MP News : मध्य प्रदेश में आउटसोर्स संघर्ष मोर्चा के प्रांतीय अध्यक्ष वासुदेव शर्मा, अंशकालीन वार्मचारी संगठन के प्रांतीय अध्यक्ष उमाशंकर पाठक, ग्राम पंचायत कर्मचारी संगठन के प्रांतीय अध्यक्ष यशवंत गेदाम, मंडल कर्मचारी संघ के प्रांतीय अध्यक्ष अनिल वाजपेयी ने मुख्यमंत्री के नाम एक पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने बताया है कि अल्पवेतनभोगी कर्मचारी आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। साथ ही दो सूत्रीय मांगों का निराकरण कर लाखों पीड़ित वंचित कर्मियों के साथ न्याय करने और स्थाई कर्मी बनाया जाने की मांग की है।
दो सूत्रीय मांग
- शिक्षा विभाग एवं आदिम जाति विभाग के स्कूलों, छात्रावासों सहित सभी विभागों में कार्यरत अंशकालीन, अस्थाई, ठेका, आउटसोर्स एवं दैनिक मजदूरी पर काम करने वाले कर्मचारियों को शासन द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन दिलाकर उन्हें बतुर्थ श्रेणी के पद पर स्थाई कर्मी बनाया जाए। आयुष विभाग के योग प्रशिक्षकों को भी न्यूनतम वेतन दिया जाए।
- ग्राम पंचायतों में कार्यरत भृत्य, चौकीदार, नल चालक, पंप आपरेटर, कंप्यूटर आपरेटर आदि कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन के दायरे में लाकर पंचायत का स्थाई कर्मी बनाया जाए।
न्यूनतम वेतन दायरे से बाहर
बता दें कि ग्राम पंचायतों के चौकीदार, भृत्य, पंप आपरेटर, स्कूलों, छात्रावासों के अंशकालीनकर्मी, योग प्रशिक्षक, मोबिलाईजर सहित लाखों अल्पवेतनभोगी कर्मचारी न्यूनतम वेतन के दायरे से बाहर हैं। उन्हें श्रेणीबद्ध कर्मचारियों के रूप में स्थाईकरण करने का आग्रह किया गया है। न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 के अंतर्गत घोषित अनुसूचित नियोजनों में क्रमांक 22 पर किसी स्थानीय प्राधिकरण में नियोजन सम्मिलित है। जिसे लेकर साल 2013 में 30 सितंबर को न्यूनतम वेतन सलाहकार परिषद, भोपाल की अनुशंसानुसार श्रमायुक्त ने प्रदेश के समस्त कलेक्टरों को पत्र भी लिखा था लेकिन आज तक उसपर किसी भी जिले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है। ऐसे में मजबूरन उन्हें 5 हजार रुपए में नौकरी करना पड़ रहा है।
आर्थिक स्थिति है खराब
आगे पत्र में लिखा गया कि लाखों अस्थाई कर्मचारी चतुर्थ श्रेणी के पदों पर 15-20 साल से काम कर रहे हैं, जिन्हें 2-5 हजार रुपए मासिक वेतन ही मिलता है। चूंकि, राज्य में 20 साल से चतुर्थ श्रेणी के पदों पर भर्ती नहीं हुई है, सभी विभागों में चतुर्थ श्रेणी के लाखों पदों खाली हैं, जिन पर अंशकालीन, अस्थाई, आउटसोर्स, ठेका कर्मचारी काम करते हैं। यह सभी कर्मचारी समाज के गरीब, मजदूर एवं कमजोर परिवारों से आते हैं। चतुर्थ श्रेणी की छोटी सी सरकारी नौकरी का सपना लेकर सरकारी विभागों में नौकरी करने पहुंचे लघुवेतन कर्मचारियों को सरकार का घोषित न्यूनतम वेतन तक नहीं मिलता है।