मौत से जंग लड़ रहा बच्चे के परिवार ने नहीं मानी हार, किडनी-फेफड़े और लीवर काम करने के बाद भी बचाई जान

इंदौर में एक नौ वर्षीय बच्चे की जान एक अज्ञात वायरस के चलते खतरे में पड़ गई थी, लेकिन उसके परिवार ने हार नहीं मानी। उल्टी-दस्त से लेकर शरीर के अंगों के विफल होने तक का सामना बच्चे को करना पड़ा, लेकिन परिवार ने डॉक्टरों के साथ मिलकर बच्चे को बचाने के लिए सीआरआरटी जैसी महंगी चिकित्सा थैरेपी का भी सहारा लिया।

Rishabh Namdev
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child who was fighting the battle with death: इंदौर में एक नौ वर्षीय बच्चे की जान अचानक हुए अज्ञात वायरस के चलते मुश्किल में पड़ गई थी। इस दर्दनाक कहानी में उल्टी-दस्त से लेकर शरीर के अंगों का काम न करना शामिल था। जिसके कारण बच्चे को वायरस से बचाव के लिए अग्ग्रेसिव थैरेपी की आवश्यकता पड़ी, जो इसे बचाने के लिए एक महंगे इलाज की दिशा में ले आई थी। इसके बावजूद, बच्चे को वेंटीलेटर से बाहर लाने के लिए परिवार और डॉक्टरों ने हार नहीं मानी जिसके कारण बच्चा अब खतरे से बाहर है। लेकिन अभी तक यह सामने नहीं आया है की बच्चे को कौन सा वायरल अटैक हुआ था। हालांकि अब सात दिन के बाद बच्चे को वेंटीलेटर से वापस वार्ड में शिफ्ट कर दिया है।

अचानक उल्टी-दस्त होने लगे:

जानकारी के अनुसार बच्चे का नाम नमन है और वह घर में सबसे छोटा बेटा हैं। इस दुखद घटना के बारे में जानकर परिवार में सबकी आंखों में आंसू भर आए हैं। दरअसल मामले में सामने आया है की दोस्तों के साथ पिकनिक मनाने गए नमन को पिकनिक के बाद पिछले महीने अचानक उल्टी-दस्त होने लगे। हालांकि पहली बार तो ठीक हो गए, लेकिन तीन बार होने पर हालत बिगड़ गई। इसके बाद परिजन उसे तुरंत एक निजी हॉस्पिटल ले गए, जहां डॉक्टर द्वारा उसे वायरस से बचाव के लिए उच्च गुणवत्ता वाली थैरेपी शुरू की गई।

किडनी, लीवर और लंग्स भी हो गए थे फेल :

हॉस्पिटल में हुई आरंभिक जांच में पता चला कि बच्चे का ब्लड प्रेशर कम हो रहा था। इसके साथ ही डॉक्टरों को बच्चे के हार्ट की कमजोरी भी दिखाई दी। जिससे उसकी किडनी, लीवर और लंग्स भी फेल हो गए थे। जिसके बाद डॉक्टरों द्वारा बच्चे को अज्ञात वायरस का शिकार पाया गया। चिकित्सकों ने बताया कि बच्चे को नॉर्मल डायलिसिस की बजाय एक उन्नत और महंगी थैरेपी की आवश्यकता थी जिसका खर्च महंगा था। परिजनों ने इसे स्वीकार किया और सीआरआरटी (Continuous renal replacement therapy) शुरू की गई, जिससे बच्चे को बचाने में सफलता मिली है।

डॉक्टरों ने बताया कि इस स्थिति में नॉर्मल डायलिसिस का उपयोग नहीं किया जा सकता था, और सीआरआरटी ही एकमात्र उपाय था। इस चिकित्सकीय कदम से बच्चे को बचाने के लिए परिवार ने स्वीकृति दी और उच्च खर्च वाली थैरेपी की तरफ बढ़ा। सीआरआरटी के बाद बच्चे को वायरल इन्फेक्शन की वजह से हुई मौत के खतरे से मुक्ति मिली है और उन्हें अब वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया है। परिवार ने इस मुश्किल समय में साहस और संघर्ष का परिचय दिखाया है।


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मैंने श्री वैष्णव विद्यापीठ विश्वविद्यालय इंदौर से जनसंचार एवं पत्रकारिता में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। मैं पत्रकारिता में आने वाले समय में अच्छे प्रदर्शन और कार्य अनुभव की आशा कर रहा हूं। मैंने अपने जीवन में काम करते हुए देश के निचले स्तर को गहराई से जाना है। जिसके चलते मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार बनने की इच्छा रखता हूं।

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