नीमच,कमलेश सारडा। लंबी जद्दोजहद वह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (digvijay singh) के हस्तक्षेप के बाद अंततः सुवाखेड़ा की माइस फिर से शुरू हुई। प्रदेश की सबसे बड़ी फर्श पत्थर खदान फिर से शुरू होने से 300 से अधिक परिवारों के चेहरे चमक उठे हैं। इंदिरा पत्थर सहकारी समिति के नाम से संचालित सुवाखेड़ा की यह पत्थर खदान 117.532 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है। इसमें छोटे-छोटे मजदूरों की सहकारी समिति के माध्यम से करीब 300 सदस्यों की समिति है। जिसमे 500 पिटपासधारी जिसमें सुवाखेड़ा तथा आसपास के लगभग तीन हजार लोगो का भरण पोषण होता है। बरसों से इस माइस से मजदूर लोग जुड़े हुए हैं और सरकार नियम पालन को मानते हुए चला रहे हैं। पहले सालाना 60 से 70 लाख अब 5 करोड़ 32 लाख जमा करने की बात कही। हाईकोर्ट की शरण मे गए । 21 जनवरी 22 से माइस बंद है।
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समिति द्वारा पूरे मामले में हाईकोर्ट में जाकर अपना पक्ष रखा जिस पर 25 फरवरी 22 को इंदौर उच्च न्यायालय की डबल बेंच ने स्टे देते हुए अंतरिम तौर पर एक करोड रुपए जमा करा कर माइंस शुरू करने की बात कही। जिस पर शासन ने 3 महीने तक निर्णय नहीं ले पाए। इस दौरान मध्य प्रदेश शासन के महाधिवक्ता ने 24 अप्रैल 22 को पत्र लिखकर शासन को अपना मत दिया।
यहां से हुई बंद होने की शुरुआत
वर्ष 2020 तक जहां शासन ने पत्थर खदान को एक ही गौण खनिज मानते हुए एक प्रकार से ही रॉयल्टी ली जाती थी जो लगभग 70 लाख रुपये प्रतिवर्ष होती थी। लेकिन सरकार ने नियम बदलते हुए पत्थर खनिज को एक गोण नही मानते हुए इसको अलग-अलग फर्शी पत्थर, खंडा, चुरी इस प्रकार से 5 अलग अलग खनिज माना और उस ईमान से एक के बजाय 5 गुना रॉयल्टी बड़ा कर दी जिसके चलते 21 जनवरी 2022 को माइस बंद हो गई।