भोपाल| मध्य प्रदेश में 15 साल बाद भाजपा सत्ता से बाहर है| ऐसा तब हुआ है जब केंद्र में मोदी सरकार है और प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान का लोकप्रिय चेहरा और अनगिनत योजनाएं| इसके बावजूद पार्टी को हार का सामना करना पड़ा| अब सामने लोकसभा चुनाव का लक्ष्य है, लेकिन उससे पहले इस हार के क्या मायने हैं और क्या कारण, जिसके चलते बीजेपी चौथी बार सरकार बनाने में सफल नहीं हो सकी, जबकि इस बार 200 पार का दावा किया जा रहा था| एंटी इंकम्बैंसी, अपनों की नाराजगी जहां बड़ी वजह सामने आई है, वहीं एट्रोसिटी एक्ट, ‘माई का लाल’ जैसे बयानों ने पार्टी को नुकसान पहुँचाया है| इसके अलावा भाजपा की प्रचार रणनीति संगठन और मुद्दों से हटकर व्यक्ति केंद्रित रही जिसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा| अब इसको लेकर संघ ने भी बीजेपी संगठन को चेताया है और आगे ऐसी गलती न करने की नसीहत दी है|
दरअसल, भाजपा के साथ ही संघ भी प्रदेश में हार के कारणों की पड़ताल में जुटा हुआ है| संघ ने भाजपा संगठन को एक रिपोर्ट भेजी है, जिसमें हार का एक कारण भाजपा की प्रचार रणनीति संगठन और मुद्दों से हटकर व्यक्ति केंद्रित होना भी बताया है। संघ पदाधिकारियों ने भाजपा के चुनावी नारे ‘माफ करो महाराज, हमारा नेता शिवराज’ पर भी सवाल उठाया है। संघ की रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह के नारों से व्यक्तिवादी संगठन की छवि बनती है, जिसका मतदाताओं पर नकारात्मक असर पड़ता है। बता दें कि बीजेपी ने रणनीति के तहत कांग्रेस के दिग्गज नेता को घेरने के लिए इस नारे का चुनाव में जमकर उपयोग किया| इसके बावजूद उनके क्षेत्र में भाजपा को खासा सफलता नहीं मिली| बल्कि यह नारा लोगो की जुबान पर भी चढ़ गया| इसके जवाब में कांग्रेस ने भी ‘वक्त है बदलाव का’ नारा चुनाव प्रचार में इस्तेमाल किया| जिसका पार्टी को फायदा मिला|
सूत्रों के मुताबिक अपनी रिपोर्ट में संघ ने बीजेपी को नसीहत दी है| इसमें कहा गया है कि व्यक्तिगत प्रहार और किसी एक व्यक्ति से जुड़े नारों का उपयोग लोकसभा चुनाव में करने से पार्टी को बचना चाहिए| राष्ट्रीय संगठन ने भी संघ की इस रिपोर्ट के बाद प्रदेश को लेकर लोकसभा की अपनी रणनीति में बदलाव शुरू किया है। सूत्रों के मुताबिक संघ पदाधिकारियों ने चुनाव प्रचार के दौरान ही माफ करो महाराज… जैसे चुनावी नारों का नकारात्मक फीडबैक भाजपा को बता दिया था। संघ ने इस मामले में कुशाभाऊ ठाकरे की प्रचार रणनीति का हवाला मौजूदा नेताओं को दिया था। इसमें वे कभी भी चुनावी नारे में विपक्षी पार्टी या विपक्षी दल के नेता का नाम शामिल नहीं करने की सलाह देते थे।