंगनवाड़ी में पहुंचे तो बच्चों ने उनका ताली बजाकर स्वागत किया, मुख्यमंत्री ने बच्चियों को तिलक लगाकर उनका पूजन किया और सभी बच्चों पर पुष्प वर्षा की। बच्चों की मासूमियत भरी मुस्कराहट के सामने मुख्यमंत्री भी बच्चे बन गए।
वे पालथी मारकर तत्काल जमीन पर बैठ गए और बच्चों से बातें करने लगे। उन्होंने बच्चों की दिनचर्या के बारे में जानकारी लेते हुए पूछा कि-” वे कितने बजे आंगनवाड़ी आते हैं, आंगनवाड़ी आना अच्छा लगता है या नहीं, भोजन में क्या-क्या मिलता है और सबसे प्रिय व्यंजन क्या है।”
अपने मामाजी के सामने बच्चों ने बताया कि आंगनवाड़ी में उन्हें कढ़ी-चावल, दाल-चावल, खीर- पूरी और हलवा अच्छा लगता है। बेटी श्रेया ने मुख्यमंत्री को एक कहानी सुनाई, आंगनवाड़ी के बच्चों ने समवेत स्वर में कविता भी गाकर सुनाई। कविता के बोल थे “मंजन कर लो-मुँह धो लो, माता-पिता को करो प्रणाम- फिर शुरू करो अपना काम।”
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बहुत देर तक बच्चों के साथ रहे उन्हें अच्छे नागरिक बनने, देशप्रेम की शिक्षा दी। उन्होंने बच्चों के साथ ठहाके भी लगाए और मस्ती की। मुख्यमंत्री ने आंगनवाड़ी के बच्चों को टॉफी और रंगीन पेंसिल के सेट भेंट किए। उन्होंने आंगनवाड़ी में उपस्थित क्षेत्र की लाड़ली लक्ष्मियों से भी बातचीत की। इस अवसर पर पूर्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता, कलेक्टर अविनाश लवानिया और नगर निगम आयुक्त केवीएस चौधरी भी उपस्थित थे।
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Atul Saxena
पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....
पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....