Farmers news : सर्दी और गर्मी दोनों ही मौसम किसानों के लिए उपयोगी होते हैं, वो फसल की बुवाई से पहले उसकी प्लानिंग करते हैं कि मौसम को देखते हुए कौन सी फसल ली जाये जिससे उत्पादन अधिक हो और उन्हें लाभ हो, इस बीच ग्वालियर जिले के कृषि अधिकारियों ने किसानों को सलाह दी है कि वे इस मौसम में ग्रीष्मकालीन धान की बजाय मूँग, तिल एवं सन व ढेंचा उगाएँ,
ग्वालियर जिले के किसान भाईयों को ग्रीष्मकाल यानि गर्मियों में धान की बजाय ग्रीष्मकालीन दलहनी फसलें जैसे मूँग, तिल व ढेंचा उगाने की सलाह दी गई है। इन फसलों से खेत की मृदा (मिट्टी) का उर्वरा संतुलन बना रहता है। साथ ही ये फसलें कम पानी, कम समय और कम मेहनत में अच्छा व लाभदायक उत्पादन देती हैं।

मृदा की उर्वरता प्रभावित होती है
उप संचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास आर एस शाक्यवार ने किसानों से कहा है कि ग्रीष्मकालीन धान में पानी की अत्यधिक जरूरत पड़ती है। मौजूदा वर्ष में हरसी जलाशय में पानी की उपलब्धता कम है और इस वजह से क्षेत्र का जल स्तर भी नीचे है। ग्रीष्मकालीन धान व उसके बाद खरीफ में धान की फसल लगाने से पोषक तत्वों का अत्यंत दोहन हो जाता है और मृदा की उर्वरता अर्थात उत्पादन क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो जाती है। साथ ही ग्रीष्मकालीन धान में पेस्टीसाइड एवं दवाईयों के अधिक उपयोग से पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचता है।
फसल चक्र के सिद्धांत का पालन जरूरी
उन्होंने सलाह दी है कि ग्रीष्मकाल में धान की बजाय मूँग उगाने से खरीफ में समय से धान लगाई जा सकती है। जाहिर है खरीफ के धान की समय से कटाई हो जाती है और गेहूँ की बुवाई कर अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इससे फसल चक्र के सिद्धांत का भी पालन हो जाता है जो खेत की उत्पादन क्षमता बनाए रखने के लिये अत्यंत जरूरी है।
ये फसलें देंगी अच्छा उत्पादन
कृषि अधिकारियों की सलाह है कि किसान भाई ग्रीष्मकाल में मूँग के अलावा तिल की फसल भी उगा सकते हैं। साथ ही खरीफ में जिस रकबे में धान प्रस्तावित है, उसमें हरी खाद प्राप्त करने के लिये सन या ढेंचा उगा सकते हैं। इसे खेतों में बढ़ने पर मृदा की उर्वरता उच्च स्तर पर पहुँच जाती है।