दमोह डेस्क:आशीष जैन-दमोह में होने वाले विधानसभा उपचुनाव By Election में कोरोना ने आमद दे दी है। मध्य प्रदेश सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे वरिष्ठ भाजपा नेता जयंत मलैया कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं।उन्होंने खुद को आइसोलेट कर लिया है।
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इन दिनों जनता के बीच में एक बात मजाक के तौर पर कही जाती है” यदि कोरोना का कहीं नहीं फैलने देना तो वहां चुनाव करवा दो।” यह कहने में सही भी इसलिए लगती है क्योंकि सरकार और प्रशासन के सारे प्रतिबंध चुनावी सभाओं और नेताओं की रैलियों में शिथिल हो जाते हैं। प्रदेश की बात करें तो 17 अप्रैल को दमोह में उपचुनाव By Election होना है। यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी के राहुल लोधी और कांग्रेस के अजय टंडन के बीच है। सरकार को अपनी साख को बरकरार रखने और कांग्रेस को अपनी सीट बचाने के साथ-साथ यह साबित करने का भी मौका है कि वह अभी भी मध्यप्रदेश में सक्रिय है। ऐसे में एक के बाद एक करके धुआंधार चुनाव सभाएं हो रही हैं। इन सबके बीच बीजेपी के लिए बुरी खबर यह है कि वरिष्ठ नेता जयंत मलैया कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं और उन्होंने खुद को आइसोलेशन में कर लिया है।
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दमोह परंपरागत रूप से जयंत मलैया का गढ़ रहा है। वे सात बार से विधायक रहे। पिछले चुनाव में कांग्रेस के राहुल लोधी से चुनाव हारे। वक्त बदला और कल के राजनीतिक प्रतिद्वंदी राहुल लोधी आज बीजेपी के टिकट पर ही चुनाव लड़ रहे हैं और मलैया की मजबूरियां है कि पार्टी के प्रति निष्ठाओं का जवाब उन्हें उनका साथ देने पर मजबूर कर रहा है। हालांकि शुरू में मलैया के उत्तराधिकारी और उनके बेटे सिद्धार्थ माल्या ने बगावती तेवर दिखाये थे। लेकिन बीजेपी के आला नेताओं की समझाइश के बाद मान गए। यह माना जा रहा था कि जयंत मलैया पूरी सक्रियता के साथ राहुल लोधी का साथ निभाएंगे। लेकिन अब वे कोरोना पॉजिटिव है और आइसोलेशन में है। ऐसे में By Election चुनावी मैदान से मलैया की दूरी बीजेपी के लिए नुकसान पहुंचाने वाली बात है। कांग्रेस पहले ही कह चुकी है कि कोरोना जिस तेजी के साथ बढ़ रहा है उसे देखते हुए बाहर के नेताओं के दमोह में प्रचार पर रोक लगा देनी चाहिए। लेकिन सियासी मजबूरी है कि सरकार और संगठन दोनों को अपनी ताकत दिखाना जरूरी है। ऐसे में चुनावी रैली व सभाये तो बदस्तूर जारी रहेंगी।
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आखिर क्या है मलैया परिवार का दमोह में सियासी महत्व
1984 के उपचुनाव By Election में जीत कर अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले जयंत मलैया का परिवार बुंदेलखंड क्षेत्र के प्रभावशाली परिवारों में से एक माना जाता है। सरल, सहज व विनम्र छवि के जयंत मलैया मध्य प्रदेश सरकार में महत्वपूर्ण विभागों में मंत्री रहे और मंत्री रहने के दौरान उनकी कार्यकुशलता व ईमानदारी के चर्चे आज भी सुनाई देते हैं। मलैया की पत्नी डॉ सुधा मलैया भी जानी-मानी साहित्यकार, राजनेता व समाज सेवी हैं और उनकी दमोह के सामाजिक क्षेत्रों में गहरी पैठ है। इतना ही नहीं, मलैया के बड़े पुत्र सिद्धार्थ मलैया ने भी पिछले 5 वर्षों में अपने पिता की राजनीतिक विरासत को सजाने संवारने का काम किया है और वे लगातार जनहित के मुद्दों पर सक्रिय रहे हैं। अभी हाल ही में उन्होंने बसपा की विधायक रामबाई के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था और दमोह जिले में कानून और व्यवस्था की अराजक होती स्थिति को लेकर लोगों के साथ आंदोलन का नेतृत्व किया था। इस उपचुनाव में सिद्धार्थ पर समर्थको का अच्छा खासा दबाव था कि वे निर्दलीय चुनाव लड़े लेकिन बीजेपी के प्रति पिता माता और खुद सिद्धार्थ की निष्ठा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। यह भी माना जा रहा है कि सिद्धार्थ माल्या को इस उपचुनाव के बाद पार्टी कहीं न कहीं एडजस्ट करेगी। ऐसे में मलैया परिवार का चुनाव में जिस ओर झुकाव होगा निश्चित रूप से ऊट उसी करवट बैठेगा।