पातालकोट में जड़ी बूटियों पर रिसर्च करने वाले बॉटनिस्ट दीपक आचार्य का असमय निधन, परिजन-दोस्त शोक में डूबे

Untimely demise of botanist Deepak Acharya : देश के जाने-माने बॉटनिस्ट, वैज्ञानिक और छिंदवाड़ा के पातालकोट में हर्बल प्रोडक्ट्स पर रिसर्च करने वाले दीपक आचार्य असमय ही संसार से कूच कर गए। दीपक आचार्य..जिन्हें ज्यादातर लोग उनकी लिखी किताब जंगल लैबोरेटरी और प्रकृति से जुड़ाव को लेकर जानते हैं। उनका जाना सिर्फ उनके परिवार या नजदीकी लोगों के लिए ही नहीं, ऐसे हजारों लाखों लोगों के लिए गहरी क्षति है, जिन्हें वे एक प्रकृतिक तरीके से जीवन जीने के लिए प्रेरित कर रहे थे।

कैसे कहें अलविदा..

दीपक..जो करीबी दोस्तों में शुमार रहे, उन्हें अलविदा कहना आसान नहीं। अभी इस बात को प्रोसेस कर पाना भी मुमकिन नहीं हो पा रहा। दीपक..जो अस्पताल से भी लगातार अपने कुछ नजदीकी दोस्तों को हेल्थ अपडेट दे रहे थे और खुद इतनी तकलीफ में होने के बावजूद अपनी बात ‘टेक केयर’ के साथ खत्म करते। छिंदवाड़ा में रहने वाले दीपक कुछ स्वास्थ्यगत परेशानियों के कारण 7 सितंबर को डॉक्टर के पास गए और चेकअप के बाद कुछ गंभीर समस्या का इशारा मिला। उन्हें हार्ट प्रॉब्लम थी और आनन फानन में नागपुर ले जाया गया। लेकिन जांच के बाद पता चला कि वे ऑटो इम्युन बीमारी से पीड़ित हैं और उनकी किडनी भी काम नहीं कर रही है। लीवर में भी समस्या बताई गई। इसके बाद हर तीन दिन में उनका डायलिसिस किया गया और शनिवार को ही एंजियोग्राफी के बाद एंजियोप्लाटी की गई। किडनी की बायोप्सी की गई थी जो एक कष्टदायक प्रक्रिया है और बुधवार को उसकी रिपोर्ट आनी थी..लेकिन सोमवार रात ही दीपक ने इस फानी दुनिया को छोड़ दिया।

सरल सहज दीपक का असमय बुझना

वे एक ऐसे शख्स रहे, जो भी उनसे मिलता अपनापन महसूस करता। बेहद सरल सहज और कृत्रिमता से कोसों दूर। पातालकोट के जंगलों की खाक छानने वाले, आदिवासियों की बीच रहकर काम करने वाले। उनके प्रकृति से बेहद प्रेम था। वे पेड़ों से बतियाते, पंछियों जानवरों से प्रेम करते, जड़ी बूटियों पर रिसर्च करते और अपने दोस्तों के साथ ठहाके लगाते। उनकी किताब कई सालों से बेस्ट सेलर है। आने वाले छह महीनों में उनकी दो किताबें और प्रकाशित होने वाली थी। जीवन की तमाम परेशानियों के बीच भी वो हमेशा सकारात्मक रहे। अपने दोस्तों के लिए हमेशा उपलब्ध और अपरिचितों की सहायता को तत्पर। अभी दीपक को बहुत काम करना था..वो काम जो हजारों लोगों को नया जीवन देता, आयुर्वेद का विस्तार करता, प्रकृति के करीब लेकर जाता। लेकिन क्रूर काल ने उन्हें असमय छीन लिया। ये उनके परिवार और दोस्तों के लिए असह्य पीड़ा का समय है..देशभर से उन्हें प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से जानने वाले लोग शोक जता रहे हैं। सिर्फ 49 की आयु में वे चले गए..लेकिन इस कम समय में भी उनका किया काम अनमोल है। वो अपने लिखे शब्दों और किए गए कार्यों के जरिए हमेशा सबके बीच रहेंगे। हम आपको कभी विस्मृत नहीं कर पाएंगे…आप हमारी यादों में उसी प्रेमिल और सुंदर रूप में हमेशा जीवित रहेंगे दोस्त।

पातालकोट में जड़ी बूटियों पर रिसर्च करने वाले बॉटनिस्ट दीपक आचार्य का असमय निधन, परिजन-दोस्त शोक में डूबे


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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